मत्स्य अवतार
ज्ञानीजन आगे सुने , कथा सहित विस्तार /
धारण किस कारण किया , हरि ने मत्स्यावतार //१//
हुआ ब्राह्मनामक प्रलय , डूब गये भूर्लोक /
ब्रह्माजी थे नींद में , विलय हुये सबलोक //२//
वेद निकल मुख से गये , विधि को हुआ न भान /
वहीं निकट हयग्रीव था , दैत्य महाबलवान //३//
वेद चुराये योगबल , का करके सन्धान /
उसके इस दुष्कृत्य को , जान गये भगवान //४//
इसीलिये सर्वेश्वेर , जग के पालनहार /
जगतव्याप्त श्रीविष्णु ने , लिया मत्स्य अवतार //५//
उसी समय नृप सत्यव्रत , ऋषि थे परम उदार /
रहते तप में लीन वे , करते जल आहार //६//
महाकल्प में सत्यव्रत , सूर्य पुत्र निष्णात /
श्राद्धदेव के नाम से , हुये विश्व विख्यात //७//
उन्हे मत्स्य अवतार में , कर उपदेश महान /
बना दिया वैवस्वत , मनु हरि ने दे ज्ञान //८//
एक दिवस राजर्षि जी , कृतमाला सरि तीर /
गये अंजली में भरा , जब तर्पण को नीर //९//
उसी समय ऋषि अंजली , जल में आई मीन /
छोड़ उसे जल राशि में , दूजा जल जब लीन //१०//
बोली मछली दीन हो , राजन दीन दयाल /
छोड़ रहे हैं क्यों मुझे , जल में जन्तु विशाल //११//
खातीं छोटी मीन को , मीने हैं विकराल /
व्याकुल हूँ यह सोच कर , लीजै मुझे निकल //१२//
यह सुन कर आई दया , मीन सहित जल लीन्ह /
भरा कमण्डल में चले , हरि को सके न चीन्ह //१३//
उसकी रक्षा का लिया , निज मन में संकल्प /
हरि आये करने कृपा , बीत रहा था कल्प //१४//
आश्रम में बीते अभी , कुछ ही घंटे मात्र /
एक रात्रि में भर गया , मछली से वह पात्र //१५//
कहा मीन ने हो गया , कठिन हिलाना गात्र /
राजन दूजा दीजिये , अब पानी का पात्र //१६//
सुनकर राजा ने दिया , बड़े घड़े में डाल /
तीन हाथ दो ही घड़ी , में वह हुई विशाल //१७//
फिर नृप ने लघु ताल में , उसे दिया छुड़वाय /
महामत्स्य वह हो गई , रही न ताल समाय //१८
जहाँ जहाँ नृप छोड़ते , लेती रूप बढ़ाय /
महासिन्धु में अन्त में , छोड़ा नृप ने जाय //१९//
बोली राजन क्यों मुझे , यहाँ दिया पहुँचाय /
बड़े मगर हैं सिन्धु में , मुझ को लेंगे खाय //२०//
मत्स्य की यह वाणी सुनी , नृप ने तोडा मौन /
सतयोजन सागर घिरा , तुम हो आखिर कौन //२१//
देखी सुनी न आज तक , इतनी मीन विशाल /
कहीं आप हरि तो नहीं , हे प्रभु दीन दयाल //२२//
करने जीवों पर कृपा , धरा मत्स्य का रूप /
नमस्कार है आपको , हे त्रिभुवन सुरभूप //२३//
प्रभु शरणगत भक्त के , आत्मा आश्रय आप /
सृष्टा , पालक सृष्टि के , संहारक भी आप //२४//
यदपि विश्व कल्याण हित , लिये बहुत अवतार /
जानन चाहूँ किसलिये , लिया मत्स्य अवतार //२५//
सुने सत्यव्रत मृदुवचन , मत्स्यरूप भगवन्त /
बोले अब इस कल्प का, हो जायेगा अन्त //२६//
ठीक सातवें दिन प्रलय , लेगा सब कुछ छीन /
घोर वृष्टि से सृष्टि सब , होगी अम्बु विलीन //२७//
ब्रह्माजी को छोड़ कर , उनके सारे लोक /
होंगे जल में लीन सब , भूर्लोक , सुरलोक //२८//
अब ब्रह्माजी रात में , सोयेंगे स्वछन्द /
उनके निद्राकाल तक , रचना होगी बन्द //२९//
जब सब लय हो जाएगा , छूटेगी सब आश /
मम अनुकम्पा नाव बन , आ जायेगी पास //३०//
सूक्ष्म बीज सब जीव के , धान्य सहित ऋषि सात /
चढ़ जाना उस नाव में , जब तक विधि की रात //३१//
लहरायेंगी सिन्धु की , लहरें चारों ओर /
होगा नहीं प्रकाश तब , अन्धकार घनघोर //३२//
ऋषिगण दिव्य प्रकाश में , कर मन को भयहीन /
विचरण करना सिन्धु मेँ , जब तक जगत विलीन //३३//
जब प्रचण्ड तूफान में , डोलेगी तव नाव /
आऊँगा इस रूप में , बन अनुकम्पा छाँव //३४//
तब तुम वासुकिनाग से , राजन अपनी नाव /
कसदेना मम सींग से , स्थिर कर मन भाव //३५//
ब्रह्मरात्रि के बीतने , तक सप्तर्षि समेत /
रहूँ विचरता सिन्धु में , नाव खींचने हेत //३६//
तब जो जो भी प्रश्न तुम , करोगे हे ऋषिराज /
दे दे कर उपदेश सब , खोलूँगा निज राज़ //३७//
मम यथार्थ महिमा सहित , ब्रह्मतत्व का ज्ञान /
ह्रदय प्रकट हो जाएगा , पा मम कृपा महान //३८//
देकर यह आदेश हरि , होगए अन्तर्ध्यान /
इन्तजार करने लगे , ऋषि प्रभु आज्ञा मान //३९//
अग्रभाग कुश का किया , पूर्व दिशा की ओर /
पूर्वोत्तर मुख कर बँधी , हरि से मन की डोर //४०//
बीते षट दिन घिर गये , घन नभ में घनघोर /
लपक झपक कर दामिनी , लगी मचाने शोर //४१//
महाप्रलय आँधी चली , लगी घनों में होड़ /
सिंधु चला अतिवृष्टि से , अपनी सीमा छोड़ //४२//
कुछ घंटों में हो गया , जब सब जल में लीन /
तब हरि के आदेश का , चिन्तन नृप मन कीन //४३//
मिली कृपा भगवान की , नौका प्रकटी आय /
धान्य सहित सब बीज औ , ऋषि नृप लिये चढ़ाय //४४//
कहा सप्त ऋषि ने नृप , कीजै प्रभु का ध्यान /
वही दिलायेंगे हमें , इस संकट से त्राण //४५//
उनकी आज्ञा से किया , नृप ने हरि आव्हान /
मत्स्यरूप धर सिंधु में , प्रकट हुये भगवान //४६//
चार लाख सौ कोस तक , बढ़ा लिया आकार /
स्वर्णकान्ति से दीप्तिमय , लिया सींग तन धार //४७//
उसी सींग से नाव को , पूर्व कहे अनुसार /
बाँधा वासुकिनाग से , होने भव से पार //४८//
हो प्रसन्न करने लगे , हरि स्तुति नृपराज /
भक्ति आपकी ही प्रभो , साधे सबके काज //४९//
सुख चाहत में ले रहे , अज्ञानी दुख मोल /
शरण गहें जब आपकी , दें भव बन्धन खोल //५०//
अन्धे को अन्धे प्रभो , बतलाते ज्यों राह /
अज्ञ जीव को अज्ञ गुरू , करते हैं गुमराह //५१//
इस कारण जब तक धरूँ , तन महि में सुरभूप /
मेरे गुरु हों आप ही , वर दें यही अनूप //५२//
करें कृपा सुर , जीव , गुरु, सब मिल हो स्वछन्द /
दशसहस्त्रवाँ भाग नहीं , तुम सम दें आनन्द //५३//
सब लोकों के सुह्रद तुम , प्रियतम आत्मा रूप /
तुम अभीष्ट प्रभु सिद्धियाँ , तुमही ज्ञान स्वरूप //५४//
कामनाओं से ग्रसित , अन्ध हुये मतिमूढ /
हिय स्थित प्रभु आपको , जानें नहीं विमूढ़ //५५//
देवों के आराध्य प्रभु , पूज्यनीय जगदीश /
ज्ञान प्राप्ति के हेतु मैं , शरणागत हूँ ईश //५६//
ह्रदय ग्रन्थि प्रभु काटिये , मुझको दे उपदेश /
निज स्वरूप की रश्मि को , मुझ में करें प्रवेश //५७//
सुन राजन की प्रार्थना , मत्स्यरूप भगवान /
विचरण करते सिन्धु में , दिया ब्रह्म का ज्ञान //५८//
मधुकर मत्स्यपुराण में, वह हरि का आख्यान /
जिज्ञासा है तो पढ़ें , सज्जन मत्स्य पुराण //५९//
हरि अनुकम्पा से मिला , सब रहस्य का राज़ /
वैस्वत मनु हो गये , वहीं ब्रह्मऋषि राज //६०//
नींद खुली ब्रह्मा जगे , हुआ कल्प का अन्त /
मार असुर हयग्रीव को , वेद छीन भगवन्त //६१//
ब्रह्मदेव को सौंप हरि , हो गए अंतर्ध्यान /
नया कल्प रचने लगे , विधि जब हुआ विहान //६२//
राजर्षि,मत्स्य अवतार का, यह अदभुत आख्यान /
पढ़ें , सुनेंगे नित्य जो , उनका जागे ज्ञान //६३//
जो हरि के अवतार का , करे कीर्तन नित्य /
उत्तम गति औ कार्य सिधि, पायेगा है सत्य //६४//
गूँजा मधुकर के ह्रदय , शब्दब्रह्म का नाद /
मत्स्यरूपहरि , सत्यव्रत हुआ पूर्ण संवाद //६५//
डॉ.पं.उदयभानु तिवारी मधुकर
दत्त एवेन्यू फ्लैट न० ५०१
नपियर टाउन जबलपुर
मो० ९४२४३२३२९७
No comments:
Post a Comment