Thursday, 13 October 2011

बसंत की बहार


 बसंत की बहार
बाग कुञ्ज उपवन में आगई बहार
हमको ले संग चलो नदिया के पार

बाँग  दई मुर्गे ने छोड़ो सिजरिया 'पनघट को चलीं गोरी लेके गगरिया /
बोलरही कोयलिया अमवा की डार हमको ले संग चलो नदिया के पार  //
बाग कुञ्ज उपवन में आगई बहार /
हमको ले संग चलो नदिया के पार// //१//

उठो बलम भोर भई डूबी तरैयाँ  पूरब पव फटन लगी चहकें चिरैयाँ     /
सिमट चली चांदनी चंदा के द्वार 
हमको ले संग चलो नदिया के पार //
/बाग कुञ्ज उपवन में आगई बहार /
हमको ले  संग चलो  नदिया के पार//२//

महक उठी गली चले भ्रंग गुनगुनायके', मंद पवन चले कहें सुमन मुस्कुराय्के /
अमृत रस कलश धरे अमवा की डार , ,हमको  ले संग चलो   नदिया   के पार//
/बाग कुञ्ज उपवन में आगई बहार /
हमको ले  संग चलो  नदिया के पार//३//

सास ससुर ननद सोये अपनी कुठरिया ,चुपके से सरक चलो परे न नजरिया /
लागे न घर में   अब जियरा   हमार ,
हमको  ले संग चलो     नदिया के पार//
/बाग कुञ्ज उपवन में आगई बहार /
हमको ले  संग चलो  नदिया के पार//४//

बरगद की छइयां अकेले में सैयां ,प्यार भरी बतियाँ कर लूंगी बलैयां  /
फूलों से करना तुम मेरा श्रंगार ,
हमको  ले  संग चलो नदिया के पार //
बाग कुञ्ज उपवन में आगई बहार /
हमको ले  संग चलो  नदिया के पार//५//

सकुचाय कहे दाब दाँतों में अँचरा,जुड़े   में गूंथुंगी    फूलों       का गजरा /
महक उठे तन रस की झरती फुहार ,हमको ले
 संग चलो नदिया के पार //
बाग कुञ्ज उपवन में आगई बहार /
हमको ले  संग चलो  नदिया के पार//६//

तुम बनना मोहन औ मैं बनके राधा ,नाचूँगी   मधुवन  में गाऊंअबाधा /
गागर में सागर सा भर देना प्यार हमको ले संग चलो नदिया के पार
गागबाग कुञ्ज उपवन में आगई बहार /
हमको ले  संग चलो  नदिया के पार//7//
                                   उदयभानु तिवारी "[मधुकर]''

No comments:

Post a Comment