Wednesday, 31 August 2016











स्वयंभू सिद्धपीठ गुप्तेश्वर माहात्म्य 

दोहा ;-

तपो   भूमि   जाबालि   की  ,  गुप्तेश्वर    है   नाम /
त्रेता   युग   में   राम  ने  ,  बना  दिया  शिवधाम //

गुप्त  राम शिव के  मिलन , का प्रमाण यह धाम / 
प्रगट  हुये  शिव  जी यहाँ  , पड़ा   स्वयंभू   नाम //

                   नर्मदा उदगम 

जंगल  ,   घाटी ,    पर्वत  ,   चीरत  ,   चलीं   नरमदा   माई /
हर   हर   शिव   गुप्तेश्वर   हर   ध्वनि  ,  कानन   पड़े   सुनाई,
 कानन      पड़े      सुनाई   ,   हर        हर       हर    महादेव //

सिद्ध    साधकों   का   तपस्थल ,  रेवा    तट   सबको   भाता /
प्रकृति  नटी  ने  रची  गुफायें  ,  जहाँ  पहुँच  मन  रम  जाता //
विन्ध्याचल    पर्वत    माला    तरु  ,  छाँव    बड़ी    सुखदाई /
हर   हर  शिव   गुप्तेश्वर    हर    ध्वनि ,  कानन   पड़े  सुनाई //

निकल  पूर्व  से  पश्चिम  हो गईं ,  दुर्गम  जंगल   पार  किया /
दामिनी  सी  लहराती  पथ में , आगे  निज  विस्तार  किया //
महाबाहु    ने   जब    पथ   रोका ,  सहस    धार   भईं   माई /
हर हर -----------------------------------------------------------------// 

चलीं     मंडला    से    आगे  ,  वीरान    वनों   को  सरसाती /
ग्वारीघाट   तटों   पर  सन्तों ,  की   टोली   महिमा   गाती //
महाआरती     धुन       मन     मोहे ,  रेवा     लहर    समाई / 
हर हर ----------------------------------------------------------------//

भिन्न  भिन्न  देवों  के मंदिर , पूजन  क्रम  दिनरात  चले /
दीपदान की सुन्दर छवि लख,हृदय भक्ति की ज्योति जले //
इनके  तट  पर  छटा   प्रकृति   की  अनुपम   देत  दिखाई /
हर हर ---------------------------------------------------------------//

ऋषि  जाबाली   नगर  जबलपुर  बसा   हुआ  है  तीरे  में /
गुप्तेश्वर था  ऋषि   तप  स्थल  ,  गुफा  छिपी  थी  घेरे  में //
करें  रुद्र  अभिषेक   नित्य  जिनमें   शिव  भक्ति  समाई /
हर हर ------------------------------------------------------------//

त्रेता युग में सब ऋषि आश्रम,सिया लखन श्री राम गये /
ध्यान में डूबे मुनि सुतीक्ष्ण के,हिय से अन्तर्ध्यान भये //
मुनि   अकुलाय    उठे   देखा ,  हैं   खड़े   राम   रघुराई /
हर हर -------------------------------------------------------------//

मुनि सुतीक्ष्ण जी से मिलने , जाबालिऋषी आश्रम आये /
प्रभु  दर्शन  की  आशा  में  वे  , आश्रम  में  थे  विलमाये //
सुना  आगमन  हुआ  राम   का , हर्ष   न   ह्रदय   समाई /
हर हर ------------------------------------------------------------//

कर वन्दन अभिनन्दनजब, जाबालि ऋषी ने ध्यान किया /
शोकमग्न  है  नगर अयोध्या , राम बिना, यह जान लिया //
रहे    अयोध्या   राज   सभासद ,  मोह    घटा   घिर   आई /
हर हर ---------------------------------------------------------------//

राम  विष्णु  अवतारी  हैं , इस ओर न ऋषि ने गौर किया /
भरत  आग्रह  मान  अयोध्या , वापस का  प्रस्ताव  दिया //
रानी   केकई  को  समझाने ,  की   धुन  मुनि   मन  आई  /
हर हर ----------------------------------------------------------//

कहा राम ने यह अनुचित  है, मुनिवर  जो  मन  ठानी  है /
भावुकता है मोह की  जननी , आप  महा  मुनि  ज्ञानी  हैं //
यह  सुन  पश्चाताप  हुआ , मुनि  मन  में  ग्लानि  समाई /
हर हर -----------------------------------------------------------//

मायापति  श्री  विष्णु  राम हैं ,  जिनने  मुझे  जगाया  है /
दृश्य  ध्यान  में  देखा है  जो , वह   उनकी   ही  माया  है //
मेरे मन  का तम  हरने , यह  ज्ञान  की  ज्योति  जलाई /
 हर हर ---------------------------------------------------------//

स्थितप्रज्ञ  वही  जिसके  मन , हर्ष  शोक  नहिं आता है /
रहे   ब्रह्म  में लीन  सदा , जग  से   विरक्त   हो   जाता  है //  
 ज्ञान हॄदय में प्रगट  हुआ, गति  मन  की  नहिं  दरशाई /
 हर हर ---------------------------------------------------------//

उद्वेलित  मन  शान्ति हेतु  तप, का  संकल्प हृदय आया /
मुनिसुतीक्ष्ण का आश्रम त्यागा,रेवा तट मन को भाया //
चले   तपस्या  हेतु   महामुनि ,  तपस  लगन  रँग  लाई /
हर हर ---------------------------------------------------------//

ग्वारीघाट   निकट    उत्तर   तट,   ऊँची  एक  पहाड़ी  में /
शिला  के  नीचे  एक  मनोहर ,गुफा  छिपी  थी झाडी में //
रेवा  जल   का   गुप्त   स्रोत  था ,  अति  शीतल  अँवराई /
हर हर ---------------------------------------------------------//

हरियाली मन  मोह  रही  थी , सीताफल  के  पेड़ सघन /
बेर , करोंदे, बेरी , जामुन  और  मुकुइयों  का   था   वन //
मृगशावक   भर   रहे   कुलाँचें  ,  मन  को  लेत   लुभाई /
हर हर ----------------------------------------------------------//

मन्द सुगन्धित पवन डोलती,पुष्प खिले बहु कुंजन में /
रस   लोभी  भौंरे  गुँजारैं ,  हर्ष  हुआ  ऋषि  के  मन  में //
नाचें  मोर  कूकती  कोयल , शुक  रहे  शिव  गुण  गाई /
 हर हर --------------------------------------------------------//

भिन्न भिन्न स्वर में खग बोलें,कपि किलकत विचरत वन में / 
देख रमा जाबलि ऋषी मन , निकट गुफा के निर्जन में //
तरु  के   नीचे   एक  शिला   पर , बैठे  ध्यान  लगाई ई /
हर हर ---------------------------------------------------------//

वहाँ राम का  ध्यान गया जब ,विदा हुये सब मुनियों से /
ऋषि जाबाली दिखें  नहीं , पूछा  आश्रम  के  ऋषियों  से //
देखा   ध्यान   लगा   कर   रेवा   तट  पर  दिये   दिखाई /
हर हर ----------------------------------------------------------// 

कुम्भजऋषि के तपस क्षेत्र में, सब ऋषियों से राम मिले /
गुप्त  वास   में   जाबाली   से  मिलने   प्रभु   श्रीराम  चले //
कृपा   दृष्टि   कर  ग्लानि   भक्त  की,  हरन  चले  रघुराई /
हर हर -----------------------------------------------------------//    

शंका  करें न कोई  मन  में , राम व्याप्त  जग  स्वामी  हैं /
रूप   अनेकों   धारण   करते  , वे    हरि   अन्तर्यामी   हैं //
यह   महिमा   प्रभु  की  वे  जाने , जिनने  लगन  लगाई /
हर हर ----------------------------------------------------------//

राम  वही शिव  रूप वही, जो  रूप  भक्त  को  भा जाता /
रूप वही वह प्रगट करे  , जिसमें वह  प्राणी रम जाता //
वह अलख और अद्वैत ब्रह्म ,जिसने यह प्रकृति बनाई है /
हर हर -------------------------------------------------------//

ध्यान में देखा शिव ने प्रभु ,ऋषिवर से मिलने को आये / 
राम  बिना  पद  त्राण  चले , शिव  भी  रेवा तट को धाये //
गुप्त  वास   लख  गुप्त   रहे  शिव, दिये  न   कहीं  दिखाई /
हर हर ---------------------------------------------------------//

शिव  शंकर  रेवा  के  कंकर , बन  पथ  में  बिछ  जाते हैं /
जहाँ   राम   पग   धरते  शिव , स्पर्श  राम   का   पाते  हैं //
धन्य   भाग   जाबाली   जिस   पर,   अनुकम्पा   बरसाई /
हर हर -----------------------------------------------------------//

इसीलिये     रेवा    के    कंकर  ,  शंकर    माने    जाते   हैं /
प्राणप्रतिष्ठा    बिना   प्रतिष्टित,  ये   फल   प्राप्त  कराते हैं //
जिसका   निर्मल   भाव  वही,   यह   जान   रहा  प्रभुताई /
हर हर -----------------------------------------------------------//

जा   पहुंचे   रेवा   के   तट   जो , ग्वारीघाट   कहा   जाता /
उत्तर   में   है   एक   पहाड़ी ,  दृश्य   मनोहर   मन   भाता //
बिछे   प्रकृति   के   हरे   गलीचे  , शिव   भर   रहे   लुनाई /
हर हर ------------------------------------------------------------//

बढी  शिलाओं   के   नीचे  थी , छाँव  धूप  नहिं  आती  थी /
नीचे   रेवा  स्रोत   गुफा   भी , मनहर   सबसे   न्यारी  थी //
वहीं   निकट   ही   तप   करते ,  जाबाली    दिये   दिखाई /
हर हर -----------------------------------------------------------//

कलरव  करते  पंछी  मानो ,  शिव  जी  के  वे   गुण  गाते /
नाचें   मोर  पपीहे   बोलें  ,  छटा    प्रकृति   की   सरसाते //
रुकजाता    पथ    चलता    राही ,   मोहे    मन    अमराई /
हर हर -----------------------------------------------------------//

मन   आकर्षित  करें   शिलायें ,  कोयलिया   गाना  गाती /
हर   हर   कहतीं   पीपर   पाती , उन्हें  पवन थी  दुलराती //
राम  को  आते  देख   प्रकृति   ने  ,  अदभुत   छटा   बनाई /
हर हर ------------------------------------------------------------//

लखा  राम  ने  ऋषिवर बैठे  ,  तप   में   ध्यान   लगाये  हैं  /
द्रवित   हुये   श्रीराम   दयानिधि  , दृश्य   देख    हर्षाये   हैं //
शिव   पूजन   के    लिये    निकट   से  ,  रेवा    रेत   उठाई /
हर हर -------------------------------------------------------------//

बालू   से   शिव    लिंग   बनाया  ,  जैसा   है   रामेश्वर   में /
पूजन  करके   किया  स्तवन , शंकर  का  मंगल  स्वर  में //
किया   इष्ट  का   ध्यान   हृदय , अनुराग   धार   बह  आई  /
हर हर -------------------------------------------------------------//
                                  
                  राम द्वारा शिव स्तुति 

कण कण में हो व्याप्त तुम्हीं,है काल आपकी गति शम्भो /
सभी  दिशायें  श्रवण आपके , वरुण  रूप  रसनेन्द्रि  प्रभो //
वेदरूप     ओंकारेश्वर     जग   ,   जाने      नहिं     प्रभुताई /
हर हर ------------------------------------------------------------//

सूर्य,  अग्नि  अरु  चन्द्र  नेत्र  तव, हे  महेश  शिव त्रिपुरारी /
नभ नाभी अरु वायु श्वास प्रभु , अलख निरञ्जन अविकारी //
प्रगटें    हे   शिव   त्रयम्बकेश्वर  ,  विनय     करत   रघुराई /
हर हर ------------------------------------------------------------//

      (शिवजी द्वारा प्रकट होकर राम की स्तुति)

राम नयन अभिराम आपको , शिव भी करत  प्रणाम प्रभो /
पद्मनाभ   हे   विशालाक्ष  ,   हे   विश्वरूप   सुखधाम  प्रभो //
इन्द्रि   नियंता    तत्वरूप    नहिं    थाह   किसी   ने  पाई /
हर हर ------------------------------------------------------------//

परमानन्द   स्वरूप   तुम्हीं ,  सर्वात्म   रूप   अन्तर्यामी /
मनस  बुद्धि  के  अधिष्ठान है, नमस्कार  त्रिभुवन स्वामी //
ऐसा    कह    प्रगटे    गुप्तेश्वर,  दामिनी   सी   द्युति   छाई /
हर हर -----------------------------------------------------------//

भेंटे   शिव  श्रीराम  अलौकिक  दृश्य  न  कोई  जान रहा /
गुप्त वास  में  राम  इसीसे,   नहीं   किसी   को   भान रहा //
नाम   हुआ   गुप्तेश्वर   सबको , झलक   न   पडी   दिखाई /
हर हर ------------------------------------------------------------//

शिव, श्रीराम मिलन के क्षण में,जाबाली  का ध्यान हटा /
सम्मुख शिव,श्रीराम को देखा , मन  का पश्चाताप मिटा //
किया प्रणाम राम को ऋषि ने  , हरि  हिय  लिये  लगाई /
हर हर ----------------------------------------------------------//

                   जाबालि ऋषि द्वारा श्री राम स्तुति)

हिय  में  हरि  स्पर्श  मिला ,  दिव्यानंदी  अनुभूति   हुई /
बने   नयन  सावन  के  घन , बुझ गई  तपन संतुष्टि हुई //
पुनि कर जोरि  किया स्तुति , जय जय त्रिभुवन सुरराई /
हर हर ---------------------------------------------------------//

नील  सरोरुह  श्याम  स्वरूपं , पाणि   मनोहर  चाप धरं /
व्यापक  दिव्य  अनादि  अजं, रघुवंश विभूषण भूप वरं //
दीनानाथ    दया    करके  ,  दो    बुद्धि   विभेद   नशाई /
हर हर ---------------------------------------------------------//


कलुष निकन्दन भव भयभंजन ,भू आभूषण ज्ञान घनं /
प्रगटे  प्रभु  हरने  भू  भारं , पुरुषोत्तम   अभिमान   हनं //
 त्रिभुवनपति  हो  गया  धन्य  मैं ,आज  दरस तव पाई / 
हर हर --------------------------------------------------------//

मुनि मनरञ्जन  रघुनन्दन हे ,  हृदय  ताप, अज्ञान  हरं / 
शोक  हरं  प्रभु  बोधमयं , जगदादि  दयानिधि  दोष  हरं //
सुर  काज   हेत   प्रगटे   भुवि  में , मायामय   रूप  बनाई /
हर हर ----------------------------------------------------------//

जगत  गुँथा   तुममें   ऐसे , ज्यों   सूत्र   पिरोई   मणि  माला /
दीप्तिवान  कण  कण  तुमसे, हो सृष्टि विनाशक तुम ज्वाला //
कर    वन्दन  अभिनन्दन ,  निर्मल   भक्ति   राम   की   पाई /
हर हर ---------------------------------------------------------------//

             (जबालि  ऋषि द्वारा शिव जी की स्तुति )

स्तुति कर भगवान राम की  , शिव  को  दण्डप्रणाम किया /
करने  मम  कल्याण  सदाशिव , दरश  राम  के  संग दिया //
धन्य    आज   मैं   हुआ    प्रभो  ,  जो   कृपा   आपकी   पाई /
हर हर --------------------------------------------------------------//

आप   यहाँ   प्रत्यक्ष   हुये ,  श्रीराम   समागम   के   कारण /
जन्म मृत्यु रुज वैद्य तुम्हीं  हो , तुम  करते   भव  उद्धारण //
शरण   आपकी   आया   हूँ  ,  दो   हरि   में   विलय   कराई /
हर हर ------------------------------------------------------------ //

                     ( शिवजी द्वारा आशीष)

जाबालि  तुम्हारे  कारण  ही , श्रीराम  यहाँ  चलकर आये /
जो भक्त राम की भक्ति करे , वह सबसे अधिक मुझे  भाये //
यह कह ऋषि तप सफल किया ,यशकीर्ति ध्वजा फहराई /
हर हर ----------------------------------------------------------//

गुप्तेश्वर   में  आकर   जो   श्री राम  ,  कृष्ण   गुण   गायेंगे /
कथा  भागवत  का  अमृत  रस , मुझको   पान   करायेंगे //
वे    पायेगे    हरि   अनुकम्पा   ,  मैं     भी    करूँ    सहाई /
हर हर -----------------------------------------------------------//


भक्त   तपस्या   करते  हैं  जो ,  रेवा   के  तट  पर  आकर /
सदगुरु  बन  मैं  राह  दिखाऊँ , मिलवाऊँ  प्रभु से जाकर //
मुक्ति    जगत   से    वे     पा   जाते  ,  दूँ   संयोग   बनाई /
हर हर -----------------------------------------------------------//

          (श्रीराम जी द्वारा जाबालि ऋषि को आशीष)

कहा    राम    ने   यह   तपस्थल,   गुप्तेश्वर   कहलायेगा /
ऋषि जाबाली  पुरम  नाम,  विख्यात  नगर हो जायेगा //
सिद्धि   बढ़ेगी   कलयुग   में   शिव,धाम   बने   सुखदाई /
हर हर ---------------------------------------------------------//

कुछ कालान्तर  बाद गुफा यह ,मिट्टी से  ढँक  जायेगी /
कलियुग में फिर यही गुफा ,शिव अनुकम्पा बरसायेगी //
यह  सुन   हर्षित  हुये  महामुनि ,  भक्ति   और   गहराई /
हर हर ---------------------------------------------------------//

परम्परा  अनुसार शिष्य  को, सिद्धि  प्रभेद  बता  जाना /
बनती  जाये  राह  स्वयं  ही , ऐसी  ज्योति  जला जाना //
यह कह अन्तर्ध्यान हुये हरि ,  हर  ऋषि  लगन  बढ़ाई /
हर हर --------------------------------------------------------//

शिवजी को ऋषिवर के कारण , रामचन्द्र सानिध्य मिला /
रहे यहाँ कुछकाल और प्रभु,राम हॄदय शिव  कमल खिला //
 इक   दूजे   के    इष्ट    हरि,  हर ,  बुद्धि  थाह  नहिं  पाई /
हर हर ------------------------------------------------------------//

परम वैष्णव साम्बसदा शिव, हिम  गिरि  के जामाता हैं /
सत्यलोक   वे    प्राप्त    कराते ,  तारक    मंत्र   प्रदाता  हैं //
राम , कृष्ण  दुर्गादि  महोत्सव ,  में   द्युति   दें   झलकाई /
हर हर -----------------------------------------------------------//

भिन्न  भिन्न श्रृंगार मनोहर, शिव  के  सजते सावन में /
काँवर ,पुष्प चढ़ें  घन  बरसें, रिमझिम  बेला  पावन  में //
भक्त  करें  अभिषेक  भक्ति   नहिं , हिय  में  रही  समाई /
हर हर ----------------------------------------------------------//

जब आती शिवरात्रि ,भक्तगण शिव पूजन अर्चन करते /
शिव  भक्ती  से  ओत  प्रोत , शिव  भजनों  में डूबे  रहते //
पूर्ण     कामना   करें   सदाशिव ,  कृपा   दृष्टि   बरसाई /
हर हर --------------------------------------------------------//

ओंकारमय   हो   जाता ,  शिवरात्रि    पर्व   में   गुप्तेश्वर /
महा महेश्वर  , अदित्येश्वर   महाकाल   जय  भुवनेश्वर //
हर  हर  मातु  ,नर्मदे  ,हर  सब , बोलें , ध्वज  ,लहराई /
हर हर --------------------------------------------------------//

करें  साधना  गुप्तेश्वर  की , अनुकम्पा  शिव  की  पायें /
हो  जातीं  सब  पूर्ण  कामना , भक्त  उन्हीं में रम जाये //
मधुकर   शिव   गुप्तेश्वर   देते ,  भव   से    पार   कराई /
हर हर --------------------------------------------------------//

                                     उदयभानु तिवारी ''मधुकर'' 

  

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