जीव पथिक है इस देही में ;तन त्यागे तो मत रोना /
लौट जगत में जब आएगा ;होगा तपा हुआ सोना //
जीव देह में जब तक रहता ; हँसता रोता गाता है
देह बंध से छूट गया तो ;नहीं किसी से नाता है
इस नश्वर तन के हित बन्दे ;कभी न तुम विचलित होना
जीव पथिक है इस देही में ; तन त्यागे तो मत रोना //१//
कर्मों के फल सँग सँग चलते ;संचित धन नहिं चलता है
जो कुछ दान किया है जिसने ; वह उसको ही मिलता है
यह जग है माया का फंदा ;मोह निशा में मत सोना
जीव पथिक है इस देही में ; तन त्यागे तो मत रोना //२//
जग के फल आकर्षित करते ; अंत सभी के दुखदाई
इससे इनको त्याग भजन कर परम ब्रह्म जो सुखदाई
जिससे चमक रहा तेरे अन्दर ;अन्दर का कोना कोना
जीव पथिक है इस देही में ;तन त्यागे तो मतरोना //३//
जन्म मरण सबको दुखदाई ;तन ही जग का बंधन है
सत;ऱज ;तामस गुण में ही तो सब जग करता क्रंदन है
इससे मुक्ति चाहते हो तो; गुण में लिप्त नहीं होना
जीव पथिक है इस देही में; तन त्यागे तो मत रोना //४//
जग में रह विरक्त हो बन्दे ; जाग उसे ही पाने को
जो जग में है व्याप्त बुलाता; निज में तुझे मिलाने को
मधुकर वह सदगुरु बन आता ;उसकी संगत मत खोना जीव पथिक है इस देही में; तन त्यागे तो मत रोना //५ // उदयभानु तिवारी "मधुकर"
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