बनाते जिसे कृष्ण सिरताज //
पाँच तत्व से निर्मित पर्वत ,यही प्रकृति कहलाये /
यह ऊपर उठ जाये जब श्री, हरि अनुकम्पा पाये //
परउपकारी तन-पर्वत हरि, अँगुली , का है ताज /
यह तन गोवर्धन गिरिराज //
सदगुरु की अनुकम्पा मधुकर तनगिरिराज उठाये /
परे इन्द्रियों से ले जाकर , जग कल्याण कराये //
वही जानते राज, कृष्ण , जिसके हिय रहे विराज /
यह तन गोवर्धन गिरिराज //
तन पर्वत के अन्दर रह कर ,करता जो मन कर्षण /
कृष्ण वही हैं रे मन पगले, कर सब उन्हें समर्पण //
कर निर्लिप्त जगत से तुझ को, साधेंगे सब काज /
यह तन गोवर्धन गिरिराज //
डॉ,उदयभानु तिवारी ''मधुकर''
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