हे अखिल सृष्टि के अधिनायक
हे अखिल सृष्टि के अधिनायक ;भाव मुक्ति प्रदाता तुम्हें नमन /
मैं नर हूँ तुम नारायण हो सब सृष्टि जगत है तेरा चमन//
तुम परम ब्रह्म मैं जीव सगुण ; माया में लिपटा है यह तन /
तुम दिव्य तेज मैं तेरी किरण ;तुम ज्वाला हो मैं तेरी अगन //
मैं बहती पवन तुम हो चन्दन ;तुमसे महके वीरान चमन /
तुम शीतल जल मैं मीन मगन ;मुझको है तेरा अवलंबन //
मैं हूँ चकोर तुम चन्द्र किरण ;मैं मंत्र जाप तुम वशीकरण
हे अखिल सृष्टि के अधिनायक भाव मुक्ति प्रदाता तुम्हें नमन //१//
तुम शांत सिन्धु मैं उच्छ्र्नखल;निर्झर सा चंचल हूँ प्रतिपल
तुम पूर्ण ब्रह्म निर्गुण निश्छल ;मैं हूँ नश्वर तुम बिन निर्बल
तुम आदिशक्ति के संचालक ;भक्तों के तुम हो प्रतिपालक
तुम इष्ट और मैं हूँ साधक ;तुम देव हो मैं हूँ आराधक
मैं ह्रदय और तुम स्पंदन ;मैं अंक और तुम समीकरण/
हे अखिल सृष्टि के अधिनायक भवमुक्ति प्रदाता तुम्हें नमन //२//
तुम सरवर हो मैं हूँ नीरज ;मैं साह्स हूँ तुम हो धीरज
तुम पर्वत हो मैं हूँ पग ऱज ;तुम कारण हो मैं हूँ कारज
तुम वीणा के स्वर की लहरी ;जो अन्तरंग होकर ठहरी
तुम नैन के कोरों की कजरी;मैं साधक तेरा हूँ प्रहरी
तुम यज्ञ और मैं तेरा हवन ;तुम वेद तत्त्व गीता के वरन
हे अखिल सृष्टि के अधिनायक ;भवमुक्ति प्रदाता तुम्हें नमन //३//
तुम मूरति हो मैं हूँ मंदिर ;मैं तेरी रचना अति सुन्दर
मैं पीर और तुम पैगम्बर ;तुम ईशा और मैं गिरजाघर
सब धर्मों की है एक डगर ;सत्कर्म ;भक्ति है तेरा घर
तुमही सचराचर के अन्दर ;सब तुमसे मिलें कर अंत सफ़र
मैं छन्द और तुम व्याकरण मैं प्रश्न और तुम निराकारण
हे अखिल सृष्टि के अधिनायक ;भवमुक्ति प्रदाता तुम्हें नमन //४//
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