जब बढ़ी कृष्ण से प्रीत , यह मन सुख माने /
बह चले भावमय गीत , ह्र्दय से अनजाने //
ब्रह्मज्ञान ने किया सबेरा /
मिटा मोह माया का घेरा //
मोहन हो गये मीत , दुनिया क्या जाने /
बह रहे भावमय गीत , ह्र्दय से अनजाने //
बैठ ध्यान में अन्तर झाँका /
खींच रही थी प्रीत पताका //
ले गई मन को जीत , दुनिया क्या जाने /
बह चले भावमय गीत , ह्र्दय से अनजाने //
बाहर का जग उसकी माया /
अन्दर तो है वही समाया //
मन को हुआ प्रतीत , दुनिया क्या जाने /
बह चले भावमय गीत, ह्र्दय से अनजाने //
आनँद के घन घिर घिर आयें /
झूमें मन दृग जल बरसायें //
ओंकार के गीत , दुनिया क्या जाने /
बह चले भावमय गीत, ह्र्दय से अनजाने //
मधुकर, धारा बही भजन की /
सुध बुध भूल गई तन मन की //
आत्मतत्व संगीत , दुनिया क्या जाने /
बह चले भावमय गीत, ह्र्दय से अनजाने //
उदयभानु तिवारी ''मधुकर''
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