शरद ऋतु
बीती बरखा आई दिवाली ;गगन विलाने बादरवा
ऋतु रस भर गए सगरवा
चारु चन्द्र पूनम का लागे
जल में पड़ी किरण खेलें
अमृत रस झर रहा चाँदनी
छत चढ़ चलीं लता बेलें
आई शीतल ऋतु अलबेली मंद मंद बह चली हवा
ऋतु रस भर गए सागरवा //१//
घर घर ;गाँव ;नगर भवनों में
सब कुछ लागे नया नया
महालक्ष्मी के स्वागत में
गाँव शहर जगमगा गया
मोती बरसावे नित रजनी वसुंधरा पहने हरवा
ऋतु रस भर गए सागरवा//२//
धरती ओढ़े चूनर धानी
कृषक जगत है हरसाया
फौज फटाकों से इस ऋतु का
स्वागत सबके मन भाया
निर्मल हुआ सरित का पानी भर चलीं गोरी गागरवा
ऋतु रस भर गए सागरवा //३//
हरियाली डारों पर बैठे
पंछी चहक चहक बोलें
बाग़ बगीचों में जा भौंरे
कलियों का घूँघट खोलें
ठिठुरन बढ़ी शिशिर ऋतु आई शांत भये सब दादुरवा/
बढ़ी ठण्ड सब थर थर काँपें
शीत लहर तरुनाई में
घर घर लगे अलाव आग के
ठंडक मिटे रजाई में
सूरज किरणे शीतल हो गईं शोर मचावें झींगुरवा /
ऋ
उदयभानु तिवारी "मधुकर"
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