कहा श्री शुकदेव ने , राजन ! हरि मृदु बैन /
सुन सखियाँ प्रमुदित हुईं , आया मन को चैन // १//
सुन्दरता निधि संग से , हुआ मनोरथ पूर्ण /
प्राण प्रिय को परश कर , हुईं सखी सम्पूर्ण //२//
कृष्ण सेविका गोपियाँ , और प्रेयसी संग /
गलबहियाँ डारे खड़ीं , हिय उठ रही तरंग //३//
सखि रत्नों के संग में , श्रीकृष्ण भगवान /
रमणा रेती पर रचा , रास नृत्य अभियान //४//
हर दो गोपी मध्य हरि , गले में बाँहें डाल /
प्रगटे , रहे रहस्यमय , गोपी हुईं निहाल //५//
यद्यपि प्रगटे कृष्ण जी , सखि गणना अनुरूप /
सब सखियों को दिख रहा , केवल एक स्वरुप //६//
सखियों के मन में यही , होता था आभास /
उनके प्यारे कृष्ण तो , हैं उनके ही पास // ७//
हुये सहस्त्रों गोपियों , मध्य सुशोभित श्याम /
रास बिहारी ने किया , दिव्य रास आयाम //८//
देवयान की लग गई , नभमंडल में भीर /
निज निज घरनी संग सुर , प्रकटे धरे शरीर // ९//
रासोत्सव को देखने , नैना हुये अधीर /
मन उनके वश था नहीं , बने देव कुछ कीर // १०//
लता , हिरण , हिरणी बने , कुछ सुर पक्षी वृन्द /
बजीं दुन्दुभी स्वर्ग की , उमगा हिय आनन्द // ११//
देव पुष्प वर्षा करें , छिड़ा मधुर संगीत /
गंधर्वों सँग पत्नियाँ , मिल कर , गातीं गीत // १२//
लगा कृष्ण सँग नाचने , सारा गोपी वृन्द /
बजतीं धुन में तालियाँ , छलक रहा आनन्द //१३//
कंगन , करधन , पायलें , करतीं छुन्नक छुन्न /
मंजीरे स्वर-ताल में , करते किंनक किंन्न //१४//
अगणित सखि आभूषणों , की ध्वनि करे विभोर /
कृष्ण मुरलिया खींचती , मन को अपनी ओर //१५//
स्वर्णमणिंन के मध्य ज्यों , नीली शोभावान /
वैसे ब्रज सखि मध्य में, शोभित कृपानिधान //१६//
मुरलीधर ने छेड़ दी, निज मुरली की तान /
सखि फिरकी सी घूमतीं , तन , का भूला भान //१७//
कभी पैर आगे धरें , फिर पीछे हो जायँ /
झूम झूम कर नाचतीं , कटि उनकी बल खायँ //१८//
कभी नचातीं नैन वे , कभी चलातीं सैन /
करके तिरछी भौंह से , बोल रही थीं बैन //१९//
पवन लटों से खेलती , झुमके चूमें गाल /
जब झूमें स्तन हिलें , पग से देतीं ताल //२०//
नृत्य परिश्रम से छलक , चलीं स्वेद की बूँद /
सखियाँ टिकतीं कृष्ण से , लेतीं अखियाँ मूँद //२१//
जैसे जलनिधि में उठें , रह रह नीर तरंग /
वैसे सखियों के हृदय , उठती नृत्य उमंग //२२//
टूट टूट गजरे झरें , बिखरी सुमन सुगंध /
रस लोभी भँवरे उड़ें , छूटें नीवी बंध //२३//
श्याम घटायें चाँद पर , ज्यों आकर छा जायँ /
वैसे केशों की लटें , गालों पर लहरायँ //२४//
अधर मधुर मुस्कान भर , देखें हरि की ओर /
ज्यों रजनी में चाँद को , अपलक लखे चकोर //२५//
रासलीला नृत्य की , झाँकी थी अभिराम /
गोरी सखियाँ दामिनी , घन से लगते श्याम //२६//
गोपी जीवन प्रेम है , कान्हा प्रेमानन्द /
मोहे खग , नर , नाग सब , फैला सर्वानंद //२७//
नृत्य गान में कृष्ण से , सट सखि पातीं हर्ष /
हुईं परम आनन्दमय , पाकर हरि स्पर्श //२८//
वही राग औ रागिनी , गान और स्वर साज /
भक्तिभाव रस से निकल गूँज रहे हैं आज //२९//
कृष्ण संग कुछ गा रहीं , ऊँचे स्वर में गीत /
उनके स्वर आलाप सुन , वाह कहें मनमीत //३०//
ध्रुपद राग में दूसरी , ने छेड़ा संगीत /
वाह वाह श्री कृष्ण ने , कहा , लिया मन जीत //३१//
एक सखी को नृत्य से , लगने लगी थकान /
कंगन , गजरे पड़ गये , ढीले रहा न ज्ञान //३२//
वेणी से झरने लगे , बेला के मृदु फूल /
नृत्य गान में गिर गया , तन से खिसक दुकूल //३३//
बगल खड़े श्रीकृष्ण की , सखी ने थामी बाँह /
एक अन्य को दे रखी , पहले ही निज छाँह //३४//
उनकी सुन्दर बाँह थीं , दोनों चन्दन युक्त /
वे सखियाँ भी हो गईं , उस सुगन्ध से सिक्त //३५//
तन औ मन पुलकित हुये, लिया बाँह झट चूम /
मधुकर जिनकी चाह में , भक्त रहे हैं झूम //३६//
एक लीन थी नृत्य में , झूलें कुंडल लोल /
दर्शक रीझें देख छवि , सुन्दर लगें कपोल //३७//
उनको कृष्ण कपोल से , उसने दिया सटाय /
हरि ने मुख का पान ले , उसको दिया खिलाय //३८//
नाच रही थी एक सखी , कर नूपुर झंकार /
थकी , बगल में थे खड़े , उसके प्राणाधार //३९//
उनके तन से टिक गई , फिर ले उनका हाथ /
निज स्तन पर रख लिया , झुका लिया है माथ //४०//
राजन ! मिला न लक्ष्मी , को वह परमानन्द /
जैसा सखियाँ ले रहीं , हरि के सँग स्वच्छन्द //४१//
लक्ष्मी जी से श्रेष्ठ है , सखियों का संयोग /
प्रेम तत्व रस पा रहीं , जिसका बने न योग //४२//
कृष्ण को प्रियतम रूप में , पाकर हो स्वच्छन्द /
करने लगीं विहार सब , मुखरित होते छन्द //४३//
सारी सखियों के गले , पडी कृष्ण करमाल /
अद्भुत शोभा हो गई , उनकी हे महिपाल //४४//
सरसिज कुंडल कान में , लगते अति कमनीय /
घुँघराली लट गाल पर , झलक रहीं रमणीय //४५//
लगीं छलकने स्वेद की , बूँदे मुख में आय /
छटा निराली हो गई , वह छवि बरणि न जाय //४६//
सब सखियाँ थीं नृत्य में , लीन कृष्ण के सँग /
ध्वनि नूपुर , कंगन करें , चढ़ा रास रस रंग //४७//
वेणी से बेला झरें , बिखरी सुमन सुगंध /
पुलिन मंच सुरभित हुआ , खुले केश के बंध //४८//
उस अदभुत स्वर ताल में , अपना राग मिलाय /
झूम झूम हर फूल पर , मधुप रहे मन्नाय //४९//
परछाईं से खेलता , शिशु ज्यों रहित विकार /
वैसे सब सखि संग में , हरि करते खिलवार //५०//
हृदय लगाते थे कभी , करें अंग स्पर्श /
तिरछी चितवन कर बिहँस , उपजाते हिय हर्ष //५१//
इस प्रकार हरि ने किया , सखियों संग विहार /
सुनो परीक्षित ! देवगण , वह छवि रहे निहार //५२//
हरि के अंग स्पर्श से , सखियाँ भईं निहाल /
केश खुले, तन पर नहीं, चोली सकीं सम्भाल //५३//
अस्त-व्यस्त गहने बसन, तन की सुधि गई भूल /
मालाओं से गिर गये , टूट टूट के फूल //५४//
कृष्ण रास लीला निरख , भाव हुये उन्मुक्त /
देवि स्वर्ग की हो गईं , मिलन कामना युक्त //५५//
दृश्य देख यह चन्द्रमा , गृह , उड़गण समुदाय /
सभी अचंभित रह गये, छवि वह वरनि न जाय //५६//
कृष्ण स्वयं में पूर्ण हैं , सुनो परीक्षित भूप /
तब भी जितनी गोपियाँ , उतने धरे स्वरूप //५७//
नृत्य , गान श्रम से छलक , चलीं स्वेद की बूँद /
हरि सबके मुख पोंछते , नैन रहीं सखि मूँद //५८//
हरि करकमल स्पर्श से , तन की मिटी थकान /
आनन्दित सखियाँ हुईं , खिली अधर मुस्कान //५९//
सोने के कुण्डल ललित , शोभा रहे बढाय /
घुँघराली अलकावली , रहीं गाल पर छाय //६०//
तिरछी चितवन से किया, सखियों ने सम्मान /
सब मिल कर करने लगीं, हरि लीला गुणगान //६१//
थका हुआ गजराज ज्यों ,सरित तीर कर भंग /
कर प्रवेश जल राशि में , खेले हथिनी संग //६२//
वैसे वेदों से परे , श्री कृष्ण अखिलेश /
सब सखियों के संग में , जल में किया प्रवेश //६३//
सखि घर्षण से कृष्ण की , चिपट गई वन माल /
वक्षस्थल से लग हुई , वह केशर सी लाल //६४//
मन्नाते भौंरे उड़ें , ऐसा होता भान /
गाते हों गन्धर्व ज्यों , श्री कृष्ण यश गान //६५//
जल क्रीड़ा करने लगीं , सखियाँ हे भूपाल /
हरि पर नीर उलीचतीं , हँसी न सकीं सँभाल //६६//
चढ़े यान सुर देखते , हर्ष न हृदय समाय /
स्तुति कर श्रीकृष्ण की , सुमन रहे बरसाय //६७//
इस प्रकार श्रीकृष्ण ने , जल में किया विहार /
ज्यों हथिनी के वृन्द सँग , गज करता खिलवार //६८//
सखियों , भौरों से घिरे , पूर्णकाम योगेश /
फिर यमुना जल से निकल , वन में किया प्रवेश //६९//
दृश्य बड़ा रमणीय था , जल , थल में थे फूल /
सुमन सुगंध बिखेरती , चले पवन अनुकूल //७०//
जैसे हथिनी वृन्द सँग , वन विचरे गजराज /
वैसे ही हरि शोभते , सुनो परीक्षित राज //७१//
शरद पूर्णिमा में हुईं , बहुत रात्रियाँ एक /
जिसका वर्णन आज तक , करते काव्य अनेक //७२//
हुई रजत सी चाँदनी , शोभा अति कमनीय /
उपमा दे दे कवि थके , छवि वरणत रमणीय //७३//
उस रजनी में प्रेयसी , सखियों सँग भगवान /
चिन्मय लीला से किया , पूर्णकाम सज्ञान //७४//
काम भाव अरु चेष्टा , कर अपने आधीन /
सब सखियों को कर लिया , बंशीधुन में लीन //७५//
जीवों पर करने कृपा , लेते हरि अवतार /
लीलायें लख भक्तगण , निज को देते वार //७६//
गोप देखते कृष्ण को , दोषबुद्धि से हीन /
उनको दिखतीं गोपियाँ , गृह कारज में लीन //७७//
हरि की माया ही उन्हें , करा रही आभास /
उनकी प्यारी पत्नियाँ , दिखतीं उन्हें सकाश //७८//
ब्रह्मरात्रि सम बढ़ हु ई , हरि लीला की याम /
भोर हुआ हरि गोपियाँ , भिजवाये ब्रजधाम //७९//
सुनो परीक्षित ! जो करे , रास नृत्य गुणगान /
औ हरिलीला भक्त जो, श्रवण करे धर ध्यान //८०//
परा भक्ति श्रीकृष्ण के , चरणों की पा जाय /
सब विकार मन के मिटें, मधुकर हरि रस पाय //८१//
उदयभानु तिवारी मधुकर
दत्त एवेन्यू फ्लैट न० ५०१
नेपियर टाउन जबलपुर
मो० ९४२४३२३२९७