Wednesday, 14 September 2016












यह  तन  गोवर्धन गिरिराज /
बनाते जिसे कृष्ण सिरताज //

पाँच तत्व से निर्मित पर्वत ,यही प्रकृति कहलाये /
यह ऊपर उठ जाये जब श्री, हरि अनुकम्पा पाये //
परउपकारी  तन-पर्वत हरि, अँगुली , का है ताज /
यह तन गोवर्धन गिरिराज //

सदगुरु  की अनुकम्पा मधुकर तनगिरिराज उठाये /
परे  इन्द्रियों  से ले जाकर , जग  कल्याण  कराये //
वही  जानते  राज, कृष्ण , जिसके हिय रहे विराज /
यह तन गोवर्धन गिरिराज //

तन पर्वत के अन्दर रह कर ,करता जो मन कर्षण /
कृष्ण वही हैं  रे मन पगले, कर सब उन्हें समर्पण //
कर  निर्लिप्त  जगत से तुझ को, साधेंगे सब काज /
यह तन गोवर्धन गिरिराज //
        
                         डॉ,उदयभानु तिवारी ''मधुकर''  

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