हे चक्र सुदर्शन कर धारी
हे श्रीक्रष्ण हे गिरिधारी ;हे क्रष्ण मुरारी अविकारी /
तेरी इस माया नगरी में हैं भ्रमित देव मुनि संसारी /
तुम प्रकृतिनटी जग के नायक
मैं राही तुम आश्रय दायक /
तुम धनुष और मैं हूँ सायक
मैं कर्म ;भाग्य तुम निर्णायक
हे असुर निकंदन त्रिपुरारी ;भव मोह हरो हे बनवारी /
तेरी इस माया नगरी में ;हैं भ्रमित देव मुनि संसारी //१//
तुम मोहमुक्त निर्गुण ;समीर
मैं मोहजाल में फँसा कीर
तुम आनंदघन ;मैं बहत नीर
कलिक्लेश करे मन को अधीर
हे अलखनिरंजन अघहारी ;बढ़ रहीं वृत्तियाँ असुरारी
तेरी इस माया नगरी में ;हैं भ्रमित देव मुनि संसारी //२//
तुम निराकार ;हर कण कण में
मैं भटक रहा हूँ हर क्षण में
है सत्ता तेरी हर त्रण में
तुम देते शक्ति समर्पण में
हे दुरागम्य अद्भुतकारी ;हे लीलाधर धर्माचारी /
तेरी इस माया नगरी में ;हैं भ्रमित देव मुनि संसारी //३//
तुम सारथि हो मैं हूँ स्यंदन
मन अश्व सँभालो यदुनंदन
तुम भक्तों के चित के चन्दन
युग करे तुम्हारा अभिनन्दन
हे चक्रसुदर्शन कर धारी ;मधुकर सदगुरु ;कलिमलहारी /
तेरी इस माया नगरी में ;हैं भ्रमित देव मुनि संसारी //४//
उदयभानु तिवारी "मधुकर"
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