चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर
मौसम सुहाना है मन है किशोर /
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //१//
दूषित है नीर तपे शहर ज्यों अवा रे
गावों की झुरमुट में ठंडी हवा रे
हरियाली देख उठे मनमें हिलोर
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //१//
वहाँ हँसें फूल यहाँ धूळ के गुबारे
बिजली है यहाँ; वहाँ चाँद औ सितारे
झुक झुक के गगन झरे पवन करे शोर
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //२//
सोंधी है माटी नदी का किनारा
दुर्गंधित नालों से घिरा शहर सारा
शहरों में घुटन और सक्रिय हैं चोर
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //३//
गोरी जुन्हैया की दूधी चदरिया
दूर दूर गावों में देखे नजरिया
वहाँ शांति शहरों में वाहन का शोर
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //४//
भोर भये गावों में चहकें चिरैयाँ
सूरज की प्रथम किरण लेतीं बलैयाँ
मुतियन में नजरों की उलझ गई डोर
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //५//
शहरों में तपन वहाँ पीपल की छैयाँ
मानवता गाँव बसी शहरों में नैयाँ
मच्छर समूहों से चले नहीं जोर
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //६//
खेतों की फसलों में चलते फुहारे
सावन की छटा बिना धानी छटा रे
प्रक्रति छटा रसिकों का मन है चकोर
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //७//
शहरों में बदल गईं गावों की गलियाँ
मन में उमंगों की उठती लहरियाँ
बढती मँहगाई का मिले नहीं छोर
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //८//
धन दात्री देवी की दुनियाँ दीवानी
सरस्वती दूर जाय वन में हिरानी
मधुकर रे काजल बिन सूनी है कोर
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //९//
उदयभानु तिवारी "मधुकर"
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //१//
दूषित है नीर तपे शहर ज्यों अवा रे
गावों की झुरमुट में ठंडी हवा रे
हरियाली देख उठे मनमें हिलोर
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //१//
वहाँ हँसें फूल यहाँ धूळ के गुबारे
बिजली है यहाँ; वहाँ चाँद औ सितारे
झुक झुक के गगन झरे पवन करे शोर
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //२//
सोंधी है माटी नदी का किनारा
दुर्गंधित नालों से घिरा शहर सारा
शहरों में घुटन और सक्रिय हैं चोर
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //३//
गोरी जुन्हैया की दूधी चदरिया
दूर दूर गावों में देखे नजरिया
वहाँ शांति शहरों में वाहन का शोर
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //४//
भोर भये गावों में चहकें चिरैयाँ
सूरज की प्रथम किरण लेतीं बलैयाँ
मुतियन में नजरों की उलझ गई डोर
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //५//
शहरों में तपन वहाँ पीपल की छैयाँ
मानवता गाँव बसी शहरों में नैयाँ
मच्छर समूहों से चले नहीं जोर
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //६//
खेतों की फसलों में चलते फुहारे
सावन की छटा बिना धानी छटा रे
प्रक्रति छटा रसिकों का मन है चकोर
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //७//
शहरों में बदल गईं गावों की गलियाँ
मन में उमंगों की उठती लहरियाँ
बढती मँहगाई का मिले नहीं छोर
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //८//
धन दात्री देवी की दुनियाँ दीवानी
सरस्वती दूर जाय वन में हिरानी
मधुकर रे काजल बिन सूनी है कोर
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //९//
उदयभानु तिवारी "मधुकर"
sundar
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