हिरण्यकश्यप वध
दोहा;- ब्रह्मा रचना से अलग ,हरि ने किया विकास /
हिरण्य कश्यप मारने, बना लिया मलमास //
नहीं दिवस रजनी नहीं , संध्याकाळ उजास /
नृसिंहरूप धर खम्भ से , प्रगटे हुआ प्रकाश //
धाय पकड़ रिपु को लिया,ज्यों सिंह करे शिकार /
भीतर बाहर भी नहीं , बैठे देहरी द्वार //
अधर लिटाया गोद में , नहीं धरा आकाश /
अस्त्र शस्त्र भी हैं नहीं , है पुरुषोत्तम मास //
नहीं मनुज पशु भी नहीं , नहीं देव का रूप /
ब्रह्मा रचना में नहीं , यह नरसिंह स्वरुप //
वर मागा वह है नहीं , बचने का आधार /
रिपु को सभी गिनाय के , बोले वचन उचार //
रे खल रक्षक हो अगर , तो ले उसे पुकार /
काल सामने आ गया , करने को संहार //
हिरण्य कश्यप पर किया, यह कह नख से वार /
सिंहनाद करके दिया , खल का उदर विदार //
जब हरि ने गर्जन किया, काँपे तीनों लोक /
अभय किया प्रह्लाद को , करके उसे अशोक //
नृसिंह रूप को देख कर , देव सभी भय खायँ /
हाथ जोड़ विनती करें, नहीं सामने जायँ //
क्रोध शान्त करने चलीं, लक्ष्मी हरि के पास /
नृसिंह रूप को देख कर ,वे नहिं गईं सकाश //
गये निकट प्रहलाद तब , हरि ने सूँघा शीश /
उसे अंक बैठाय निज , दिया श्रेष्ठ अशीष //
ज्यों शावक को सिंहनी , चाटे करे दुलार /
वैसे नरसिंह रूप में , किया भक्त से प्यार //
तिलक किया प्रह्लाद का , करके रहित विकार /
देव पुष्प वर्षा करें , ''मधुकर'' मंत्र उचार //
सोरठा;-
तब से कृपानिधान,''मधुकर'' के पीयूष हरि /
भगतबछल भगवान,हुये ख्यात इस सृष्टि में //
उदय भानु तिवारी ''मधुकर''
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