Friday, 14 October 2011

हरित क्रांति

  

                                                                       
                                                                  हरित क्रांति


जग हो हरित  , हरित हो जीवन ,ऐसी धार    बहाना है/

प्रकृति करे श्रँगार  स्वर्ग को इस धरती पर लाना है //


लहर लहर लहराये धरती,की    सुन्दर   धानी       चूनर/
शोभित हों मालाएँ बन कर   ,इसके     पर्वत तुंग शिखर//
नदियों की कल कल ध्वनि में अब ,गीत सृजन के गाना है /
प्रकृति  करे श्रँगार  स्वर्ग को   इस  धरती  पर   लाना है //१//

हरे घने जंगल की  शोभा,  देख देख  घन   घिर   आएँ/
होकर आकर्षित नभ मंडल, से झुक झुक जल बरसाएँ//
तप्त धरा की तपन मिटाने नित नव वृक्ष     लगाना है /
प्रकृति  करे श्रँगार  स्वर्ग को   इस  धरती  पर   लाना है //२//

लता कुञ्ज तरुओं पर कोयल बैठ बैठ गाना गाएँ
पंछी कलरव करें   मयूरों    से जंगल  शोभा पाएँ
मधुवन हो जाएँ सब जंगल ऐसे भाव जगाना  है
प्रकृति  करे श्रँगार  स्वर्ग को   इस  धरती  पर लाना है //३//

सजी दुल्हन श्रँगार देख कर अम्बर नीचे झुक आए
सुरभित सुमन सुगंध सुहानी  प्रेम प्रवाह बढ़ा जाए
प़िया को प्रीतम से मिलवाने मिल बारात सजाना है
प्रकृति  करे श्रँगार  स्वर्ग को   इस  धरती  पर लाना है //४//

हरे गाँव   हों हरे   खेत हों शहर   बीच हरियाली हो /
मिटे प्रदूषण तुम्ही  अपनी बगिया के यदि माली हो //
''मधुकर ''हरित क्रांति फैलाने  जन में जाग्रति लाना है /
प्रकृति  करे श्रँगार  स्वर्ग को   इस  धरती  पर लाना है //5//

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उदयभानु तिवारी "मधुकर"

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