श्री कृष्ण जन्म
वो है कैसा कभी जिसको देखा नहीं,
स्वर्ग गोकुल धरा पर उतर आ गया /
नन्दबाबा यशोदा का बनके ललन,
ब्रह्म लीला दिखाने गोकुल आ गया //
हुईं स्वर्णिम दिशायें कमल खिल गये,
वेद ध्वनियों में बुझते दिये जल गये /
कोकिलाओं ने छेड़ी मधुर रागिनी
बाग़, कुन्जन में पीयूष रस छा गया //
देव गन्धर्वों के स्वर मचलने लगे ,
राग रागिनियों में पग थिरकने लगे /
ताल देती पवन धुन में होके मगन ,
पुष्प बरसाता देवों का दल आ गया //
ब्रज में आनन्द के घन घुमड़ने लगे ,
मोर होके मगन नृत्य करने लगे /
झूमें सारा गगन , सबकी उसमें लगन ,
यमुना धारा रुकी सबमें वो छा गया //
स्वर्ग अपवर्ग सुख की झलक मिल गई,
कृष्ण जन्माष्टमी में निशा खिल गई /
अदभुत रस छलका पुलकाई रोमावली,
मधुकर मन मुकुन्द दर्शन झलक पा गया //
उदयभानु तिवारी ''मधुकर'['
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