पुरुषोत्तम माह माहात्म्य
(दोहा)
तैंतिस माहों के बचे , तिथियों के अवशेष /
वर्ष तीसरे में जुड़ें , बनता माह विशेष //
उस तेरहवें माह का , नाम पड़ा मलमास /
जिसमें करते हैं सदा , हरि पुरुषोत्तम वास //
यज्ञ आदि शुभ कर्म का , इसमें बड़ा महत्व /
यह श्रीहरि का माह है , देता फल अमरत्व //
इस पुरुषोत्तम माह में , जो करते सत्कर्म /
पूर्ण करें संकल्प प्रभु , कोई जाने मर्म //
भक्ति ह्रदय विचरण करे , जहँ तहँ गूँजें राग /
पूर्ण माह तक जागते , रहते ज्ञान , विराग //
भक्तिभाव मंदाकिनी , लेती ह्रदय हिलोर /
चहुँ दिशि गूँजें रागिनी , खींचें मन की डोर //
श्रवण पड़ें इस माह में , हरि चरित्र गुणगान /
भजन यज्ञ कर भक्त गण , करें पुण्य अरु दान //
शुक्लपक्ष में रामजी , पुरुषोत्तम का वास /
कृष्णपक्ष में कृष्णजी , करते नित्य उजास //
पुरुषोत्तम के माह में , सूरजवंशी राम /
शुक्लपक्ष भर भक्ति के , संग करें विश्राम //
चन्द्रवंश अवतंश हैं , नील जलज घनश्याम /
कृष्णपक्ष में वे बसें , निज भक्तों के धाम //
इक दूजे के इष्ट हैं , शिव , हरि कृपानिधान /
निगुण ब्रह्म ओंकार के , ये दो रूप प्रधान //
बारह माहों से अलग , हरि ने किया विकास /
हिरण्यकश्यप मारने , बना लिया मलमास //
''मधुकर'' है मलमास यह,सबसे अधिक महान /
शिवजी अनुकम्पा करें , जो करते हरि ध्यान //
हिरण्य कश्यप वध
दोहा
ब्रह्मा रचना से अलग ,हरि ने किया विकास /
हिरण्य कश्यप मारने, बना लिया मलमास //
नहीं दिवस रजनी नहीं , संध्याकाळ उजास /
नृसिंहरूप धर खम्भ से , प्रगटे हुआ प्रकाश //
धाय पकड़ रिपु को लिया,ज्यों सिंह करे शिकार /
भीतर बाहर भी नहीं , बैठे देहरी द्वार //
अधर लिटाया गोद में , नहीं धरा आकाश /
अस्त्र शस्त्र भी हैं नहीं , है पुरुषोत्तम मास //
नहीं मनुज पशु भी नहीं , नहीं देव का रूप /
ब्रह्मा रचना में नहीं , यह नरसिंह स्वरुप //
वर मागा वह है नहीं , बचने का आधार /
रिपु को सभी गिनाय के , बोले वचन उचार //
रे खल रक्षक हो अगर , तो ले उसे पुकार /
काल सामने आ गया , करने को संहार //
हिरण्य कश्यप पर किया, यह कह नख से वार /
सिंहनाद करके दिया , खल का उदर विदार //
जब हरि ने गर्जन किया, काँपे तीनों लोक /
अभय किया प्रह्लाद को , करके उसे अशोक //
नृसिंह रूप को देख कर , देव सभी भय खायँ /
हाथ जोड़ विनती करें, नहीं सामने जायँ //
क्रोध शान्त करने चलीं, लक्ष्मी हरि के पास /
नृसिंह रूप को देख कर ,वे नहिं गईं सकाश //
गये निकट प्रहलाद तब , हरि ने सूँघा शीश /
उसे अंक बैठाय निज , दिया श्रेष्ठ अशीष //
ज्यों शावक को सिंहनी , चाटे करे दुलार /
वैसे नरसिंह रूप में , किया भक्त से प्यार //
तिलक किया प्रह्लाद का , करके रहित विकार /
देव पुष्प वर्षा करें , ''मधुकर'' मंत्र उचार //
सोरठा
तब से कृपानिधान,''मधुकर'' के पीयूष हरि /
भगतबछल भगवान,हुये ख्यात इस सृष्टि में //
उदय भानु तिवारी ''मधुकर''
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