प्राण दीपक जल रहा है
जिन्दगी के दिन अकेले मस्त मधुकर बन के झेले /
किन्तु अब दुनियाँ बसाकर दिन अकेला खल रहाहै //
प्राण दीपक जल रहा है //१//
रात दिन स्वप्नों में मेरे गूँजते हैं शब्द तेरे
ह्रदय की तड़पन बढाता मन चुराता चल रहा है
प्रन्दीपक जल रहा है //२//
लग रही है दूर मंजिल हो रही है साँस बोझिल
एक दिन मुश्किल से जाता दिन विभा बिन ढल रहा है
प्राण दीपक जल रहा है //३//
इक सुनहरी शाम आके ,ढल गई सुध-बुध भुला के |
हो गई बैरन ये निंदिया ,चित मचलता चल रहा है ||
प्राण दीपक जल रहा है //४//
पवन प्रिय सन्देश दे जा ,व्यथित मन के क्लेश ले जा |
मीत से कहना यूं जाकर ,मन बिना तन चल रहा है ||
प्राण दीपक जल रहा है //५//
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