बन्दे ! मन है उड़न खटोला /
मानव तन है इसका चोला //
पल में सैर करे दुनिया की , कहीं ठहर ना पाये /
जहाँ लगाऊँ इसे वहाँ से फुर्र फुर्र उड़जाये //
आत्मा की ये बात न माने, अलख और बड़बोला /
बन्दे ------------------------------------------------//
भिन्न भिन्न भावों के रस में,इधर उधर अनूरागे /
स्थिर करूँ ध्यान में तो ये , झटपट उससे भागे //
कृष्ण मिताई ने मधुकर में, जीवन का रस घोला /
बन्दे ------------------------------------------------//
भिन्न आत्मा से जब तक मन,स्थिर बुद्धि न आये /
जब सत्संग करे आत्मा से , योग सिद्ध हो जाये //
रहे एक रस में अपना, जिसने अन्तर पट खोला /
बन्दे ---------------------------------------------------//
उदयभानु तिवारी मधुकर
No comments:
Post a Comment