
जगन्नाथ भगवान
आ जाओ हे जगन्नाथ, तुम्हें कर्मा बुलाती है
जो भीर खड़ी तेरे द्वार ,मेरा उपहास उड़ाती है
बरसें ये नयन ,लगी तुमसे लगन
ओ प्यारे जगन अब तो आजा
कर हारी यतन ,नहीं होता मिलन
ले आई मैं खिचड़ी खाजा
मन बसा तुम्हारे साथ,दरश की ललक न जाती है
आ जाओ हे जगन्नाथ --------------------------//1//
देखी हरि ने लगन,चले बनके ललन
आये दर पे ये टेर लगाई
बढ़ी क्षुधा अगन, भूखा तेरा जगन
कुछ खाने को दे कर्मा माई
जो थाल लिये निज हाथ,मुझे क्यों नहीं खिलाती है
आ जाओ हे जगन्नाथ -------------------------//२//
सुन कर ये वचन , हुई कर्मा मगन
थाल खिचड़ी की वह ले आई
बुझी हिय की तपन,बोली खा ले ललन
प्रेम से हरि ने खिचड़ी खाई
बन आते जगन जगन्नाथ , जब वह भोग लगाती है
आ जाओ हे जगन्नाथ ---------------------//३//
पा रहे जगन , भोजन इक दिन,
घंटा ध्वनि पड़ी सुनाई
मुह धोया ना , गिरा पीताम्बर ,
जगन ने दौड़ लगाईं
पीताम्बर लेकर हाथ , कर्मा पीछे जाती है
आ जाओ हे जगन्नाथ -------------------------//४//
मन्दिर जा कर कहा बसन
ये वहीं गिरा कर आये
मुँह भी धोया नहीं
अधूरी थाल छोड़ कर आये
दे बसन झुकाया माथ , जगन छवि लख मुस्काती है
आ जाओ हे जगन्नाथ ---------------------------//५//
मधुकर भक्त, पुजारी यह
सब दृश्य देख चकराये
हाथ जोड़ वे बोले हे माँ
तुम्हें समझ ना पाये
अब रहो यहीं तुम साथ , भीर सब उसे मनाती है
आ जाओ हे जगन्नाथ --------------------------//६//
उदयभानु तिवारी मधुकर