
वर्षा वर्णन:
डॉ. उदय भानु तिवारी 'मधुकर'
*उमड़-घुमड़ घिरी घटा, दमक चली है दामिनी.
गयंद घन झरें, विहँस रही धरा पे यामिनी.
.घन के घोर शोर से डरा रहीं हैं कामिनी.
लपक-झपक लटा पटक, रही है शक्ति-स्वामिनी..//१//
विराट रूप धर चली , नदी भयीं भयावनी.
उथल-पुथल मची , धरा हुई है पंथ प्लावनी..
पर्वतों , पहाड़ियों को चीरती सुहावनी.
छटा बिखेरती चलीं , पयोधि की परावनी.//२//
दादुरों के शोर से बढ़ीं निशा की रागिनी.
विप्र वेद-पाठ सी सुरम्य लागे रागिनी.
मन उमंग भर गयी , चपल हुईं सुहागिनी
सुदूर , दूर गाँव, वन मचल रही हैं रागिनी//३//.
सावनी फुहार से धरा हुई हरीभरी.
मयूर नृत्य कर रहे हैं देख के जलद झरी.
युवा हिलोर से भरी छलक रही है गागरी .
प्यास-प्यास रट रहे पपीहरा , घरी-घरी..//४//
घोर वृष्टि से चली हैं फूट-फूट क्यारियाँ.
हो गई हैं ज्यों स्वतंत्र बंधनों से नारियाँ..
हो गई हैं ज्यों स्वतंत्र बंधनों से नारियाँ..
बूँद के प्रहार से झुकी लतायें डारियाँ
सह रहे हों संत जन ज्यों खलों की गारियाँ //५//
मघा के मेघ घूम-घूम पर्वतों पे जा रहे.
सह रहे हों संत जन ज्यों खलों की गारियाँ //५//
मघा के मेघ घूम-घूम पर्वतों पे जा रहे.
तृषित वसुंधरा की उग्र प्यास को बुझा रहे..
पवन बजाये ताल , वृक्ष झूम-झूम गा रहे.
छलक,छलक के ताल,स्रोत गीतगुनगुना रहे..//६//
छलक,छलक के ताल,स्रोत गीतगुनगुना रहे..//६//
उदयभानु तिवारी "मधुकर"
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