Friday, 30 September 2011

हे चक्र सुदर्शन कर धारी














    हे चक्र सुदर्शन कर धारी
हे श्रीक्रष्ण हे गिरिधारी ;हे क्रष्ण मुरारी अविकारी /
तेरी इस माया नगरी में हैं भ्रमित देव मुनि संसारी /
       तुम प्रकृतिनटी  जग के नायक
                मैं राही तुम आश्रय दायक /
                     तुम धनुष और मैं हूँ सायक
                         मैं कर्म ;भाग्य तुम निर्णायक
हे असुर निकंदन त्रिपुरारी ;भव मोह हरो हे बनवारी /
तेरी इस माया नगरी में ;हैं भ्रमित देव मुनि संसारी //१//
       तुम मोहमुक्त निर्गुण ;समीर
           मैं मोहजाल में  फँसा कीर
               तुम आनंदघन ;मैं बहत नीर
                   कलिक्लेश करे मन को अधीर
हे अलखनिरंजन अघहारी ;बढ़ रहीं वृत्तियाँ असुरारी
तेरी इस माया नगरी में ;हैं भ्रमित देव मुनि संसारी //२//
        तुम निराकार ;हर कण कण में
               मैं भटक रहा हूँ हर  क्षण में
                       है सत्ता तेरी हर त्रण में
                            तुम  देते शक्ति समर्पण में
हे दुरागम्य अद्भुतकारी ;हे   लीलाधर     धर्माचारी /
तेरी इस माया नगरी में ;हैं भ्रमित देव मुनि संसारी //३//
         तुम सारथि हो मैं हूँ स्यंदन
              मन अश्व सँभालो यदुनंदन
                   तुम भक्तों के चित के चन्दन
                       युग करे तुम्हारा अभिनन्दन
हे चक्रसुदर्शन कर धारी ;मधुकर सदगुरु ;कलिमलहारी /
तेरी इस माया नगरी में ;हैं भ्रमित देव मुनि संसारी //४//

उदयभानु तिवारी "मधुकर"

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