काव्य सृजन किसी अन्यान्य सृजनधर्मी मित्र के लिए बौद्धिक विलास अथवा रूचि मात्र हो सकता है... किन्तु उनमे से कुछ ही होते हैं जिनके लिए साहित्य ही साधना बन जाती है.. अपने इष्ट और गुरुओं के शुभाशीष का फल मानता हूँ...इन काव्य रचनाओं का सृजन, मेरे लिए एक साधना है और उनके श्री चरणों में श्रद्धा सुमन भी.. आनंद लें 'मधुकर के कुसुम' का...जो आप सभी सुधि पाठकों को अलग अलग विधा में स्तोत्र , गीत, भजन और स्तुतियों के रूप में पढ़ने को मिलेंगी .!!!
Monday, 24 May 2021
अमृत वाणी (आदि सृष्टि वर्णन )
अमृत वाणी (आदि सृष्टि वर्णन )
कह के मधुकर बात ज्ञानकी अंतःकरण जगायेगा |
अगर नहीं अनुराग हृदय में कुछ भी समझ न आएगा ||
कौन मूल है ब्रम्हा का भी किसने जगत रचाया है |
है अनन्त ब्रम्हाण्ड ये किसका ,अन्तन कोई पाया है ||
उस ईश्वर की छवि मनहारी ,जिसमें ध्यानी खो जाता |
उसमें जो रस पाता उसको फिर यह जगत नहीं भाता ||
उन भावों के शब्द विहग ,मधुकर मन में कलरव करते |
जब आता अनुराग हृदय में पंक्ति बद्ध होकर झरते ||
व्याप्तब्रम्हजो कण-कण में,अद्वैत,अलख नभप्रतिछाया |
बनूँ अनेक एक से बढ़ ,संकल्प किया प्रगटी माया ||
क्षीर सिन्धु निर्माण किया ,सत सगुण रूप में जब आया |
शेषनाग की सैया पर ,श्री विष्णु रूप निज झलकाया ||
हुये चतुर्भुज चक्रसुदर्शन ,गदा,पद्म अरु शङ्ख लिये |
योग क्रिया विस्तारी ,रजगुण तमगुण को साकार किये ||
करने जग विस्तार नाभि से ,नीरज एक निकल आया |
चतुर्मुखी ब्रम्हा ने उस पर ,अपने को बैठा पाया ||
कमलासीन हुये ब्रम्हा के मन में यह विचार आया |
मैं हूँ कौन और यह अम्बुज ,निकल कहाँ से विकसाया ||
चले खोजने मूल कमल का ,उसका अन्त नहीं पाया |
तब आ बैठे पुनः कमल पर ,ध्यान भाव मन में आया ||
देखा ध्यान लगाकर नीरज ,विष्णुनाभ से आया है |
पाया यह संकेत ध्यान में ,जग हित तुम्हें रचाया है ||
किया सृष्टि की रचना इससे ब्रम्हा सृष्टा कहलाया |
कर्मों पर आधारित फल सब ,निज रचना में वह लाया ||
सत ,रज,तम ये तीनों गुण में ,उसकी अद्भुत है माया |
रहे याद ना पूर्व जन्म की ,इस कारण जग भरमाया ||
योगेश्वर की अमृतवाणी ,कर स्थिर चित सुन लेना |
अगर ईश में श्रद्धा है तो भावसुमन कुछ चुन लेना ||
सृष्टि ईश का कम्प्यूटर है ,प्राणी प्रोग्राम उसका |
पूर्वकर्म ने उसे बनाया ,मन संचालक है तन का ||
लिखा भाग्य में जो प्राणी के ,सुफल ,कुफल वह पाता है |
और प्राप्त करने की इच्छा ,से जग में बँध जाता है ||
इच्छायें ही बंधन हैं ,मानव से कर्म कराती हैं |
पूर्व कर्मफल पर आधारित ,जग में मंच दिलाती हैं ||
प्रोग्राम प्राणी में है जो, वह बदला ना जायेगा |
चाहे जितना जोर लगाले ,पिछले फल तो पायेगा ||
नहीं दैव के वश में कुछ भी ,मन फल का निर्माता है |
दैव न कोई दुःख मिटाये ,वह तो भोग प्रदाता है ||
सुख पाने की चाहत तन से ,जितने कर्म करायेगी |
उतने ही गहरे ये मन को ,दुनियाँ में उलझायेगी ||
करते जो सत्संग भजन में ,अपना ध्यान लगते हैं |
किन्तु भोग की इच्छाओं को ,मन से त्याग न पाते हैं ||
वही स्वर्ग में जाकर देवों ,के दुर्लभ फल पाते हैं |
पुण्य क्षीण होते ही धरती ,में वापस गिर जाते हैं ||
कौन देह के अन्दर रहता वह क्या कर्म कराता है |
कहता हूँ आगे प्राणी से ,गुण क्या क्या करवाता है ||
मन रहता है तन के अन्दर ,भोग देह के पाता है |
इसे न देखे जग में कोई ,तन रथ यही चलाता है ||
यह मन ही सब दुख का कारण,ये जिसमें राम जाता है |
उससे ही प्रेरित होकर यह ,तन से कर्म कराता है ||
मन आत्मा के संग रहे जो ,वही अमरता पाता है |
फँसे कुसंगति में तो आत्मा ,पतन मार्ग में जाता है ||
सतगुण सत के पंथ लगाए यही स्वर्ग ले जाता है |
गुणातीत निस्पृह प्राणी तो ,निगुण ब्रम्ह्पद पाता है ||
रजगुण भोगासक्त कराये ,कर्म सकाम कराता है |
विषय भोग में मन उलझा कर और और ललचाता है ||
बढ़े मोह मत्सर प्राणी में ,अहंकार प्रगटाता है |
स्वार्थ भावना मन में आये ,सबसे द्रोह कराता है||
रजगुण के आकांक्षी दुख से ,मुक्त नहीं हो पाते हैं |
यहीं जन्मते मरते नाना ,तन में आते जाते हैं ||
तमगुण ढाँके ज्ञान जीव का नीद प्रमाद बढाता है |
क्रोधी ब्यसनी यही बनाए,बुद्धि विवेक नशाता है ||
तमोगुणी मानव का तन तज ,अधम योनियों में जाते |
कीट पतंग अचर बनकर वे ,जन्म मरण का दुख पाते ||
आत्मा रथी सारथी यह मन ,जब अपने वश ना आये |
घोड़े तन की सभी इन्द्रियाँ ,उनसे यह मन रस पाये ||
जिस इन्द्रिय में मन सुख पाए ,लिप्त उसी में हो जाता |
यही विषय हैं कारण जिससे ,प्राणी नया जनम पाता ||
जिन विषयों में मन रम जाता ,फल उसका ही पाता है |
पूर्व कर्म निज भूला बन्दा ,दैव को दोष लगाता है ||
जैसे कर्म करोगे वैसे कर्ता बन कर आओगे |
वैसे ही संयोग बनेंगे ,वैसे ही फल पाओगे ||
डॉ उदयभानु तिवारी मधुकर
उदयभानु तिवारी मधुकर
५०१ दत्तएवेन्यू अपार्टमेंट
नेपियर टाउन,जबलपुर
मो० ९४२४३२३२९७
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