Sunday, 16 October 2011

जीवन को महकाता चल

       
  












हँसता चल हँसाता चल 

हंसताचल   हँसाताचल   ह्रदय कमल विकसाता चल /
जग पर्वत के कंटक पथ पर अपनी धुन में गाता चल //

चाहे आतप  की  दुपहर हो   चाहे  शीतल  छाँव  हो
मंजिल तक है तुम्हें  पहुंचना  धीमे  पड़ें न पाँव  हो
पग पग पर अँगार दहकते  डगर डगर भटकाव हो
दर्द न  बाँटे  जग  में  कोई  रखो छिपाकर घाव हो
क्रोध के कड़वे घूँट निगल मुस्कान अधर बिखराता चल/

हंसताचल हँसता चल ================     //१//

चाहे ग्रहण लगा हो सूरज सरसिज भी कुम्हलाया हो ;
घोर अँधेरी रात का चाहे    सूनापन  भी छाया हो //
असह वेदना ने आँखों में अश्रु बिंदु   छलकाया हो;
दृढ संकल्प कभी ना डोले  चाहे  तन  मुरझाया हो
प्यार की गागर से बगिया में जीवन रस बर्षाता चल
हंसताचल हँसता चल ===============  // //


 घबराना मत कभी धार में  यदि छूटे पतवार हो
साह्स भुजा समेट भवंर में धीरज से उस पार हो
नाव पुरानी इक दिन डूबे नश्वर यह संसार हो
क्या जाने जग में कब होवे फिर दूजा अवतार हो
निज कर्मों से इस धरती पर जीवन को   महकाता चल /
हंसताचल हँसता चल  ---------------------------- //३//


 उदयभानु तिवारी मधुकर 

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