होली
गाल में रंग गुलाल लगाय के
खेल रहे बृज में सब होली
वृद्ध जवान हुए हैं ;बसंत -
बहार ने रंगों की पोटली खोली
कंठ मिलें सब आपस में
मुखड़ों पै सभी के भरी है रँगोली
भाँग पिए कोई झूम रहे
कोई टेर रहे भाई थोड़ी सी पी ले
रास के रंग में डूब जरा;तेरे
जीवन के पल होंगे रँगीले
रंग बिरंगी भई वसुधा हो जी
अलसी के खेतों में उतरा गगन देखो
बाजे मृदंग खिले सबके मन
फूल के बाग़ करें अगवानी
बेल लता अरु कुञ्ज निकुंज में
बैठ के झाँक रही है जवानी
मोहित मार चलावत बाण
हुए मदमस्त चराचर प्राणी
फाग को रंग कहा कहिये जहाँ
अन्दर आग औ बाहर पानी //३//
रे; "मधुकर" ;मधुमास हँसे
बरसे रस भृंगों की भीर रिझानी
लेके सुगंध चली रे पवन ;अंग
अंग में फूल सुगंध समानी
मस्त पलासों ने खोले नयन लागे
मौसम सुहाना कली मुस्कुरानी
महुआ का रस पीके बहकी पवन
प्रेम प्यासी लता तरु से लपटानी //४//
उदयभानु तिवारी "मधुकर"
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