दीप और शमाँ
मैं पूजा का दीप ;समां तुम गृहशोभा इंसानों की /
मैं मूरति के पास रहूँ तुम प्रेम ज्योति परवानों की //
तुम जग मग आँगन करती हो ; जन्म व्याह त्योहारों में
मैं प्रातः ;संध्या वेला में जलता मंदिर द्वारों में
मैं मंगल हित जलूँ जलो तुम खातिर में मेहमानों की
मैं पूजा का दीप समां तुम गृह शोभा इंसानों की //१//
मैं प्रकाश प्रिय को पहुंचता ;दीपदान कर्ताओं का
भटक न जाएँ राह रहूँ ; दिग्दर्शक उन भर्ताओं का
तुम करवातीं आलिंगन मैं यजन ज्योति यजमानों की
मैं पूजा का दीप समां तुम गृह शोभा इंसानों की//२//
मैं जलता हूँ आवाहन में तुम जलतीं अगवानी में
मैं चलता हूँ घट के ऊपर गणपति की राजधानी में
मुझे रखा जाता पूजन में तुम झांकी अरमानों की
मैं पूजा का दीप समां तुम गृह शोभा इंसानों की //३//
मैं अखंडता का परिचायक आदी हूँ वीराने का
तुम करती हो इन्तजार नित आगंतुक के आने का
मैं अनंत द्युति तुम हो दामिनि गृह अरु भवन दुकानों की
मैं पूजा का दीप समां तुम गृह शोभा इंसानों की //४//
मैं गायत्री छन्द नाद तुम धुनें गीत अरु गजलों की
मैं मंगल काजों का राजा तुम हो रानी महलों की
मैं 'मधुकर 'आनंद छटा तुम ओस विन्दु बागानों की
मैं पूजा का दीप समां तुम गृह शोभा इंसानों की //५//
मैं जलता हूँ जन मानस में सत का भाव जगाने को
तुम जलती हो मोहजाल में सारा जगत फँसाने को
मैं स्थिर परब्रह्म प्रकाशक तुम गति प्रक्रति उड़ानों की
मैं पूजा का दीप समां तुम गृह शोभा इंसानों की //६//
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