प्रातः प्रकृति चित्रण
प्रात ऊषा है सुनहरी भरगए पथ में उजाले
मन्द बहती है पवन मन प्रकृति के गुण गीत गाले
गूंजती है धुन प्रभाती
सरित सरवर के किनारे
नर्मदे हर गौरिशंकर
शब्द लगते कर्ण प्यारे
प्रात वेला पर्व है जा डूब सरिता में नहाले /
मन्द बहती है पवन मन प्रक्रति के गुण गीत गाले //१//
कुञ्ज में कलरव करें खग
गुन गुनाते भ्रंग कारे
खिल रहीं कमलों की कलियाँ
पात में मोती सँवारे
उड़ गए माया के मोती जब प्रभा ने जाल डाले /
मंद बहती है पवन मन प्रक्रति के गुन गीत गले//
बाग़ ;उपवन; वाटिका
सुरभित हुईं पग पग लताएँ
भर गई रसगंध मोहक
हो गईं स्वर्णिम दिशाएं
प्रक्रति की अनुपम छटा से ह्रदय को अपने सजाले
मंद बहती है पवन मन प्रक्रति के गुन गीत गले//३//
झील; सरवर; श्रोत ; सरिता
;पर्वतों की श्रंखलायें
हैं मनोरम द्रश्य कितने
देख तन मन को रिझाएँ
श्रजन कर्ता की अलख छवि ध्यान धार धूनी रमाले/
मंद बहती है पवन मन प्रक्रति के गुन गीत गाले//४//
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