सर्व देव वन्दन
जगदादि कुजा और पवनतनय
सौमित्रि भरत रिपुसूदन जय
अघ नाशन विघ्न विनाशन हे
गिरिजा गिरिराज के नन्दन जय
जगदम्ब भवानी पुरारी प्रभो
निज दासन के चित चन्दन जय
हम कौन से जाय करें विनती
भव फन्द के नीके निकंदन जय //१//
यह " भृंग उदय " कवि ऊषा चहै
नहिं ऊषा का ज्ञान स्व नैनन में
नहिं बुद्धि विवेक न वाणी अहै
नहिं कवित्व राग है बैनन में
बंदहुं वायुतनय पदपंकज
चित्त नहीं प्रभु चैनंन में
सँग राम लखन सिय आन बसों
उर पावन निर्झर रैनन में //२//
श्री शारद नव स्वर नव लय में
छेड़ दे दीप राग स्वतारन में
मन बुद्धि विवेक प्रकाश लहै
चित चैन लहै झंकारन में
रस छन्द अलंकृत भाव बहें
सूचि सुन्दर शब्द कतारन
निज अंश दे कंठ सुधार दे माँ
अब ज्योति लहौं दृग तारन में //३//
डॉ उदयभानु तिवारी" मधुकर "
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