Monday, 29 August 2016

        


        महारानी दुर्गावती

सुनो सुनो  यह कथा  सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी ,की //

देवीदुर्गाअष्टमी    को   रण   रागिनि    जग   में  आई
निकट महोबा राठ गाँव  में, प्रथम झलक दी दिखलाई
पन्द्रह   सौ   चौबीस , पाँच   अक्टूवर   शुभ   बेला   पाई
चंदेलों  में कीरतसिंह  गृह , कन्या  हर्ष   लहर  लाई
नवदुर्गा  में  जन्मी   गाथाहै  उस  रण दीवानी की
सुनो सुनो  यह कथा  सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी ,की //१//

दुर्गावती  नाम रख   विधिवत , कर स्वागत  उपहारों  से
पिता ने पाला,बचपन से थी,लगन विविध हथियारों से
रण में  था  अनुराग  वे  खेला , करतीं   थीं   तलवारों   से
प्रतिद्वन्द्वी घायल  हो जाते , उनके  तीव्र   प्रहारों   से
शस्त्र  कवच आभूषित उनकी  छवि दिखती मर्दानी की   
सुनो सुनो  यह कथा  सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी ,की //२//
दुर्गा  जैसा  शौर्य , बुद्धि बल , था  सौन्दर्य  खजाने  में
गईं  शिकार  खेलने ,  मनियागढ़  के  वन  वीराने   में
दलपतशाह    रहे  कुलदीपक   गौंडी     राजघराने   में
दोनों   थे   हमउम्र , शिकारी    मन  रीझा  अनजाने  में
मन ही मन कर लिया वरण,ढल गई उमर  नादानी की
सुनो सुनो  यह कथा  सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी ,की //३//

पिता को  था स्वीकार  नहीं संबंध  गौंड  परिवारों में
अस्वीकार कर  दिया उलझ गईं दुर्गा गहन विचारों में
घोषित  हुआ स्वयंवर  भेजे   पत्र  राज दरबारों  में
शीघ्र   करें   अपहरण , प्रार्थना  की  तब  पत्राचारों   में
पुनरावृत्ति   हुई  संयोगिता  पृथ्वीराज   कहानी की
सुनो सुनो  यह कथा  सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी ,की //४//

सँग में लाये व्याह रचाया , फिर अपनी   रजधानी  में
संग्रामशाह  ने  लुटवाईं , मुहरें  वधु  की  अगवानी में
कुशल शासिका, श्रेष्ठ नारियों  के गुण थे कल्याणी  में
दलपतशाह की  रानी बनकर बसीं प्रजा की  वाणी  में
आठ   वर्ष   ही  बीते  रेखा ,  बदल  गईं  पेशानी  की
सुनो सुनो  यह कथा  सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
सुनो सुनो  यह कथा  सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी ,की //५//

राजा  दलपतशाहि   से  बिछुड़ीं ,  रानी   भरी  जवानी  में
कन्धों पर था भार प्रजा का ,मन सुत की निगरानी में
जलसाधन  बढ़वाये  उगले  धरा स्वर्ण , मिल  पानी  में
ईश्वर   में  थी   निष्ठा   रहतीं , संतों   की  यजमानी  में
शिष्या थीं वे स्वामी नरहरि दास,  महा गुरु ज्ञानी  की
सुनो सुनो  यह कथा  सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी ,की //६//
जब   संकट   आता   गुरु   आज्ञा   थी  वे   गुप्तेश्वर  जातीं
ध्यान   लगा   दूरस्थ   गुरू  को,  सन्देशा   वे   भिजवातीं
माला  देवी   और  शारदा  माँ    के   दर्शन   को  आतीं
कथा  भागवत  सुनतीं  रानी,  जनता के  मन को भातीं
सारी   प्रजा   प्रसंशा   करती , नारी   निरअभिमानी  की
सुनो सुनो  यह कथा  सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी ,की //७//

श्री महेश  ठाकुर , रघुनन्दन राय,  पुरोहित  ज्ञानी  थे
स्वामी विट्ठलनाथ संत में  श्रेष्ठब्रह्म  के  ध्यानी  थे
भोजसिंह  कायस्थ  कोष  के   रक्षक    सेनानी  थे
मान विप्र   व  मियाँबुखारी  ,  राजनीति  संज्ञानी  थे
हुई शासिका और     कोईदुर्गावती   की  सानी  की
सुनो सुनो यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो,वो थीं अंश,भवानी ,की //८//

मुद्राओं में  स्वर्ण और चाँदी के   सिक्के  चलते थे
स्वागत में रानी को  हाथी  भेंट रूप में  मिलते थे
सब धर्मों के अनुयायी सदभाव  प्रेम  में   पलते  थे
देख  देख रानी  का  वैभव, दुश्मन राजे जलते  थे
रौद्र रूप  में दिखती  थी  रण में सेना  रुद्राणी की
सुनो सुनो यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो,वो थीं अंश ,भवानी,की //९//

सिंगौर, मंडला,गढ़ा, महोबा,छत्तिसगढ़ औ सिलवानी
बावन गढ़  थे गौंड राज्य के, जहाँ थे  उनके  सेनानी
रानी रहीं  उदार ,न्याय प्रिय, भावुक  और  महादानी
प्रजा  सुखी सम्पन्न    तत्पर  रहती  देने  कुर्वानी
दिल्ली पहुँची ख्याति साहसी गौंड वंश क्षत्राणी की
सुनो सुनो यह कथा सिंहनी,दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश,भवानी,की //१०//

बाज़बहादुर  लड़ने  आयारण   की  बड़ी  तयारी  थी
किये  अनेक  युद्ध   सब  हारे , वह  देवी  अवतारी थी
शरमन  नाम  श्वेत हाथी, रानी  की  श्रेष्ठ  सवारी थी
रणमंत्री  आधारसिंह  की, उनमें  निष्ठा   भारी  थी
रणरंगी  अनुरागी   सैनिक थे  सेना  में रानी की
सुनो सुनो यह कथा सिंहनी,दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि,के लिये लड़ीं जो,वो थीं अंश,भवानी ,की //११//

बाज़बहादुर बादशाह  की   शरण गया  जब रण हारा
उसके चाचा  को  रानी   ने  घेर  लिया  रण  में  मारा
अकबर ने  भेजी निज  सेना गज,घोड़े,दल बल सारा
शरमन  गज,  आधारसिंह को  मागा  भेजा हरकारा
ठुकरादीं   रानी  ने  अकबर  की  मागें  शैतानी   की
सुनो सुनो  यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी ,की //१२//

सिंगौर क़िले में अकबर  की  बारह सहस्त्र  सेना आई
किले के मुख्य द्वार  को  तोपों से कर दिया  धरासाई
गुप्त   द्वार  से   रानी  निकली   मुगलों के  पीछे   धाई
हुआ   भयंकर  युद्ध,   देख  आसफ़   की   सेना  थर्राई
तोप से बचतीं धावा करतीं वन  की  ओर  रवानी की  
सुनो सुनो  यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश,भवानी ,की ////१३//

चांडालभाटा  में  छेड़ा  युद्ध  पलट  कर   फिर  धाई
दूर खदेड़ दिया मुगलों को  तोप  नहीं  तब तक आई
बढी  सैन्य की शक्ति गढ़ा  की  सेना  ने  की  भरपाई
तोप   के  कारण  रानी  को   मैदानी   जंग   नहीं   भाई
छापामारी  युद्ध   नीति   ही   लगती  थी  आसानी   की
सुनो सुनो यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो,वो थीं अंश ,भवानी,की ////१४//

                               आहत   असफ़ख़ाँ    फिर   आया   करके   पूरी   तैयारी
तोप   और   बारूद  बिना  थी   रानी   की  सेना  सारी
उतरे  योद्धा   समर   भूमि   में  भरी  युद्ध  की  हुंकारी
वीरनारायण  रानी  के   थे  पुत्र   पराक्रम   था  भारी
गज पर बैठ सिंहनी  रानी  ने रण  की  अगवानी की
सुनो सुनो  यह कथा सिंहनी,दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश,भवानी ,की ////१५//

बग्घराज औ  बच्छराज  सेना नायक  भुजबल  धारी
दुल्हासिंह   थे    बाहुबली   रणरंगी   सेना  अधिकारी
छिड़ा  युद्ध चमकीं तलवारें  चलीं रक्त  की  पिचकारी
कट कट गिरने लगे मुण्ड थीं रानी मुगलों पर भारी
प्रकट हुई मानो रणचण्डी थी वह शक्ति शिवानी की
सुनो सुनो  यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी,की //१६//

आसफ़ख़ाँ    के   छक्के   छूटे   तारे   दिखें   उजाले   में
छोड़  भगे  मैदान  जीत   थी  अब   रानी  के  पाले  में
विजयसमझ सेनाउल्लासित मुग़लछिपे अँधियाले में
तब  तक  आई  बाढ़   घिरीं  महारानी  नर्रई  नाले  में
घोर रात्रि  में घेरो   दुश्मन   मन्शा  थी   ये  रानी  की
सुनो सुनो यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी,की ////१७//

पानी    था   नाले   में   गहरा   सेना   नहीं   उतर  पाई
भोर  हुआ  मुग़लों  की   सेना  तोपें  लेकर  चढ़  आई
आखिर वही हुआ जिसकी चिंता रानी के मन छाई
वीरनारायण    सेनानी  ने  की   सेना   की  अगवाई
औचक  चढ़ आया दुश्मन  थी बात बड़ी हैरानी  की
सुनो सुनो यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी,की //१८//

बारह  सहस शत्रु  की सेना रानी  की थी  पाँचहज़ार
एक वीर योद्धा रानी का दस दुश्मन पर करे  प्रहार
जैसे  बाज़ झपट्टा  मारे करने   लगे   वार   पर   वार
सेनापतिझपटे  दुश्मनपर  मचगई दल में  हाहाकार
झपटीसिंहनी  आसफ़ख़ाँ  पर तबसमझा  नादानीकी
सुनो सुनो यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी,की //१९//

हाथी  घोड़े   पैदल   जूझे , जूझे   मुग़लों  के   सरदार
शरमन हाथी जब चिंघाड़े दुश्मन छोड़ भगें हथियार
भगदड़ मची मुग़ल सेना में, आया तोपों का भण्डार
चलीं तोप बिदके  हाथी रानी के कुचल गये  असवार
जीत हार  में बदल  गई  अब , गौंड   राजपूतानी  की
सुनो सुनो यह कथा सिंहनी , दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी,की //२०//

बढ़ने  दिया      नाले   ने , आये  मुग़लों   सेनानी
एक तीर धँस गया कान के पास हुईं घायल  रानी
लगा दूसरा तीर गले निज सैनिक ने की बेईमानी
होने लगीं   अचेत,  कटारी   मार स्वयं   दी   कुर्वानी
चौबीसजून पन्द्रहसौचौंसठ अन्तिमतिथि बलिदानीकी
सुनो सुनो यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश,भवानी,की //२१//

हाथी ने रानी वियोग में अन्न और  जल  छोड़  दिया
स्वामिभक्त था उसने नश्वर तन से नाता  तोड़  लिया
स्वर्गारोहण  में  रानी  के  संग  स्वयं  को  जोड़   लिया
रानी के जाते ही   वैभव  ने  अपना   मुख  मोड़  लिया
गौंड राज्य का हुआ   पराभव यादें  रह  गईं  रानी की
सुनो सुनो यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि,के लिये लड़ीं जो,वो थीं अंश ,भवानी ,की //२२//

मिलीज्योति से ज्योति,ज्योतिवह माँदुर्गासे आई थी
श्रेष्ठ  राज्य स्थापित करके  जन मानस में छाई थी
अपने बावन गढ़ तक उसने धर्म  ध्वजा  फहराई  थी
मान  प्रतिष्ठा  की रक्षा  में  अपनी जान गवाँई थी
जनमानस में बसी रहेगी , स्मृति  शौर्य   कहानी  की
सुनो सुनो  यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि ,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी,की //२३//

जब तक है  धरती ''मधुकर'' यशगान तुम्हारा गायेंगे
चौबीस जून को नित्य तुम्हारा स्मृति दिवस मनायेंगे
श्रद्धा सुमन समर्पित कर सब तुमको  शीश  झुकायेंगे
तेरे   आदर्शों  की   जग  में   कीर्ति  ध्वजा लहरायेंगे
संस्कारधानी   करती  है  रक्षा अमर निशानी  की
सुनो सुनो  यह कथा सिंहनी, दुर्गावती महारानी की /
मात्रभूमि,के लिये लड़ीं जो, वो थीं अंश ,भवानी ,की //2//


                                  उदयभानु तिवारी ''मधुकर'' 




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