बिदाई गीत
सुमन माल से अभिनन्दन कर ह्रदय कमल विकसाता चल /
आज विदा की बेला में यादों के दीप जलाता चल //
भवसागर में जो भी आया
वह इक दिन तो जाता है
वह इक दिन तो जाता है
बन जाये जो मीत ह्रदय का
उसका विरह सताता है
यही प्रकृति का नियम है बन्दे निज कर्तव्य निभाता चल
आज विदा ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//१//
जब तक थे ये संग हमारे
उन्नति उन्मुख पवन चली
रह जाएँगी यादें इनकी
बात चलेगी गली गली
इनको सम्मानित कर अगले पथ पर कदम बढ़ाता चल
आज विदा''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//२//
सदा बढ़ें ये अपने पथ पर
हम सब की यह चाह रहे
कर्तव्यों से विमुख न हों ये
इन्हें चाहती राह रहे
दूर रहें पर करें याद ये ऐसा अमिय पिलाता चल
आज विदा ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''' //३//
मिलनसार व्यक्तित्व प्रेरणा
से हम सब को जीत लिया
मन प्राणों में भाव भरे ;निज
कर्मों से चित खींच लिया
मधुकर इनको गले लगाकर प्रेम अश्रु बरसाता चल
आजविदा ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//४//
इन्हें चाहती राह रहे
दूर रहें पर करें याद ये ऐसा अमिय पिलाता चल
आज विदा ''''''''''''''''''''''''''''''
मिलनसार व्यक्तित्व प्रेरणा
से हम सब को जीत लिया
मन प्राणों में भाव भरे ;निज
कर्मों से चित खींच लिया
मधुकर इनको गले लगाकर प्रेम अश्रु बरसाता चल
आजविदा ''''''''''''''''''''''''''''''
ओ मेरे प्रिय जहाँ रहो तुम
कीर्ति कलश की वाह रहे
दुख केवल इतना ही होगा
दूर रहोगे आह रहे
प्रेम ताग से बँधे बँधे अब अपनी पतँग उडाता चल
आज विदा ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//५//
मिलना मधुर सुनहरा लगता
बिछुड़न शाम सिन्दूरी है
प्रकृति चक्र की गति में रहती
सबकी प्यास अधूरी है
गीतामृत रस पी कर बन्दे मन की प्यास बुझाता चल
आज विदा ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//६//
सूख दुख दो जीवन के राही
एक रखे नित दूरी है
दुख ईश्वर की याद दिलाये
सुख़ देता मगरूरी है
"मधुकर "ये दो साथी मन के दोनों सँग मुस्काता चल
आज विदा '''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//७//
डॉ उदयभानु तिवारी "मधुकर "
बिछुड़न शाम सिन्दूरी है
प्रकृति चक्र की गति में रहती
सबकी प्यास अधूरी है
गीतामृत रस पी कर बन्दे मन की प्यास बुझाता चल
आज विदा ''''''''''''''''''''''''''''''
सूख दुख दो जीवन के राही
एक रखे नित दूरी है
दुख ईश्वर की याद दिलाये
सुख़ देता मगरूरी है
"मधुकर "ये दो साथी मन के दोनों सँग मुस्काता चल
आज विदा ''''''''''''''''''''''''''''''
डॉ उदयभानु तिवारी "मधुकर "
गज़ब लिखा आपने.. अतिसंवेदनशील रचना.. वाह..
ReplyDeleteवाह क्या भाव भर दिया है आपने।बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति की गई है।
ReplyDeleteमहावीर प्रसाद तूनवाल
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteकृपया इस गीत के तर्ज़ को बताने की कृपा करें।