Friday, 29 July 2011

मधुकर के कुसुम : वर्षा वर्णन: - डॉ. उदय भानु तिवारी 'मधुकर'




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वर्षा वर्णन:            

डॉ. उदय भानु तिवारी 'मधुकर'
*
उमड़-घुमड़ घिरी घटा,  दमक  चली  है  दामिनी.
गयंद  घन   झरें, विहँस  रही   धरा   पे  यामिनी.
.घन   के   घोर   शोर   से   डरा  रहीं  हैं  कामिनी.
लपक-झपक लटा पटक, रही है शक्ति-स्वामिनी..//१//

विराट   रूप   धर   चली ,  नदी   भयीं  भयावनी.
उथल-पुथल   मची ,  धरा  हुई  है  पंथ  प्लावनी..
पर्वतों  ,   पहाड़ियों     को     चीरती     सुहावनी.
छटा   बिखेरती    चलीं ,  पयोधि   की   परावनी.//२//

दादुरों   के   शोर   से   बढ़ीं   निशा   की रागिनी.
विप्र    वेद-पाठ    सी    सुरम्य   लागे   रागिनी.
मन  उमंग  भर   गयी , चपल   हुईं   सुहागिनी
सुदूर , दूर   गाँव, वन   मचल   रही   हैं रागिनी//३//.

सावनी    फुहार     से     धरा     हुई     हरीभरी.
मयूर  नृत्य  कर  रहे   हैं  देख  के  जलद झरी.
युवा  हिलोर  से  भरी   छलक  रही  है  गागरी .
प्यास-प्यास   रट    रहे   पपीहरा ,   घरी-घरी..//४//

घोर  वृष्टि   से   चली   हैं   फूट-फूट  क्यारियाँ.
हो  गई  हैं  ज्यों  स्वतंत्र   बंधनों   से  नारियाँ.. 
बूँद   के   प्रहार   से   झुकी   लतायें    डारियाँ
सह रहे हों संत जन  ज्यों  खलों  की  गारियाँ //५//


मघा  के  मेघ  घूम-घूम   पर्वतों  पे  जा  रहे.
तृषित वसुंधरा की उग्र  प्यास को  बुझा  रहे..
पवन  बजाये  ताल , वृक्ष  झूम-झूम गा  रहे.
छलक,छलक के ताल,स्रोत गीतगुनगुना रहे..//६//


                         उदयभानु तिवारी "मधुकर"


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