Tuesday, 4 October 2011

जीवनदर्शन

 जीवनदर्शन                                                                                                                      
भाव बहते गीत बनकर स्वर सजाने के लिए /
 गुनगुनाता जा रहा हूँ    मन रमाने के लिए

नित्य खिलते पुष्प सुन्दर मन भ्रमर उलझा गए;
पार कर शैशव जवानी   अंत   में     मुरझा गए /
विश्व होताहै दुखी वह   आयु   पाने      के लिए ;
 गुनगुनाता जा रहा हूँ    मन    रमाने के लिए //१//

कामनाओं से घिरा है जिन्दगी   का यह   किला;
मुक्त होता मन वही जो   वीतरागी        निर्मला /
भोग करते दिग्भ्रमित दुःख में   फँसाने के लिए;
  गुनगुनाता जा रहा हूँ    मन    रमाने के लिए //२//

दिन सुनहरा ढल गया अब दोपहर जाने लगी ;
जो गए दिन बीत उनकी याद    गहराने लगी/
जारहा हूँ शून्य में सुधियाँ    भुलाने   के लिए ;
गुनगुनाता जा रहा हूँ    मन    रमाने के लिए //३//

केश करके स्वेत वो    संकेत   हमको   दे गया;
 जब मिला आकर जरा यौवन चहकता ले गया/
मन वही पर तन विवश बोझा    उठाने के लिए ;
 गुनगुनाता जा रहा हूँ    मन    रमाने के लिए //४//

पथ प्रदर्शक संग के गंतब्य    मंजिल     पागए;
पुष्प अर्पित कर रहा हूँ ज्योति जो दिखला गए /
कर रहा  आराधना   वह भाव   पाने   के लिए;
गुनगुनाता जा रहा हूँ    मन    रमाने के लिए //५//

जो चमन में व्याप्त है वह पास रहकर दूर है ;
सब जगत आसक्त इससे जिन्दगी मजबूर है /
मीत गाता हूँ भजन उसको रिझाने के लिए ;
गुनगुनाता जा रहा हूँ    मन    रमाने के लिए //६//

देख ढलती शाम अपने अंग बागी हो गए ;
तन हुआ जर्जर जरा से भाव रागी हो गए /
कीमती अब श्वास बाकी मुक्ति पाने के लिए ;
गुनगुनाता जा रहा हूँ    मन    रमाने के लिए //७//
                       
जिन्दगी की शाम 'मधुकर 'त्याग तन जब जाएगा ;
ब्रह्म अक्षर   जाप ही   फिर काम   तेरे      आएगा /
कर्म कर प्रिय नाद सुन वह ज्योति    पाने के लिए ;
गुनगुनाता जा रहा हूँ    मन    रमाने के लिए //8//



                              डॉ उदय्भानुतिवारी' मधुकर '

No comments:

Post a Comment