खिड़की की मैना
झुरमुट में खिड़की है खिड़की में मैना /
करती है कंघी वो देख देख ऐना //
चढ़के जा बैठी है ऊँची अटारी
लहराती चूनर से खेले बयारी
मोहक अदाओं से चलती कटारी
बचें धीर वीर भये घायल अनारी
ईंगुर से लाल गाल रतनारे नैना
झुरमुट ''''''''''''''''''''''''''''''
मुख पै है घूँघट घटा सिर पै कारी
चंदा सी सूरत छटा प्यारी प्यारी
अधरों में सोमरस वाणी है न्यारी
मोह रही मन को मुस्कान मतवारी
बोलत ही फूल झरें मधुर लगें बैना
झुरमुट ''''''''''''''''''''''''''''''
भोहें हैं बाँकी सी मानो गुलेल
तीर को चलावत में लागे ना झेल
पावों में पायल की चढ़ा रही बेल
करती है घायल महावर की रेल
बिछुवा ने छीन लियो चैन,गई रैना
झुरमुट ''''''''''''''''''''''''''''''
माँग भरी सेंदुर की बढ़ा रही मान
बिंदी है मैना के माथे की शान
हाथों में मेंहदी रची मुख में पान
नथनी का मोती डुलावत है ध्यान
काजल की रेखा तो बरनत बनेना
झुरमुट ''''''''''''''''''''''''''''''
कानन की झुमकी ज्यों सावन का झूला
चुरियों की खन खन में राही है भूला
पाए जो दर्शन फिरे फूला फूला
मधुकर ;छवि छिटक छिपी देह के दुकूला
बालों की लट सुलझी उलझन घटे ना
झुरमुट ''''''''''''''''''''''''''''''
No comments:
Post a Comment