Friday, 28 October 2011

शारदा वन्दन


                         शारदा वन्दन 

बुद्धि दायिनी कृपा करो हे वीणा वादिनी ;
कंठ में विराज के  सँवार   दीजे रागिनी /
ज्ञान चक्षु बंद हैं तिमिर भरी है यामिनी ;
प्रकाश पुंज दीजिये हे मातु हंस वाहिनी //१//

कवि प्रवर नहीं हूँ काव्य का भी ज्ञान है नहीं 
गुण गुनाता हूँ बहादे  भाव  की   मंदाकिनी 
शव्द श्रंखला सजें स्वरों  से  आय  आय के 
ह्रदय कमल पराग में रहो लगा सुखासिनी //२//

वीणा को बजाय राग   रागनी बुलाइये
ताल स्वर तरंग ज्ञान  गंग  में बहाइये 
बुद्धि के प्रवाह को सही दिशा  दिखाइये
पंख बिन उड़न चले हैं व्योम में उड़ाइये //३//

बुला रहा  हूँ  आओ  मातु ;कर कमल कुसुम लिये
आरती  का थाल  और  दीप   प्रज्ज्वलित   किये 
काव्य रस कलश में  आय  दिव्य  द्रव्य     डालिए 
"मधुकर " के स्वरों की शब्द श्रंखला सँभालिये //४//

उदयभानु तिवारी "मधुकर"

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