Sunday, 23 April 2017













पंछी उड़कर चला अकेला

पंछी उड़ कर चला अकेला /
पीछे छोड़ा जग का  मेला //

सन  उनीस  सौ  पचास  की  दश  , जनवरी   बेला  आई /
धरा   के   रैन   बसेरे    में , पंछी   ने   झलक    दिखाई 
छब्बिस  मई   बीस   सौ  सोलह , ने  कर  दिया झमेला 
 पंछी उड़कर ---------------------------------------------//

है  अम्बर   में   घर   पंछी   का ,  धरा  है   रैन   बसेरा 
लौटे  जग   में   जब   इच्छायें ,  मन   पर   डालें   डेरा 
आने   जाने   की   गति   करती , पंछी   दल  से  खेला 
पंछी उड़कर --------------------------------------------//

स्वजनों से मिल प्रीति बढाकर,ज्ञान की ज्योति जलाई 
अगम  काव्य   धारा  में  हमने ,  डुबकी  खूब   लगाई 
रहे  संग  में  जब  तक  हम  पर  प्रेम  का  रंग  उड़ेला 
पंछी उड़कर -------------------------------------------//

परमब्रम्ह  से  मिलने  का  जब,  पूर्तिकाल  आ  जाये 
तब  संयोग  बनाते  सद्गुरु , घर   की   याद   सताये 
उघरें  पटल  हृदय के  त्यागे , फिर वह  जग का मेला 
पंछी उड़कर ----------------------------------------- //

तन  पिंजरे  को  छोड़  के  सबसे , अपना  नाता तोड़े 
बिलखें  परिजन , संगी ,पंछी , उन सबसे  मुख मोड़े 
विछुड़न  वेला में अँखियन  से , बहा  अश्रु  का  रेला 
पंछी उड़कर -----------------------------------------//

जहाँ  काव्य  रस  धारा  बहती , याद  आपकी आती 
झुक जाता है शीश ये अँखियाँ , दोनों  नम हो जातीं 
मधुकर जोरि पाणि अर्पित, कर रहे सुमन के  झेला 
पंछी उड़कर ----------------------------------------//

                            डॉ उदयभानुतिवारी मधुकर 






 

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