भाव बहते गीत बनकर स्वर सजाने के लिए /
गुनगुनाता जा रहा हूँ मन रमाने के लिए
नित्य खिलते पुष्प सुन्दर मन भ्रमर उलझा गए;
पार कर शैशव जवानी अंत में मुरझा गए /
विश्व होताहै दुखी वह आयु पाने के लिए ;
गुनगुनाता जा रहा हूँ मन रमाने के लिए //१//
कामनाओं से घिरा है जिन्दगी का यह किला;
मुक्त होता मन वही जो वीतरागी निर्मला /
भोग करते दिग्भ्रमित दुःख में फँसाने के लिए;
गुनगुनाता जा रहा हूँ मन रमाने के लिए //२//
दिन सुनहरा ढल गया अब दोपहर जाने लगी ;
जो गए दिन बीत उनकी याद गहराने लगी/
जारहा हूँ शून्य में सुधियाँ भुलाने के लिए ;
गुनगुनाता जा रहा हूँ मन रमाने के लिए //३//
केश करके स्वेत वो संकेत हमको दे गया;
जब मिला आकर जरा यौवन चहकता ले गया/
मन वही पर तन विवश बोझा उठाने के लिए ;
गुनगुनाता जा रहा हूँ मन रमाने के लिए //४//
पथ प्रदर्शक संग के गंतब्य मंजिल पागए;
पुष्प अर्पित कर रहा हूँ ज्योति जो दिखला गए /
कर रहा आराधना वह भाव पाने के लिए;
गुनगुनाता जा रहा हूँ मन रमाने के लिए //५//
जो चमन में व्याप्त है वह पास रहकर दूर है ;
सब जगत आसक्त इससे जिन्दगी मजबूर है /
मीत गाता हूँ भजन उसको रिझाने के लिए ;
गुनगुनाता जा रहा हूँ मन रमाने के लिए //६//
देख ढलती शाम अपने अंग बागी हो गए ;
तन हुआ जर्जर जरा से भाव रागी हो गए /
कीमती अब श्वास बाकी मुक्ति पाने के लिए ;
गुनगुनाता जा रहा हूँ मन रमाने के लिए //७//
जिन्दगी की शाम 'मधुकर 'त्याग तन जब जाएगा ;
ब्रह्म अक्षर जाप ही फिर काम तेरे आएगा /
कर्म कर प्रिय नाद सुन वह ज्योति पाने के लिए ;
गुनगुनाता जा रहा हूँ मन रमाने के लिए //8//
डॉ उदय्भानुतिवारी' मधुकर '
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