किस कारण हरि ने लिया , वामन का अवतार /
ध्यान सुस्थिर कर सुनें , कहूँ सहित विस्तार //१//
अष्वमेध शुभ यज्ञ जो , पूर्ण करे सौ बार /
उसको ही है इन्द्रपद , पाने का अधिकार //२//
छीन लिया था युद्ध में , असुरों ने वह राज /
भगा दिया था इन्द्र को , आ बैठा बलि राज //३//
असुरों के सम्मुख सदा , देव रहें बल हीन /
यज्ञ कर्म फल प्राप्ति से , सुर हो गये विहीन //४//
सुर माता देवी अदिति , मन में रहतीं खिन्न /
जब समाधि से ऋषि उठे ,दिखीं न देवि प्रसन्न //५//
कारण पूछा तब कहा , देवी ने सब हाल /
बिना स्वर्ग के देवता , भटक रहे बेहाल //६//
तब ऋषि कश्यप ने कहा , देवि सुनो धर ध्यान /
वासुदेव का व्रत करो , जो हैं जगत निधान //७//
वही करेंगे दूर दुख , देवों का कल्याण /
ब्रह्मा ने मुझको कहा , देवी वह व्रत ठान //८//
व्रत की सब विधियाँ कहीं , देवी को समझाय /
अदिति लगीं वह व्रत करन , वासुदेव को ध्याय //९//
हुआ पयोव्रत पूर्ण जब , प्रकट भये विश्वेश /
अदिति ने कीन्हीं दण्डवत , बोलीं हे हृदयेश //१०//
जय जय जय हे जगतपति,शक्ति विभूति निधान /
हे जग कारण दुख हरण , वासुदेव भगवान //११//
कहूँ आपसे क्या प्रभो , आप रहे सब जान /
ऐसा हरि कुछ कीजिये , जिससे हो कल्यान //१२//
बोले प्रभु हे देवि मैं , जानूँ मन की बात /
देवराज का पद छिना , ह्रदय लगा आघात //१३//
ईश विप्र सब हैं अभी, असुरों के अनुकूल /
युद्ध न जीता जा सके , सब कुछ है प्रतिकूल //१४//
किन्तु पयोव्रत आपका , जायेगा नहिं व्यर्थ /
मैं ही आऊँगा स्वयं , बन कर पुत्र समर्थ //१५//
तब दिलवाऊँगा उन्हें , पुनः स्वर्ग का राज /
हो जायेगा देवि तव , पूर्ण मनोरथ काज // १६//
कश्यप ऋषि में ही मुझे, स्थित देवी मान /
साधूँगा सब काज मैं, बन्धु देवगण जान //१७//
मेरे गुप्त रहस्य को , करें न कहीं बखान /
ऐसा कह कर हो गये , श्री हरि अन्तर्ध्यान //१८//
ऋषि की सेवा में हुईं , देवि अदिति तल्लीन /
हरि आयेंगे ध्यान में , उनके रहतीं लीन //१९//
आये हरि जब गर्भ में , प्रगटा तेज महान /
मानो दिनकर आ गये , हुआ उषा का भान //२०//
पहुँचे ब्रह्मा जी वहाँ , लगा लिया अनुमान /
देवि अदिति के गर्भ से , प्रगटेंगे भगवान् //२१//
जोरिपाणि स्तुति किया , हे त्रिभुवन करतार /
यज्ञ भोक्ता आप ही , देवों के रखवार //२२//
यज्ञ अगर सौ हो गये , विधिवत हो अधिकार /
देवों को हो जायेंगे , बन्द स्वर्ग के द्वार //२३//
ज्योतिपुन्ज आनन्दमय , अखिलेश्वर , अभिराम /
सर्व व्याप्त प्रभु आपको , बारम्बार प्रणाम //२४//
माह , पक्ष , दिन , काल जब , सभी भये अनुकूल /
पीताम्बर , कौस्तुभमणि , शोभित सरसिज फूल //२५//
शंख , गदा औ चक्र से , युक्त चतुर्भुज रूप /
धारण कर प्रगटे अदिति , ऋषि समक्ष सुर भूप //२६//
देखते ही देखते , विष्णु चतुर्भुज रूप /
बदला वामन विप्र में , अनुपम दिव्य स्वरूप //२७//
जातकर्म सप्तर्षि ने , किया शास्त्र अनुसार /
हर्षित सुर , गन्धर्व , मुनि , लख वामन अवतार //२८//
सविता ने गायत्रि का , कर उपदेश पुनीत /
गुरू वृहस्पति ने किया , वामन यज्ञोपवीत //२९//
कश्यप ने दी मेखला , अदिति मातु कौपीन /
पृथवी ने दी पादुका , दण्ड चन्द्रमा दीन //३०//
विधिना दीन्ह कमण्डल , भिक्षा पात्र कुबेर /
छत्र दिया आ सूर्य ने , दिव्य रूप हरि हेर //३१//
माला दी रुद्राक्ष की , माँ शारद ने आय /
बटुक विप्र पूरण हुये , सभी शक्तियाँ पाय //३२//
फिर प्रगटीं माँ भगवती , निकट विप्र के जाय /
दी वामन भगवान को , भिक्षा प्रथम सजाय //३३//
एहि विधि से सबने किया , जब वामन सम्मान /
मुनि महर्षियों मध्य हरि , हो गये ज्योतिर्वान //३४//
गुरु को जब देने लगे ,वामन भिक्षा का अन्न /
दे तिरलोकी राज्य यदि , करना मुझे प्रसन्न //३५//
अश्व्मेध शुभ यज्ञ जो , पूर्ण करे सौ बार /
उसको ही है इन्द्रपद, पाने का अधिकार //३६//
यज्ञ अगर सौ हो गये , विधिवत हो अधिकार /
देवों को हो जायेंगे , बन्द स्वर्ग के द्वार //३७//
रेवा तट भृगुकच्छ में , विप्र श्रेष्ठ मर्मज्ञ /
भृगुसुत से कर मंत्रणा , करे असुर बलि यज्ञ //३८//
स्वर्ग , धरा , पाताल सब , हैं उसके आधीन /
विप्रों को नित दान बलि , करता यज्ञप्रवीण //३९//
सुन वृतांत वामन चले , कर तत्क्षण प्रस्थान /
जा पहुँचे बलि यज्ञ में , विप्र महा द्युतिवान //४०//
क्षत्र , कमण्डल कर लिये , बाजू में मृगचर्म /
दिव्यकान्ति लख विप्र की , रुका यज्ञ का कर्म //४१//
उठे विप्र सब यज्ञ से , करने को सम्मान /
तेजहीन सब हो गये , सनक , सूर्य अनुमान //४२//
देखा बलि ने कान्तिमय , वामन दिव्यस्वरुप /
मुग्ध हुये इकटक नयन , रहे देखते रूप //४३ //
फिर सादर सम्मान कर , यज्ञमंच में लाय /
बैठारे धोये चरण , बोले वचन सुनाय //४४//
धन्य आज मैं हो गया , पितर हुये मम तृप्त /
यज्ञ सफल मेरा हुआ , मन नहिं रहा अतृप्त //४५//
लगता है कुछ मागने , आये विप्र कुमार /
कहिये क्या सेवा करूँ , स्वयं पधारे द्वार //४६//
स्वर्ण, भूमि, गज मागिये, निज इच्छा अनुसार /
दूँ सहर्ष सम्मान से , धन , सम्पत्ति अपार //४७//
राजन हमें न चाहिये , स्वर्णादिक उपहार /
भूमि तीन पग दीजिये , यदि हैं आप उदार //४८//
विप्र वचन सुनकर हँसे , बोले बलि महाराज /
भूमि तीन पग से नहीं , होगा कोई काज //४९//
भिक्षा में कुछ और भी , मागें हे भूदेव /
पलटूँ नहिं देकर वचन , मन में नहीं फरेव //५०//
तुम समर्थ सब भाँति से , हमें चाहिये अल्प /
भूमि तीन पग से अलग , मन में नहीं विकल्प //५१//
जैसी इच्छा आपकी , भूमि तीन पग स्वल्प /
पढ़ें मन्त्र भूदेव मैं , करता हूँ संकल्प //५२//
बोले शुक्राचार्य तब , मत बन बलि अनजान /
ये छलिया श्रीविष्णु हैं , इन्हें न दे कुछ दान //५३//
तीन पाद में नाप के , लेंगे सब कुछ छीन /
माने नहिं मम वचन यदि , तो होगा श्रीहीन //५४//
गुरुवर यदि ये विष्णु हैं , तब भी है कल्यान /
अपयश हो तिरलोक में , करूँ नहीं यदि दान //५५//
वचन दिया है दान का , मेटूँ तो हो पाप /
पोता हूँ प्रह्लाद का , होगा मन संताप //५६//
ऐसा कह पूजन किया , बोला हे भूदेव /
देता हूँ भू दान मैं , यदपि रुष्ट गुरुदेव //५७//
पूर्ण हुआ संकल्प जब , बढ़ा विप्र का रूप /
विस्मित सुर , गन्धर्व सब , नभ पहुँचे सुरभूप //५८//
नापा पहले पाद में , धरा और आकाश /
दूजे पग में स्वर्ग को , नापा हुआ प्रकाश //५९//
ब्रह्मा ने धोये चरण , लिया कमण्डल धार /
वह देवी मन्दाकिनी , पापी हों भवपार //६०//
विमल कीर्ति भगवान की , यत्र तत्र सर्वत्र /
बन सुरसरि त्रय लोक तक, सबको करे पवित्र //६१//
जब नारायण ने किया , धारण पुनि लघु रूप /
की देवों ने वन्दना , कर यशगान अनूप //६२//
जाम्बवन्तजी ने तभी , हरि जय भेरि बजाय /
पवन वेग से पूर्ण की , भू प्रदक्षिणा धाय //६३//
असुरों ने देखा किया , छल धर वामन रूप /
बोले यह ब्राह्मण नहीं , है छलिया सुरभूप //६४//
मारो मारो कह चले , सब ले ले तलवार /
विष्णु पार्षद भी हुये , युद्ध हेतु तैयार //६५//
लगे असुर संहारने , हरि के प्रगटे दूत /
देखा मारे जा रहे , मेरे असुर सपूत //६६//
रोक दिया बलिराज ने , करें न कोई युद्ध /
समय नहीं अनुकूल यह, स्थिति अभी विरुद्ध //६७//
सुन ऐसे निज नृप वचन , असुर गये पाताल /
हरिपार्षद गण से हुये , सभी दैत्य बेहाल //६८//
तभी गरुण जी ने किया , वरुणपाश संधान /
बाँध दिया बलिराज को , हरि की इच्छा जान //६९//
हाय हाय करने लगे , सर्व दिशा में लोग /
थे दृढ़निश्चययुक्त बलि , व्यापा नहीं वियोग //७०//
रे दानी नृप हो गया , था तुझ को अभिमान /
गुरुवर शुक्राचार्य ने , लिया मुझे पहचान //७१//
गुरु ने किया सचेत पर , दिया न तूने ध्यान /
दो पग में सब ले लिया , अब क्या देगा दान //७२//
बलि अब तीजे पाद को , भूमि नहीं है शेष /
हुआ दान नहिं पूर्ण तो , नर्क में करे प्रवेश //७३//
हे प्रभु तीजा पाद अब , धरिये मेरे शीश /
कर्ज उतारें दान का , मुझको दें आशीष //७४//
मैं डरता अपकीर्ति से , नहीं राज्य का लोभ /
जितना चाहें दीजिये , दण्ड नहीं है क्षोभ //७५//
इतने में आये वहाँ , दैत्यराज प्रह्लाद /
हरि को सम्मुख देखकर , उमगा हिय आल्हाद //७६//
वरुणपाश में ही बँधे , बलि ने किया प्रणाम /
अश्रुपूर्ण दृग , शिर झुका , हुआ विधाता बाम //७७//
भगतबछल भगवान को , कर साष्टांग प्रणाम /
जोरिपाणि प्रहलाद जी , बोले हे सुखधाम //७८//
दिया आपने था प्रभो , बलि को सुरपुर राज /
और आपने ही इसे , छीन लिया है आज //७९//
जैसा सुन्दर आगमन , वैसा ही प्रस्थान /
लेते वैभव छीन जब , हो जाता अभिमान //८०//
बलि पर कीन्हीं है कृपा, इन्द्रासन को छीन /
मायावी यह लक्ष्मी , करती भक्ति विहीन //८१//
फिर आई विन्ध्यावली , बँधे देख बलि , हीन /
कर प्रणाम भयभीत मन , बोली होकर दीन //८२//
क्रीड़ा करने जगत यह , करते प्रभु विस्तार /
तुम , कर्ता , भर्तार अरु , तुम्हीं करो संहार //८३//
जो माया से हैं ग्रसित , हो जाते वे मूढ़ /
करते नहीं समर्पण , प्रभु तव गति अतिगूढ़ //८३//
फिर ब्रह्मा जी ने कहा , हे प्रभु जगतस्वरुप /
सब कुछ अर्पण कर दिया, बलि ने हे सुरभूप //८४//
नहीं पात्र यह दण्ड का , कीजै बन्धन मुक्त /
दियाराज त्रयलोक का , दृढमति धैर्यसयुक्त //८५//
हे ब्रह्मा जी मैं करूँ , जिस पर कृपा विशेष /
उसका लेता छीन सब , कुछ भी रहे न शेष //८६//
निजकर्मों से जीव यह , भिन्न योनि में जाय /
रहे भटकता अन्त में , मम अनुकम्पा पाय //८७//
मनुज रूप धारण करे , रहे न मन में गर्व /
मम शरणागत हो मुझे , करता अर्पण सर्व //८८//
पाकर धन , ऐश्वर्य से , जिसे न हो अभिमान /
मम अनुकम्पा से वही , होता पुरुष महान //८९//
डिगा नहीं बलि धर्म से , बाँध दिये बहु कष्ट /
अतिप्रसन्न मैं आज अब , होगा नहीं अनिष्ट //९०//
सावर्णि मन्वन्तर जब , आयेगा बलिराज /
परम भक्त मम , इन्द्र का, फिर भोगेगा राज //९१//
धर्मनिष्ठ मतिवान बलि , तेरा हो कल्याण /
श्रेष्ठ लोक देता तुझे , भक्त शिरोमणि जान //९२//
सुतललोक जाकर रहो , बन्धु , पूर्वजो संग /
लोकपाल तुमसे नहीं , जीत सकेंगे जंग //९३//
तव आज्ञा अवहेलना , करिहैं जो मतिहीन /
कर देगा मम चक्र यह , उनको प्राण विहीन //९४//
तेरे अनुचर के सहित , रक्षा में बलि नित्य /
मुझको पायेगा निकट , कहता हूँ मैं सत्य //९५//
दैत्य दानवों संग से , उपजे आसुर भाव /
हो जायेगे नष्ट सब , अब मम भक्ति प्रभाव //९६//
कृपासिंधु के वचन सुन , अश्रुपूर्ण भये नैन /
कंठ रुद्ध , गदगद हुये , बोले बलि मृदु बैन //९७//
मैंने किया प्रणाम प्रभु, वह फल पाया आज /
जो शरणागत भक्त को , देते हैं सुरराज //९८//
लोकपाल औ देवगण , जो फल सके न पाय /
दिया सहज ही वह मुझे , कृपा दृष्टि बरसाय //९९//
ऐसा कहते ही हुये , वरुणपाश से मुक्त /
कर प्रणाम त्रयदेव को , हो गए राज्यविमुक्त //१००//
सुतल गये बलिराज तब , दे सुरेन्द्र को राज /
गुरु की भिक्षा पूर्ण की , सुर के साधे काज //१०१//
प्रहलाद सुपुत्र विरोचन , उनकेसुत बलिराज /
धर्म धुरन्धर हो गये , दे त्रिलोक का राज //१०२//
देखा पोता हो गया , बन्धन से आज़ाद /
अति प्रसन्न गदगद हुये, परमभक्त प्रहलाद //१०३//
पुनि की प्रभु की वन्दना, भगतबछल भगवान /
हम पर है अद्भुत कृपा, क्या क्या करूँ बखान //१०४//
हम असुरों को जो दिया, विमलभक्ति अनुराग /
वैसा विधि ,शिव , लक्ष्मी, के हिय भरा न राग //१०५//
जिन चरणों की वन्दना , करते ब्रह्मादेव /
वही हमारे बन गये , द्वारपाल हे देव //१०६//
हरि बोले प्रहलाद सुत, हो तेरा कल्यान /
सुतल लोक के हेतु अब, तू भी कर प्रस्थान //१०७//
वहाँ गदा ले हाथ में , देखे मुझको नित्य /
मधुकर यह अद्भुत कृपा , कोई माने सत्य //१०८//
कर प्रणाम हरि को चले,सुतल लोक प्रहलाद /
शब्दब्रह्म ने भर दिया, मधुकर मन आल्हाद //१०९//
डॉ पं० उदयभानु तिवारी मधुकर
दत्तएवेन्यू फ्लैट न० ५०१
नेपियर टाउन जबलपुर
मो० ९४२४३२३२९७
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