रात रानी
मन लगा रचने कहानी ;आ गई परियों की रानी
पवन पंखा झल रहा था महक आँगन में समानी
ख़िल रही थी रात रानी//१//
पूर्व की जब ओर ताका इक म्रदुल सा गात झाँका
देख प्रमुदित हँस रही थी कुमुद सरवर में लजानी
ख़िल रही थी रात रानी//२//
जब विभा का पुंज निकला प्रिय सुनो अब हाल अगला
चकित सा अपलक निहारूँ मधुर छवि मन में समानी
ख़िल रही थी रात रानी//३//
चन्द्र से पीयूष छलका होगया उर ताप हल्का
चाँदनी में घुल रही थी गन्ध बेला की लुभानी
ख़िल रही थी रात रानी //३//
झिलमिलाते नभ के तारे ,लग रहे थे मन को प्यारे
गगन चुम्बी बादलों को ,देख तन की सुधि भुलानी
खिल रही थी रात रानी //४ //
झिलमिलाते नभ के तारे ,लग रहे थे मन को प्यारे
गगन चुम्बी बादलों को ,देख तन की सुधि भुलानी
खिल रही थी रात रानी //४ //
हो गई पूरी कहानी उड़ चली परियों की रानी
सृजन का श्रंगार दे कर किरण घूँघट में समानी
ख़िल रही थी रात रानी//५//
तब उदय ने भाव रोका रुक गया शब्दों का झोका
भाव भीनी म्रदुल धारा उलट उर में जा समानी
ख़िल रही थी रात रानी//६//
डॉ उदयभानु तिवारी" मधुकर "
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