अधियज्ञ
तुमहो प्रभु अधियज्ञ ;यज्ञ हम करते तुमको पानेको /
तुमही जग में व्याप्त मगर जग जाने नहीं ठिकाने को//
तुमहो पुष्प पराग तुम्हीं से
यह तन चेतन होजाता/
जबतक है अज्ञान ह्रदय में ;
प्राणी नहीं समझ पाता//
जब उपजे अनुराग तड़पता ;मन तुममें मिलजाने को /
तुमहो प्रभु अधियज्ञ ;यज्ञ हम करते तुमको पानेको //१//
होकर प्रक्रति अधीन लोभ में ;
ज्ञानी मोहित हो जाते /
सदगुरु बन तुम सँग रहो ;
तबही माया से बच पाते //
हे जग पालक वन्दन करता हूँ मैं तुम्हें रिझाने को /
तुमहो प्रभु अधियज्ञ यज्ञ हम करते तुमको पानेको //२//
जैसे शीत लहर में सागर
हिम में परिणित होजाते /
वैसे ही तुम भावभक्ति से;
दिव्य अलख छवि दिखलाते //
सूक्ष्म जगत से तुम सदगुरु बन आते मार्ग दिखानेको /
तुमहो प्रभु अधियज्ञ यज्ञ हम करते तुमको पानेको //३//
जैसा जिसका भाव रूप में;
वैसे ही तुम ढलजाते j
तुमहो निर्गुण किन्तु भक्ति में ;
सगुण रूप धरकर आते //
हे योगेश्वर मधुकर गुन्जन करे अमिय छलकाने को/
तुमहो प्रभु अधियज्ञ यज्ञ हम करते तुमको पानेको //४//
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