करले मन सत्संग लगन ये टूटे ना /
तू पतंग हरि डोर संग ये छूटे ना //
पग पग पर माया के घेरे /
लोभ दिखाकर मन को फेरे //
अपने रस का रंग चढा के लूटे ना /
करले मन सत्संग लगन ये टूटे ना //
आत्मा में निज वास बना ले /
अपना अन्तःकरण जगा ले //
होय मोह जब भंग , रंग फिर छूटे ना /
करले मन सत्संग लगन ये टूटे ना //
तू है कौन कहाँ से आया /
जाना कहाँ पन्थ भटकाया //
मधुकर सदगुरु संग बिना जग छूटे ना /
करले मन सत्संग लगन ये टूटे ना //
उदयभानु तिवारी ''मधुकर''
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