हास्य रचना
एक बार दिल्ली सम्मलेन में आए थे
बड़े बड़े धीर औ धुरंधर भी आए थे
उनके बीच मित्र मुझे खींच के ले आए थे
हम तो यह दृष्य देखते ही सकुचाये थे//१//
मुख्य सीट मंत्री की एक जगह ख़ालीथी
उसको कुछ मित्रों ने जतन से संभाली थी
सजावट थी नगरी में छाई खुशहाली थी
जगमग थी राहों में मानो दीवाली थी//२//
मिल करके सबने फिरमुझको बुलाया था
बहुमत से सबने उस लायक ठहराया था
अनेक जतन करके मैंने ठुकराया था
गद्दी पर मिलकर के जबरन बैठाया था//३//
मैंने कहा सीट हम सम्हाल नहीं पायेंगे
सबने कहा हाथ हम पीछे लगायेंगे
अगले दरवाजे पै आप को बैठायेंगे
पिछले दरवाजे से लाखों कमायेंगे//४//
हमने कहा जनता से छल न कर पायेंगे
हमतो यह सीट छोड़ आज चले जायेंगे
बोले आइंदा फिर आप को न लायेंगे
सीट छोड़ सच मुच में बहुतै पछतायेंगे //५//
इतने में किसी ने दरवाजा खटकाया था
स्वप्नों की नगरी से लौट के मैं आया था
नीद खुली बिस्तर पै बहुतै पछताया था
फूट गये भाग सीट छोड़ के क्यों आया था //६//
डॉ उदयभानु तिवारी'' मधुकर ''
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