कहाँ छिपे गिरिधारी, ये ढूढ़ रहीं सखियाँ तुम्हारी /
हम विपदा की मारी सुनो हो श्याम विनती हमारी //
खोज थकीं हम कुञ्ज गलिन में /
कहाँ छिपे जा तुम निर्जन में //
कहाँ हैं राधा प्यारी ,ये ढूँढ रहीं सखिंयाँ तुम्हारी /
हम विपदा की मारी सुनो हो श्याम विनती हमारी //
तुम बिन यमुना तट ना भाये /
विरह तुम्हारा सहा न जाये //
हे पीताम्बरधारी , ये ढूँढ रहीं सखियाँ तुम्हारी /
हम विपदा की मारी,सुनो हो श्याम विनती हमारी //
हम हैं मीन और तुम जल हो
तुम बिन फिरतीं सभी विकल हो
भक्तों के प्रेम पुजारी , ये ढूँढ रहीं सखियाँ तुम्हारी /
हम विपदा की मारी सुनो हो श्याम विनती हमारी //
लता, कुञ्ज, तरु,रात की रानी /
देखे तुमने सारँगपानी //
मधुकर मुकुन्द रस वारी,ये ढूँढ रहीं सखियाँ तुम्हारी /
हम विपदा की मारी, सुनो हो श्याम विनती हमारी //
उदयभानु तिवारी ''मधुकर''
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