प्रकृति चित्रण
जंगल घाटी पर्वत माटी चारों दिशि हरियाली ;
पग पग पर है फूली सरसों फैली छटा निराली
रँग बिरंगी शोभित कलियाँ बिहँस रही हर डाली ;
झूमे मधुकर देख लता पर धरी मधुप रस प्याली //१//
नागिन सी लहराती नदिया इठलाती बलखाती ;
पथरीले पथ से टकराकर छलक छलक सी जाती /
जलप्रपात में झर झर झरती कल कल गीत सुनाती;
सधे सौम्य स्वर से निर्जन में वन स्थल सरसाती //२//
गोधूली की बेला ग्वाले गाते धूम मचाते;
सघन वनों से निकल सहज ही सरपट भागे आते /
गोखुर की धूली के नभ में बादल से मंडराते
नाना खग के वृन्द मनोहर नभ में होड़ लगाते //३//
सूरज की सिन्दूरी आभा विमल छटा छिटकाती;
चलता पथ रुक जाता राही मंजिल सुधि बिसराती/
मतवाली ये शाम सुहानी क्यों ढलती छिपजाती;
रतनारे से नैन तुम्हारे छवि मोहक मन भाती//४//
गागर सिर पर धरे दुल्हनियां पनघट से घर आती ;
ठुमक ठगी पग धरत हेरती पथ में चलत लजाती/
विधु वदनी आँचल मुख ढाँके खंजन नैन नचाती ;
सलज भ़ार नत मदन कला सी मन ही मन मुस्काती //५//
पग पग पर है फूली सरसों फैली छटा निराली
रँग बिरंगी शोभित कलियाँ बिहँस रही हर डाली ;
झूमे मधुकर देख लता पर धरी मधुप रस प्याली //१//
नागिन सी लहराती नदिया इठलाती बलखाती ;
पथरीले पथ से टकराकर छलक छलक सी जाती /
जलप्रपात में झर झर झरती कल कल गीत सुनाती;
सधे सौम्य स्वर से निर्जन में वन स्थल सरसाती //२//
गोधूली की बेला ग्वाले गाते धूम मचाते;
सघन वनों से निकल सहज ही सरपट भागे आते /
गोखुर की धूली के नभ में बादल से मंडराते
नाना खग के वृन्द मनोहर नभ में होड़ लगाते //३//
सूरज की सिन्दूरी आभा विमल छटा छिटकाती;
चलता पथ रुक जाता राही मंजिल सुधि बिसराती/
मतवाली ये शाम सुहानी क्यों ढलती छिपजाती;
रतनारे से नैन तुम्हारे छवि मोहक मन भाती//४//
गागर सिर पर धरे दुल्हनियां पनघट से घर आती ;
ठुमक ठगी पग धरत हेरती पथ में चलत लजाती/
विधु वदनी आँचल मुख ढाँके खंजन नैन नचाती ;
सलज भ़ार नत मदन कला सी मन ही मन मुस्काती //५//
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