Tuesday, 27 September 2011

चलो चलें शहर छोड़ गाँव की ओर

          

      चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर
मौसम   सुहाना   है मन  है किशोर /
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //१//

दूषित है नीर तपे शहर ज्यों अवा रे
गावों की झुरमुट    में ठंडी  हवा रे
हरियाली देख उठे     मनमें हिलोर
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //१//

वहाँ हँसें फूल   यहाँ   धूळ   के    गुबारे
बिजली है  यहाँ; वहाँ चाँद    औ सितारे
झुक झुक के गगन झरे पवन करे शोर
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //२//

सोंधी है  माटी    नदी    का    किनारा
दुर्गंधित नालों   से घिरा     शहर सारा
शहरों में घुटन   और   सक्रिय   हैं चोर
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //३//

गोरी जुन्हैया   की    दूधी    चदरिया
दूर दूर    गावों   में   देखे    नजरिया
वहाँ शांति शहरों में   वाहन   का शोर
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //४//

भोर भये गावों   में   चहकें    चिरैयाँ
सूरज की प्रथम  किरण   लेतीं बलैयाँ
मुतियन में नजरों  की उलझ गई डोर
 चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //५//

शहरों में तपन वहाँ  पीपल की छैयाँ
मानवता गाँव बसी    शहरों में नैयाँ
मच्छर   समूहों   से  चले नहीं जोर
चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //६//

खेतों की  फसलों   में    चलते फुहारे
सावन की छटा बिना   धानी   छटा रे
प्रक्रति छटा रसिकों का मन है चकोर
 चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //७//

शहरों में बदल गईं गावों की गलियाँ
मन में उमंगों की   उठती   लहरियाँ
बढती मँहगाई   का   मिले नहीं छोर
  चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //८//

धन दात्री देवी की दुनियाँ दीवानी
सरस्वती दूर जाय वन में हिरानी
मधुकर रे काजल बिन सूनी है कोर
    चलो चलें शहर छोड़ गावों की ओर //९//
 

                     उदयभानु तिवारी "मधुकर"                    





1 comment: