Friday, 19 August 2016













गोपियों को सांत्वना

रोतीं   गातीं   गीत   सब ,  सखियाँ    हुईं   अधीर / 
ले    ले   नाम   पुकारतीं  , बहे    नैन     से    नीर // १ //

श्रीकृष्ण   गोविन्द   हे  ,  नीलजलज   घनश्याम /
नटवर   नागर   साँवरे , गिरधर   मन  अभिराम // २ //

बिलख  बिलख   रोने   लगीं , बढ़ा   हृदय  संताप /
प्रकट  हुये  यदुवंशमणि , मिटा  विरह   का  ताप //३//

मन्द मन्द मुस्कान से,विकसित मुख जलजात /
गले    बीच   वनमाल   औ , पीताम्बर   लहरात //४//

वह सुन्दर छवि देख कर ,लज्जित हुआ मनोज /
मन मोहक द्युति साँवरी , छलक  रहा था  ओज //५//

कोटिक  कामद वारते ,जिस पर,वह छवि देख /
आनन्दित सखियाँ  हुईं , खिलीं अधर  की रेख //६//

खड़ी हुईं सहसा सभी , सखियाँ  कृष्ण  निहार /
प्राणहीन  तन  में   हुआ , दिव्य   प्राण  संचार //७//

मन  स्फूर्ति  जाग्रित हुई , हुईं   पुनः  चैतन्य /
निरख मनोहर श्याम छवि,सखियाँ होगईं धन्य //८//

करसरसिज  को  कृष्ण  के, गहा  एक ने जाय /
दूसरी   ने   दौड़   कर ,  गही    बाँह    मुस्काय //९//

तीसरी  ने  ले  लिया, हरि   के  मुख  का  पान /
चौथी  ने  गह  कर  चरण , धरा  ह्रदय  स्थान //१०//

प्रणय कोप से विह्वल सखि,होंठ दाब निज दाँत /
भौंह    चढ़ाये   एकटक ,  देखे    नहीं   आघात //११//

छठी सखी अपलक लखे,रहा न तन का भान /
मुखसरसिज मकरन्द रस,करे नयन से पान //१२//

विष्णु चरण लख सन्त  ज्यों,रहते सदा अतृप्त /
वैसे   ही   सखियाँ    हुईं ,  नैन   न   होते  तृप्त //१३//

सातवीं  ने   नैन   के , पंथ   कृष्ण  को   लाय /
ह्रदय बिठाया , नैन  की , पलकें  लईं  गिराय //१४//

मन आलिंगन में लगा ,मिटी ह्रदय  की  पीर /
रोम रोम पुलकित हुआ , हर्षित  हुआ शरीर //१५//

सिद्ध,योगियों सा मिला , मन  को  परमानन्द /
मधुकर जिसको  पान क्रर, झरते रहते छन्द //१६// 

बोले  श्री  शुकदेव  जी , सुनो  परीक्षित  राज /
ज्यों मुमुक्षु का संत की , प्राप्ति  सँवारे  काज //१७// 

वैसे ही सब गोपियाँ, दरश  कृष्ण  का  पाय /
हुईं  परम  आनन्दमय, हर्ष न ह्रदय समाय //१८//

व्यथा विरह की जो रही ,वह सब गई नशाय /
शान्तिसिंधु  में गोपियाँ , गोते  रहीं  लगाय //१९//

यों तो हरि हैं एकरस,अच्युत और अनन्त /
अतिसुन्दर सौन्दर्य में ,जाने योगी , सन्त //२०// 

फिर भी विरहा दुःख से ,मुक्त गोपियों बीच /
उनकी शोभा बढ़ गई,सखि सुख रहीं उलीच //२१//

ज्यों निज बल औ शक्तियों ,से सेवित सुरईश /
शोभित दिखते,कृष्ण की छवि थी वही महीश //२२//

फिर सखियाँ ले संग में ,श्री कृष्ण भगवान /
आये यमुना पुलिन पर ,सुन्दर स्थल जान //२३//  

पुष्प कुन्द, मन्दार  के,खिले सरित के तीर /
सुमन सुहानी गंध  ले, बहती  मन्द  समीर //२४//

मतवाले    हो    गंध    से ,  भँवर    करें    गुंजार /
कल कल ध्वनि यमुना करे,मन सुख लहे अपार //२५//

शरदपूर्णिमा चाँदनी , फैली  किरण  पसार /
कहीं दूर तक था नहीं ,रजनी का अँधियार //२६//

शुभानन्द साम्राज्य था ,मधुवन में सर्वत्र /
हरि लीला के हेतु ही ,यमुना  जी  ने  तत्र //२७//

निज लहरों  से  रच  रखा ,शुभ्र पुलिन का मंच /
सुनो परीक्षित कृष्ण की,यह महिमा अति रंच //२८//

कृष्ण  दरश  से  गोपियों ,  में   उमगा   आनंद /
ह्रदय व्याधि सब मिट गई ,मिला परम आनंद //२९//

कर्मकाण्ड श्रुति व्याख्या,कर फिर उपजे ज्ञान /
वैसे   ही   सखियाँ   हुईं ,  पूर्णकाम  ,  सज्ञान //३०//

निज  वक्षस्थल  से  लगी , रोली  ,केशरयुक्त /
अपनी  अपनी  ओढ़नी ,  सखियों  ने  संयुक्त //३१//

सखा  कृष्ण के बैठने , दिया पुलिन पर डार /
बैठ  गये  गोविन्द जी, उन  पर  आसनमार //३२//

बड़े बड़े योगी जिन्हें ,ह्रदय न सके बिठार /
सर्व शक्ति से युक्त हरि ,बँधे भक्ति के प्यार //३३//

वहाँ हजारों गोपियों, से  पूजित  भगवान /
सुनो  परीक्षत !होगये, अद्भुत  शोभावान //३४//

तिलोक ओर तिरकाल मे,जो सौंदर्य उजास /
हरि के दिव्य प्रकाश का , रंच मात्र आभास //३५//

वे  ही  हैं  त्रैलोक  के , आश्रय  और  निधान /
किन्तु भक्ति में भक्त के, वश रहते भगवान //३६//

लोक  परे  सौंदर्य  से , निज  के शोभाधाम /
गोपियों  में  जगा  रहे ,  प्रेमाकांक्षा  श्याम //३७//

प्रेममयी चितवन मधुर,अधर मन्द मुस्कान /
भौहें तिरछी कर किया , सखियों ने सम्मान //३८//

चरणकमल को रख लिया,एक ने गोद  उठाय /
करसरोज   को  दूसरी , सखी  ने  थामा  धाय //३९//

निज हाथों श्रीकृष्ण का ,कर सब सखि संस्पर्श /
कितना मृदु ,सुकुमार है , कह  हिय  प्रगटा हर्ष //४०//

फिर  छिपने  पर  रूठने , का दिखलाकर भाव /
स्वीकारें हरि  दोष  निज , उनसे लिया सुझाव //४१//

हे   नटनागर  मनुज  में , कुछ  के  ऐसे  नेम /
प्रेम    करता   प्रेमियों  ,  से   ही  करते   प्रेम //४२//

और अन्य जन हैं जिन्हें ,नहीं किसी से प्रेम /
उनसे भी वे  जन  सदा , रखें  आत्मिक प्रेम //४३// 
                 
और अन्य कुछ लोग हैं ,दोनों के प्रति मौन /
इन तीनों  में हे  सखा , तुमको प्यारा  कौन //४४//

सुन बोले श्रीकृष्णजी, सखी सुनें धर ध्यान /
प्रेम के बदले के  प्रेम तो  , है आदान प्रदान //४५//

ना  तो  वह  सौहार्द  है, और नहीं  वह  धर्म /
मतलब उसका कुछ नहीं,कहूँ प्रेम का मर्म //४६//  

सखियो जो हैं दूसरे , नहीं  करें जो  प्यार /
उनके प्रति भी आत्मा ,से  जो करें दुलार //४७//

मात,पिता,सज्जन सुह्रद,करुणाशील स्वभाव /
जिनमें  सच्चा  प्रेम  है , कभी  न  रखें   दुराव //४८//

रखें  हितेषी  भावना, उसी  को  समझें  धर्म /
प्रेम  श्रेष्ठ  निःस्वार्थ  जो , करते  हैं  सत्कर्म //४९//  

प्रेमी  से  कुछ  लोग हैं , करें  नहीं  जो  प्रेम /
ऐसे चार प्रकार के , जिनसे   मिले  न  प्रेम //५०//

पहले  वे जन जो रहें, निज  स्वरूप में लीन /
द्वैत  कभी  भाषे  नहीं ,  ईश्वर  में  लवलीन //५१//

दुसरे  वे  हैं  जिन्हें ,  द्वैत   का   रहता  भान /
किन्तु स्वार्थ नाता नहीं,कर्म न बचा प्रधान //५२//

तीसरे जिनको नहीं ,निज प्रेमी का ज्ञान /
चौथे वे जो जान कर ,बनजाते अनजान //५३//

निज स्वारथ  के हेतु वे,उपकारी से द्रोह /
और गुरुवर आदि से ,भी  करते  विद्रोह //५४//

हे  सखियो मैं  प्रेमियों , से वैसा  व्योहार /
कभी प्रकट करता नहीं,जैसा पाता प्यार //५५//

ऐसा इसकारण करूँ ,जिससे उनका चित्त /
भक्तिभाव रस लीन  हो, मुझमें  रहे प्रवृत्त //५६//

जैसे निर्धन पुरुष को,धन मिल कर खो जाय /
उसकी चिंता चित्त से , uसके  नहीं  नशाय //५७//

वैसे ही होकर  प्रकट,फिर होता अदृश्य /
कहा तुम्हारे सामने ,अपना गूढ़ रहस्य //५८//

मेरे कारण गोपियो ,तुम सब निःसन्देह /
लोक लाज परिवार औ ,छोड़े अपने गेह //५९//

ऐसे  में फिर लौटकर,चित्त न गृह में जाय /
मुझ में ही स्थिर रहे,जग अनुराग नशाय //६०//

इससे   सबके   सामने ,  प्रेमराग   दरशाय /
छिपा रहा मम प्रेम में,खोट न कहीं दिखाय //६१//

तुम सब मम प्यारी सखी,मैं प्यारा  गोपाल /
मम हित तोड़ीं बेड़ियाँ ,गृह का सब जंजाल //६२//

बड़े बड़े योगेन्द्र यति, जिसे  सके ना त्याग /
उस बन्धन को तोड़कर ,छोड़ा जग का राग //६३//

तुम सबसे मेरा मिलन ,आत्मा का संयोग /
निर्मल औ निर्दोष है , अदभुत बना सुयोग //६४//

यदि अनन्त क्षण तक करे ,सेवा अमर शरीर / 
तब भी उऋण न हो सकूँ , बोले  यदुकुल  वीर //६५//

कर सकतीं मुझको उऋण,तुम निज सौम्य स्वाभाव /
किन्तु  रहूँगा   मैं    ऋणी ,  बँधा   भक्ति    के    भाव //६६//

मधुकर  सखियों , कृष्ण का ,अदभुत प्रेम प्रसंग /
अन्तर्मन   से   जो   सुने ,  डूबे    हरि   रस   रंग //६७//


                                            उदयभानु तिवारी मधुकर 
                                           दत्त एवेन्यू फ्लैट न० ५०१ 
                                           नेपियर टाउन जबलपुर 
                                           मो० ९४२४३२३२९७     

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