कान्हा जब जब वृन्दावन में बंशी मधुर बजाये रे
गोपी रहें न अपने वश में मुरली चित्त चुराये रे
पति स्वरुप में श्रीकृष्ण को
पाने मन अनुरागा
ब्रज बालाओं ने कात्त्यायिनी
देवी से वर मागा
महायोग माया ने क्या संयोग बनाये रे
कान्हा ----------------------------------- ----------//१ //
खिले कुमुद जलजात पूर्णिमा
खिले कुमुद जलजात पूर्णिमा
रात शरद की आई
दृढ़ अनुराग रँगी मधुवन में
कृष्ण चाँदनी छाई
बंशी स्वर में टेर गोपियाँ श्याम न बुलाये रे/
कान्हा ------------------------------------------------//२/
बहती मलय समीर मिलन
अभिलाष जगाती मन में
रात की रानी जुही चमेली
बेला बिहँसीं वन में
जगा मोहनी राग चन्द्र अमृत बरसाये रे
कान्हा -----------------------------------//३//
एक सखी श्रंगार दान ले
दर्पण सम्मुख आई
एक आँख आँजी काजल से
दूजी आँज न पाई
सुनी बांसुरी दौड़ चली मन धैर्य गवाँये रे
कान्हा -------------------------------------//४//
सभी गोपियाँ मनहर मोहन
छवि में निज चित दीन्हें
मन आत्मा अरु प्राण प्रथम ही
नटवर वश में कीन्हें
महारास आकर्षण में मन खिंचता जाये रे /
कान्हा --------------------------------------//५//
कुछ गोपी जो थीं घर अंदर
पंथ न दिया दिखाई
नयन मूद विहवल हो बैठीँ
कृष्ण प्रीत गहराई
लगा ध्यान प्रगटे मुरलीधर ह्रदय लगाये रे /
कान्हा----------------------------------------//-६//
पाप पुण्य परिणाम रूप
गुणमय नश्वर तन छोड़ा
महारास रस पाने को निज
आत्म रूप तन जोड़ा
दिव्य अलौकिक दृश्य जगत यह देख न पाये रे /
कान्हा ---------------------------------------------//७//
जैसे सागर से मिलने को
सारी नदियाँ धाईं
परमब्रम्ह से मिलने वैसे
दिव्य आत्मायें आईं
सकल कुमुदिनी मध्य कमल नीलाभ सुहाये रे /
कान्हा -------------------------------------------//८//
चारु चन्द्र की चपल चांदनी
चकवा चित्त चुराये
खिले सुमन बहुरंगी वन की
शोभा कही न जाये
देख प्रकृति की सुषमा अंतरिक्ष मुस्काये रे /
कान्हा --------------------------------------- //९//
ज्यों तारों के मध्य चन्द्रमा
नभ में शोभा पाये
तत्सम् ही नीलभ कृष्ण छवि
सखि समूह में भाये
बैजंती की माल श्याम की छवि दमकाये रे /
कान्हा ------------------------------- ---------//१० //
श्रीकृष्ण मुख चन्द्र चाँदनी
निरखत सखियाँ सारी
सबके चित्त चकोर हुये छवि
देख रहीं मनहारी
स्वयं योगमाया प्रगटी श्रृंगार सजाये रे /
कान्हा ----------------------------------- //११//
ऋतु बसन्त सी छटा मोहनी
चहुँ दिशि पड़े दिखाई
सुमन सुधा रस गंध घोलती
चले पवन पुरवाई
गोपी मंडल मध्य श्याम राधा छवि भाये रे /
कान्हा ---------------------------------------//१२//
हर गोपी के संग विराजे
कान्हा रास रचाने
एक कृष्ण ही दिखें सभी को
भेद न कोई जाने
जितनी गोपी उतने मोहन रूप बनाये रे /
कान्हा ------------------------------------//१३//
चले देव चढ़ यान देवियों
सँग वृन्दावन आये
बजने लगीं दुन्दुभी,प्रभु पर
विपुल सुमन बरसाये
दृष्य देख कर हर्ष ह्रदय से छलका जाये र /
कान्हा -------------------------------------//१४//
करने लगीं नृत्य सब गोपी
थामें कृष्ण कलाई
झनक झनक झन पायल बाजें
कंगन ध्वनि गहराई
नटवर बंशी बजा मोहनी राग सुनाये रे /
कान्हा------------------------------------//१५//
ठुमक ठुमक पग धरें गोपियाँ
निरतत कटि बल खातीं
मनमोहन सँग रास नृत्य के
गान में राग मिलातीं
जब फिरकी सी घूमें चुनरी उड़ उड़ जाये रे /
कान्हा --------------------------------------//१६//
घुँघराले केशों में झुमके
झूल रहे कानन में
लोल कपोलों को छू जाते
उलझें लट आनन में
कृष्ण मध्य हर गोपी दामिनि सी लहराये रे /
कान्हा ----------------------------------------//१७//
लगा झूमने त्रिभुवन ,सुरमय
ताली पड़ें सुनाई
सृष्टा भूल गया सब रचना
मन की गति ठहराई
जागे शिव समाधि से मुरली ध्यान हटाये रे /
कान्हा -----------------------------------------//१८//
भूले ऋषि मुनि ध्यान उन्हें जब
वंशी पड़ी सुनाई
शिव गोपी बन नाचें योगिनि
माया हुई सहाई
राग रागिनी मचलीं बंशी धूम मचाये रे /
कान्हा ------------------------------------//१९//
तिरछी चितवन से मोहन की
देंखें सखियाँ झाँकी
नयन से करतीं सैन ,मंद -
मुस्कायँ भौंह कर बाँकी
रास नृत्य में हरि ब्रह्मा की रात बिताये रे /
कान्हा --------------------------------------//२०//
स्वेद की बूँदें झलकीं ,मुखकी
हो गई छटा निराली
थकीं गोपियाँ देख स्वेद कण
पोंछ रहे वनमाली
गले में बाँहें डाल श्याम से शीश टिकाये रे /
कान्हा ---------------------------------------//२१//
मिला दिव्य आनंद मगन सुर
और गोपियाँ सारी
मागा था वरदान मिले
श्रीकृष्ण विष्णु अवतारी
''मधुकर ''रास नृत्य में मन की गति ठहराये रे /
कान्हा -------------------------------------------२२//
अद्भुत रास नृत्य का वर्णन
शारद नहिं कर पाये
कवि में वह सामर्थ्य कहाँ
उस भाव को व्यक्त कराये
जो जाग गया उसको नटवर वह झलक दिखाये रे /
कान्हा ------------------------------------------------//२३//
उदयभानु तिवारी'' मधुकर ''
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