संकट मोचन स्तुति
वायु पुत्र अंजनी के लाल जी को रूप लाल
वज्र अंग देह स्वर्ण शैल सी विशाल है
भाल सोहे चन्दन औ वन्दन है लाल लाल
हस्त में गदा गले में लाल पुष्प माल है
लोरकी लषे ललाम लूमती लँगूर कंध
मूँज उपवीत गाल में कराल काल है
लक्छ्मन के प्राणदा तुम्हें नवाऊं भाल नाथ
कालश्रेष्ठतव प्रभंजनम सी तीव्र चाल है //1//
सीता शोक नाशनं महाबलं धुरंधरम
हे कीश नायकं शिवांश केशरी के नंदनम
लाँघ सिन्धु लंकनी को मार मुष्टि हो निशंक
कीन्ह वाटिका विध्वंश अक्छ भट्ट भंजनम
वीर मेघनाद रावण-आदि मान मर्दनम
नमामि रौद्र रूप आंजनेय लंक दहनम
अष्ट सिद्धि नौ निधि निधान होहु हे कपीश
सीय ने दिया अशीश दैत्य दर्प गंजनम //2//
हे कीश नायकं शिवांश केशरी के नंदनम
लाँघ सिन्धु लंकनी को मार मुष्टि हो निशंक
कीन्ह वाटिका विध्वंश अक्छ भट्ट भंजनम
वीर मेघनाद रावण-आदि मान मर्दनम
नमामि रौद्र रूप आंजनेय लंक दहनम
अष्ट सिद्धि नौ निधि निधान होहु हे कपीश
सीय ने दिया अशीश दैत्य दर्प गंजनम //2//
ज्ञान गुण निधान तीन लोक में न आन
फाल्गुन सखा असीमविक्रमा तुम्हें प्रणाम है
जप रहे हैं रोम राम राम इष्ट नाम तव
ह्रदय निकुंज में त्रिलोकी नाथ सीता राम हैं /
सुर समूह कर रहा है जिनका नाम गान वो
अनंदघन स्वरुप दिव्य शक्ति शांति धाम हैं
कर रहा हूँ दंडवत प्रणाम पाहि पाहि नाथ
हे कपीश दुक्ख भंजनम तुम्हारो नाम है //३//
हाँक हाँक राग रोग कीजिये निहाल नाथ
भक्त के कराल काल संकटों को टालिए
फाल्गुन सखा असीमविक्रमा तुम्हें प्रणाम है
जप रहे हैं रोम राम राम इष्ट नाम तव
ह्रदय निकुंज में त्रिलोकी नाथ सीता राम हैं /
सुर समूह कर रहा है जिनका नाम गान वो
अनंदघन स्वरुप दिव्य शक्ति शांति धाम हैं
हाँक हाँक राग रोग कीजिये निहाल नाथ
भक्त के कराल काल संकटों को टालिए
दे रहा है कष्ट कलि काल से बेहाल दौरि
दुष्ट दैत्य वृत्ति से निकाल जाल काटिए
भ्रकुटी को भंग देख भागें भूत प्रेत काल
भवभवंर में नाव डोलती है आन साधिये
हे त्रिकाल देव हरो पीर महावीर
हूँ अधीर पाहि पाहि देव देख के न टालिये//४//
राम दूत दौरि के निवारो दास के अनिष्ट
हे कृपालु दींन बन्धु हूँ शरण सँभालिए
दुष्ट कालचक्र जाल में फंसाहुआ हूँ देव
देह दैव भौतिकी दुकाल से निकालिए /
कौन सा कुचक्र आप से नहीं नशाय नाथ
काल नेमि सा लंगूर में लपेटि घालिये
ॐ ह्रीं ह्रीं हनुमंत महा बाहू उदय -
भानु पै महात्मा क्रपालुदृष्टिडालिए //५//
उदयभानु तिवारी''मधुकर ''
दुष्ट दैत्य वृत्ति से निकाल जाल काटिए
भ्रकुटी को भंग देख भागें भूत प्रेत काल
भवभवंर में नाव डोलती है आन साधिये
हे त्रिकाल देव हरो पीर महावीर
हूँ अधीर पाहि पाहि देव देख के न टालिये//४//
राम दूत दौरि के निवारो दास के अनिष्ट
हे कृपालु दींन बन्धु हूँ शरण सँभालिए
दुष्ट कालचक्र जाल में फंसाहुआ हूँ देव
देह दैव भौतिकी दुकाल से निकालिए /
कौन सा कुचक्र आप से नहीं नशाय नाथ
काल नेमि सा लंगूर में लपेटि घालिये
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