रानी दुर्गावती पर गुप्तेश्वर की कृपा
डमड् डमड् डम डम डमरू धुन , हिय में रही समाई /
हर हर शिव गुप्तेश्वर हर ध्वनि , कानन पड़े सुनाई //
किन्न किन्न करते मंजीरे ,
ढोल ढमक ढम बोल चले /
झनन झनन झाँझर झंकारें, जगमग जगमग ज्योति जले //
टन्न टन्न घंटे ध्वनि करते , भरते शंख लुनाई / हर--
झूम भक्त सब करें आरती, लहर भक्ति की बह आये /
मनहारी आरति ध्वनि गूँजे , राही का मन खिंच जाये //
मन्द सुगन्धित पवन डोलती , आरति
लौ लहराई / हर--
आरति कर गुप्तेश्वर महिमा , का वृत्तांत सुनाते हैं /
कैसे सदगुरु से मिलवा कर, शिव जी लाज
बचाते हैं //
श्रद्धाभक्ति रहे जिसके मन ,उस पर आँच न आई / हर--
रानी दुर्गावती राज्य में , गुरुवर नरहरिदास हुये /
ऋषि जाबाली परम्परा के , साधक सिद्ध उजास हुये //
रानी पर थी कृपा गुरू की ,
विपत में रहे सहाई / हर--
रानी थीं श्रद्धालु हृदय से , भक्ति भावना भारी थी /
साधु संत की सेवा करती , वह देवी अवतारी थी //
दान पुण्य विप्रों की सेवा , में मन लगन लगाई / हर--
नगर जबलपुर में जब रहतीं , शारद दर्शन को जातीं /
माला देवी का पूजन कर,
गुप्तेश्वर वे नित आतीं //
गुप्तेश्वर की अनुकम्पा ही , उनको लेत बुलाई / हर--
एक समय सन्तों की टोली , गुप्तेश्वर स्थल आई /
भरा बावली में जल निर्मल ,
मोह रही थी अमराई //
शिव अनुकम्पा मिली रमा मन , धूनी यहीं रमाई / हर--
रात्रि किया विश्राम सुबह की ,
तैयारी थी चलने की /
रानी मन जिज्ञासा प्रगटी , संत जनों से मिलने
की //
रानी दुर्गावती सुबह ही , सन्तों से मिलने आई / हर--
मिल विनम्र स्वर में बोलीं, सब संत कहाँ से आये हैं /
कहिये क्या आतिथ्य करें, हम औचक दर्शन पाये हैं //
आप अतिथियों को लख मेरे, मन में शान्ति
समाई / हर--
कुछ दिन रुकिये और हमें भी,सेवा करने अवसर दें /
मिले हमें भी पुण्य लाभ,यश,ऐसी आप कृपा कर दें //
जो आज्ञा हो कहेँ , जोड़ कर हाथ ये विनय
सुनाई / हर--
बोले एक महन्त चले हम, रेवा की परिकरमा में /
नहीं चाहिये अभी हमें कुछ,मन है मातु अपर्णा में //
पुनि जब आग्रह किया, कहा दो हमें कमण्डल माई / हर--
भेजे अनुचर उन्हें मँगाने ,
उनने जो संकल्प किया /
मिले नहीं जब कहीं कमण्डल, तब निज गुरु को याद किया //
आश्रम ढूँढे , मंदिर ढूँढे , सब में खोज कराई / हर--
मिले नर्मदा के तट पर गुरु , उनको हाल सुनाया है /
बोले गुरुवर चिन्ता मतकर , गुप्तेश्वर की माया है //
संत जनों के दर्शन की , जिज्ञासा गुरु मन आई / हर--
श्री नरहरि बोले हे रानी , मम सन्देशा ले जाओ /
विनती कर सन्तों को मेरे, आश्रम यहीं बुला लाओ //
कहना सन्तों के स्वागत हित ,गुरु ने खबर पठाई / हर--
रानी ने जाकर सन्तों को , गुरु सन्देश सुनाया है /
रेवा तट अभिनन्दन करने ,
संतों को बुलवाया है //
है विनय यही सब चलें वहीं , हैं जहाँ नर्मदा माई / हर--
सिद्ध पुरुष नरहरि से मिलने, रानी सँग सब संत चले /
पहुँचे स्वागत हुआ सभी का,फिर सब गुरु से गले मिले //
हुआ समागम संतों का , हिय हर्ष लहर बह आई / हर--
सन्तों के मन शंका उपजी , नहीं कमण्डल दिखते हैं /
गुरु बोले स्नान करें सब , फल रेवा से मिलते
हैं //
जो मज्जन करते रेवा में , डुबकी रहे लगाई / हर--
ले गोते जब बाहर निकलें ,
हाथ कमण्डल आ जाये /
देख सन्त सब चकित हुये,शिव माया नहीं समझ पाये //
एक साथ सबका स्वर गूँजा ,
जयति नर्मदा माई / हर--
रानी गदगद हुईं संत भी , हुये सभी संतुष्ट वहाँ /
कभी न संकट उन पर आये , गुप्तेश्वर की कृपा जहाँ //
यह महिमा विरले ही जाने ,
शिव दें जिसे जनाई / हर--
फिर नरहरि बोले हे रानी , संकट अगर कभी आये /
गुप्तेश्वर जाकर कह देना , मुझे विदित वह हो जाये //
पाकर गुरु आशीष नमन कर ,
रानी महल सिधाई / हर
योगी नरहरिदास आज भी , सूक्ष्म रूप में आते हैं /
ऋषि जाबाली परम्परा की,वे शिव ज्योति जलाते हैं //
वे ही जान रहे जिनको दी ,
उनने झलक दिखाई / हर--
शिव अनुकम्पा जिन्हें मिली है, वे यह अनुभव कर पाते /
सर्व कामना त्याग
निरन्तर , गुप्तेश्वर के गुण गाते //
हुये विरत जो शरण में आकर ,
धूनी रहे रमाई / हर--
हे शम्भो सुख भोग त्याग जो, भक्त पड़े सेवा करते /
उनको देते हो हरि भक्ति,सदगुरु बन भव-दुख हरते //
पूर्ण कामना करते हो प्रभु , अपनी झलक दिखाई / हर--
मधुकर जो गुप्तेश्वर महिमा , नित्य सुनेंगे गायेंगे /
साम्बसदाशिव कृपा प्राप्त कर ,
उनमें ही रम जायेंगे //
कट जाते उनके भव बन्धन ,
गुरु से दें मिलवाई / हर--
उदयभानु तिवारी ''मधुकर''
५०१ दत्त एवेन्यू अपार्टमेंट
नेपियर टाउन जबलपुर
Mob. 9424323297
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