Friday, 30 September 2011

अधियज्ञ

                                                                                                                                              
        अधियज्ञ
तुमहो प्रभु अधियज्ञ  ;यज्ञ हम  करते तुमको पानेको /
तुमही जग में व्याप्त मगर जग जाने नहीं ठिकाने को//

तुमहो पुष्प पराग तुम्हीं से
              यह तन चेतन होजाता/
जबतक है अज्ञान ह्रदय में ;
              प्राणी नहीं समझ पाता//
जब उपजे अनुराग तड़पता ;मन तुममें मिलजाने को /
तुमहो प्रभु अधियज्ञ ;यज्ञ हम करते तुमको पानेको //१//

होकर प्रक्रति अधीन लोभ में ;
                  ज्ञानी मोहित हो जाते  /
सदगुरु बन तुम सँग रहो ;
                  तबही माया से बच पाते //
हे जग पालक वन्दन करता हूँ मैं तुम्हें रिझाने को /
तुमहो प्रभु अधियज्ञ यज्ञ हम करते तुमको पानेको //२//

जैसे शीत लहर में सागर
               हिम में परिणित होजाते /
वैसे ही तुम भावभक्ति से;
              दिव्य अलख छवि दिखलाते //
सूक्ष्म जगत से तुम सदगुरु बन आते मार्ग दिखानेको /
तुमहो प्रभु अधियज्ञ यज्ञ हम    करते  तुमको पानेको //३//

जैसा जिसका भाव रूप में;
                     वैसे ही तुम ढलजाते j
तुमहो निर्गुण किन्तु भक्ति में ;
                     सगुण रूप धरकर आते //
हे योगेश्वर मधुकर गुन्जन करे अमिय छलकाने को/
तुमहो प्रभु अधियज्ञ यज्ञ हम करते तुमको पानेको //४//

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