Monday, 3 October 2011

अधिनायक














हे अखिल सृष्टि के अधिनायक

हे अखिल सृष्टि के अधिनायक
हे अखिल सृष्टि के अधिनायक ;भाव मुक्ति प्रदाता तुम्हें नमन /
मैं नर हूँ तुम नारायण हो  सब   सृष्टि   जगत है  तेरा चमन//

तुम परम ब्रह्म मैं जीव सगुण ; माया   में  लिपटा है यह तन /
तुम दिव्य तेज मैं तेरी किरण ;तुम ज्वाला हो मैं तेरी अगन //
मैं बहती पवन तुम हो चन्दन ;तुमसे  महके   वीरान चमन /
तुम शीतल जल मैं मीन मगन ;मुझको   है  तेरा अवलंबन //

मैं हूँ चकोर तुम चन्द्र किरण ;मैं मंत्र जाप तुम   वशीकरण
हे अखिल सृष्टि के अधिनायक भाव मुक्ति प्रदाता तुम्हें नमन //१//

तुम शांत सिन्धु मैं उच्छ्र्नखल;निर्झर सा चंचल हूँ प्रतिपल
तुम पूर्ण ब्रह्म निर्गुण निश्छल ;मैं हूँ नश्वर तुम बिन   निर्बल
तुम आदिशक्ति के संचालक ;भक्तों  के  तुम  हो प्रतिपालक
तुम इष्ट और मैं हूँ साधक ;तुम देव हो मैं   हूँ     आराधक

मैं ह्रदय और तुम स्पंदन ;मैं अंक  और     तुम   समीकरण/
हे अखिल  सृष्टि के अधिनायक भवमुक्ति प्रदाता तुम्हें नमन //२//

तुम सरवर हो मैं हूँ नीरज ;मैं साह्स    हूँ तुम हो धीरज
तुम पर्वत हो मैं हूँ पग ऱज ;तुम  कारण हो मैं हूँ कारज
तुम वीणा के स्वर की लहरी ;जो अन्तरंग होकर ठहरी
तुम नैन के कोरों की  कजरी;मैं     साधक तेरा हूँ प्रहरी

तुम यज्ञ और मैं तेरा हवन ;तुम वेद  तत्त्व  गीता    के वरन
हे अखिल सृष्टि के अधिनायक ;भवमुक्ति  प्रदाता तुम्हें नमन //३//

तुम मूरति हो मैं हूँ मंदिर ;मैं तेरी   रचना   अति     सुन्दर
मैं पीर और तुम पैगम्बर ;तुम ईशा   और  मैं    गिरजाघर
सब धर्मों की है एक डगर ;सत्कर्म   ;भक्ति   है   तेरा   घर
तुमही सचराचर के अन्दर ;सब तुमसे मिलें कर अंत सफ़र

मैं छन्द और तुम व्याकरण मैं  प्रश्न  और तुम   निराकारण
हे अखिल सृष्टि के अधिनायक ;भवमुक्ति प्रदाता तुम्हें नमन //४//   

    

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