पंछी उड़कर चला अकेला
पंछी उड़ कर चला अकेला /
पीछे छोड़ा जग का मेला //
सन उनीस सौ पचास की दश , जनवरी बेला आई /
धरा के रैन बसेरे में , पंछी ने झलक दिखाई
छब्बिस मई बीस सौ सोलह , ने कर दिया झमेला
पंछी उड़कर ---------------------------------------------//
है अम्बर में घर पंछी का , धरा है रैन बसेरा
लौटे जग में जब इच्छायें , मन पर डालें डेरा
आने जाने की गति करती , पंछी दल से खेला
पंछी उड़कर --------------------------------------------//
स्वजनों से मिल प्रीति बढाकर,ज्ञान की ज्योति जलाई
अगम काव्य धारा में हमने , डुबकी खूब लगाई
रहे संग में जब तक हम पर प्रेम का रंग उड़ेला
पंछी उड़कर -------------------------------------------//
परमब्रम्ह से मिलने का जब, पूर्तिकाल आ जाये
तब संयोग बनाते सद्गुरु , घर की याद सताये
उघरें पटल हृदय के त्यागे , फिर वह जग का मेला
पंछी उड़कर ----------------------------------------- //
तन पिंजरे को छोड़ के सबसे , अपना नाता तोड़े
बिलखें परिजन , संगी ,पंछी , उन सबसे मुख मोड़े
विछुड़न वेला में अँखियन से , बहा अश्रु का रेला
पंछी उड़कर -----------------------------------------//
जहाँ काव्य रस धारा बहती , याद आपकी आती
झुक जाता है शीश ये अँखियाँ , दोनों नम हो जातीं
मधुकर जोरि पाणि अर्पित, कर रहे सुमन के झेला
पंछी उड़कर ----------------------------------------//
डॉ उदयभानुतिवारी मधुकर
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