Wednesday, 19 October 2011

प्रकृति चित्रण

                   प्रकृति  चित्रण 

जंगल  घाटी  पर्वत  माटी  चारों    दिशि     हरियाली ;
पग पग पर है फूली   सरसों  फैली    छटा    निराली

रँग बिरंगी शोभित  कलियाँ   बिहँस   रही  हर डाली ; 
झूमे मधुकर   देख  लता  पर धरी मधुप रस प्याली //१//

नागिन   सी  लहराती  नदिया  इठलाती   बलखाती ;
पथरीले पथ से  टकराकर  छलक   छलक सी जाती /
जलप्रपात में झर झर झरती कल कल गीत सुनाती;
सधे सौम्य स्वर से   निर्जन  में वन  स्थल सरसाती //२//

गोधूली   की   बेला  ग्वाले   गाते   धूम      मचाते;
सघन वनों से निकल सहज ही  सरपट   भागे  आते /
गोखुर   की   धूली के   नभ  में  बादल  से   मंडराते
नाना खग के वृन्द   मनोहर  नभ  में  होड़   लगाते //३//

सूरज की सिन्दूरी आभा  विमल  छटा   छिटकाती;
चलता पथ रुक जाता राही मंजिल सुधि  बिसराती/
मतवाली ये  शाम सुहानी क्यों  ढलती   छिपजाती;
रतनारे से  नैन  तुम्हारे  छवि  मोहक  मन   भाती//४//

गागर सिर पर धरे दुल्हनियां पनघट से  घर  आती ;
ठुमक ठगी पग धरत हेरती पथ में  चलत   लजाती/
विधु वदनी आँचल मुख ढाँके  खंजन    नैन  नचाती ;
सलज भ़ार नत मदन कला सी मन ही मन मुस्काती //५// 

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