गोपियों को सांत्वना
रोतीं गातीं गीत सब , सखियाँ हुईं अधीर /
ले ले नाम पुकारतीं , बहे नैन से नीर // १ //
श्रीकृष्ण गोविन्द हे , नीलजलज घनश्याम /
नटवर नागर साँवरे , गिरधर मन अभिराम // २ //
बिलख बिलख रोने लगीं , बढ़ा हृदय संताप /
प्रकट हुये यदुवंशमणि , मिटा विरह का ताप //३//
मन्द मन्द मुस्कान से,विकसित मुख जलजात /
गले बीच वनमाल औ , पीताम्बर लहरात //४//
वह सुन्दर छवि देख कर ,लज्जित हुआ मनोज /
मन मोहक द्युति साँवरी , छलक रहा था ओज //५//
कोटिक कामद वारते ,जिस पर,वह छवि देख /
आनन्दित सखियाँ हुईं , खिलीं अधर की रेख //६//
खड़ी हुईं सहसा सभी , सखियाँ कृष्ण निहार /
प्राणहीन तन में हुआ , दिव्य प्राण संचार //७//
मन स्फूर्ति जाग्रित हुई , हुईं पुनः चैतन्य /
निरख मनोहर श्याम छवि,सखियाँ होगईं धन्य //८//
करसरसिज को कृष्ण के, गहा एक ने जाय /
दूसरी ने दौड़ कर , गही बाँह मुस्काय //९//
तीसरी ने ले लिया, हरि के मुख का पान /
चौथी ने गह कर चरण , धरा ह्रदय स्थान //१०//
प्रणय कोप से विह्वल सखि,होंठ दाब निज दाँत /
भौंह चढ़ाये एकटक , देखे नहीं आघात //११//
छठी सखी अपलक लखे,रहा न तन का भान /
मुखसरसिज मकरन्द रस,करे नयन से पान //१२//
विष्णु चरण लख सन्त ज्यों,रहते सदा अतृप्त /
वैसे ही सखियाँ हुईं , नैन न होते तृप्त //१३//
सातवीं ने नैन के , पंथ कृष्ण को लाय /
ह्रदय बिठाया , नैन की , पलकें लईं गिराय //१४//
मन आलिंगन में लगा ,मिटी ह्रदय की पीर /
रोम रोम पुलकित हुआ , हर्षित हुआ शरीर //१५//
सिद्ध,योगियों सा मिला , मन को परमानन्द /
मधुकर जिसको पान क्रर, झरते रहते छन्द //१६//
बोले श्री शुकदेव जी , सुनो परीक्षित राज /
ज्यों मुमुक्षु का संत की , प्राप्ति सँवारे काज //१७//
वैसे ही सब गोपियाँ, दरश कृष्ण का पाय /
हुईं परम आनन्दमय, हर्ष न ह्रदय समाय //१८//
व्यथा विरह की जो रही ,वह सब गई नशाय /
शान्तिसिंधु में गोपियाँ , गोते रहीं लगाय //१९//
यों तो हरि हैं एकरस,अच्युत और अनन्त /
अतिसुन्दर सौन्दर्य में ,जाने योगी , सन्त //२०//
फिर भी विरहा दुःख से ,मुक्त गोपियों बीच /
उनकी शोभा बढ़ गई,सखि सुख रहीं उलीच //२१//
ज्यों निज बल औ शक्तियों ,से सेवित सुरईश /
शोभित दिखते,कृष्ण की छवि थी वही महीश //२२//
फिर सखियाँ ले संग में ,श्री कृष्ण भगवान /
आये यमुना पुलिन पर ,सुन्दर स्थल जान //२३//
पुष्प कुन्द, मन्दार के,खिले सरित के तीर /
सुमन सुहानी गंध ले, बहती मन्द समीर //२४//
मतवाले हो गंध से , भँवर करें गुंजार /
कल कल ध्वनि यमुना करे,मन सुख लहे अपार //२५//
शरदपूर्णिमा चाँदनी , फैली किरण पसार /
कहीं दूर तक था नहीं ,रजनी का अँधियार //२६//
शुभानन्द साम्राज्य था ,मधुवन में सर्वत्र /
हरि लीला के हेतु ही ,यमुना जी ने तत्र //२७//
निज लहरों से रच रखा ,शुभ्र पुलिन का मंच /
सुनो परीक्षित कृष्ण की,यह महिमा अति रंच //२८//
कृष्ण दरश से गोपियों , में उमगा आनंद /
ह्रदय व्याधि सब मिट गई ,मिला परम आनंद //२९//
कर्मकाण्ड श्रुति व्याख्या,कर फिर उपजे ज्ञान /
वैसे ही सखियाँ हुईं , पूर्णकाम , सज्ञान //३०//
निज वक्षस्थल से लगी , रोली ,केशरयुक्त /
अपनी अपनी ओढ़नी , सखियों ने संयुक्त //३१//
सखा कृष्ण के बैठने , दिया पुलिन पर डार /
बैठ गये गोविन्द जी, उन पर आसनमार //३२//
बड़े बड़े योगी जिन्हें ,ह्रदय न सके बिठार /
सर्व शक्ति से युक्त हरि ,बँधे भक्ति के प्यार //३३//
वहाँ हजारों गोपियों, से पूजित भगवान /
सुनो परीक्षत !होगये, अद्भुत शोभावान //३४//
तिलोक ओर तिरकाल मे,जो सौंदर्य उजास /
हरि के दिव्य प्रकाश का , रंच मात्र आभास //३५//
वे ही हैं त्रैलोक के , आश्रय और निधान /
किन्तु भक्ति में भक्त के, वश रहते भगवान //३६//
लोक परे सौंदर्य से , निज के शोभाधाम /
गोपियों में जगा रहे , प्रेमाकांक्षा श्याम //३७//
प्रेममयी चितवन मधुर,अधर मन्द मुस्कान /
भौहें तिरछी कर किया , सखियों ने सम्मान //३८//
चरणकमल को रख लिया,एक ने गोद उठाय /
करसरोज को दूसरी , सखी ने थामा धाय //३९//
निज हाथों श्रीकृष्ण का ,कर सब सखि संस्पर्श /
कितना मृदु ,सुकुमार है , कह हिय प्रगटा हर्ष //४०//
फिर छिपने पर रूठने , का दिखलाकर भाव /
स्वीकारें हरि दोष निज , उनसे लिया सुझाव //४१//
हे नटनागर मनुज में , कुछ के ऐसे नेम /
प्रेम करता प्रेमियों , से ही करते प्रेम //४२//
और अन्य जन हैं जिन्हें ,नहीं किसी से प्रेम /
उनसे भी वे जन सदा , रखें आत्मिक प्रेम //४३//
और अन्य कुछ लोग हैं ,दोनों के प्रति मौन /
इन तीनों में हे सखा , तुमको प्यारा कौन //४४//
सुन बोले श्रीकृष्णजी, सखी सुनें धर ध्यान /
प्रेम के बदले के प्रेम तो , है आदान प्रदान //४५//
ना तो वह सौहार्द है, और नहीं वह धर्म /
मतलब उसका कुछ नहीं,कहूँ प्रेम का मर्म //४६//
सखियो जो हैं दूसरे , नहीं करें जो प्यार /
उनके प्रति भी आत्मा ,से जो करें दुलार //४७//
मात,पिता,सज्जन सुह्रद,करुणाशील स्वभाव /
जिनमें सच्चा प्रेम है , कभी न रखें दुराव //४८//
रखें हितेषी भावना, उसी को समझें धर्म /
प्रेम श्रेष्ठ निःस्वार्थ जो , करते हैं सत्कर्म //४९//
प्रेमी से कुछ लोग हैं , करें नहीं जो प्रेम /
ऐसे चार प्रकार के , जिनसे मिले न प्रेम //५०//
पहले वे जन जो रहें, निज स्वरूप में लीन /
द्वैत कभी भाषे नहीं , ईश्वर में लवलीन //५१//
दुसरे वे हैं जिन्हें , द्वैत का रहता भान /
किन्तु स्वार्थ नाता नहीं,कर्म न बचा प्रधान //५२//
तीसरे जिनको नहीं ,निज प्रेमी का ज्ञान /
चौथे वे जो जान कर ,बनजाते अनजान //५३//
निज स्वारथ के हेतु वे,उपकारी से द्रोह /
और गुरुवर आदि से ,भी करते विद्रोह //५४//
हे सखियो मैं प्रेमियों , से वैसा व्योहार /
कभी प्रकट करता नहीं,जैसा पाता प्यार //५५//
ऐसा इसकारण करूँ ,जिससे उनका चित्त /
भक्तिभाव रस लीन हो, मुझमें रहे प्रवृत्त //५६//
जैसे निर्धन पुरुष को,धन मिल कर खो जाय /
उसकी चिंता चित्त से , uसके नहीं नशाय //५७//
वैसे ही होकर प्रकट,फिर होता अदृश्य /
कहा तुम्हारे सामने ,अपना गूढ़ रहस्य //५८//
मेरे कारण गोपियो ,तुम सब निःसन्देह /
लोक लाज परिवार औ ,छोड़े अपने गेह //५९//
ऐसे में फिर लौटकर,चित्त न गृह में जाय /
मुझ में ही स्थिर रहे,जग अनुराग नशाय //६०//
इससे सबके सामने , प्रेमराग दरशाय /
छिपा रहा मम प्रेम में,खोट न कहीं दिखाय //६१//
तुम सब मम प्यारी सखी,मैं प्यारा गोपाल /
मम हित तोड़ीं बेड़ियाँ ,गृह का सब जंजाल //६२//
बड़े बड़े योगेन्द्र यति, जिसे सके ना त्याग /
उस बन्धन को तोड़कर ,छोड़ा जग का राग //६३//
तुम सबसे मेरा मिलन ,आत्मा का संयोग /
निर्मल औ निर्दोष है , अदभुत बना सुयोग //६४//
यदि अनन्त क्षण तक करे ,सेवा अमर शरीर /
तब भी उऋण न हो सकूँ , बोले यदुकुल वीर //६५//
कर सकतीं मुझको उऋण,तुम निज सौम्य स्वाभाव /
किन्तु रहूँगा मैं ऋणी , बँधा भक्ति के भाव //६६//
मधुकर सखियों , कृष्ण का ,अदभुत प्रेम प्रसंग /
अन्तर्मन से जो सुने , डूबे हरि रस रंग //६७//
उदयभानु तिवारी मधुकर
दत्त एवेन्यू फ्लैट न० ५०१
नेपियर टाउन जबलपुर
मो० ९४२४३२३२९७
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