Wednesday, 9 November 2011

योगी मन के गुण


                    योगी मन के गुण 
काया रहे  निरोगी  जब  यह   मन   योगी   हो  जाता  है 
सांसारिक सुख़ भोग  योगियों  के  मन  को नहिं भाता है
सुख़ औ दुख में भी  वह  साधक  भेद  नहीं  कर पाता है 
काम ;क्रोध ;मद ;लोभ ;मोह नहिं उसको कभी सताता है 
लखे ब्रह्म  की  छवि   प्राणी  में   वही  ब्रह्म का  ज्ञाता  है 
मान  और   अपमान  सभी से  परे  पुरुष  हो  जाता   है 
सिद्धि  असिद्धि  सभी  में योगी मन सम भाव दिखता है 
मधुकर जन कल्याण  भाव  ही   उसके  मन में आता है

डॉ उदयभानु तिवारी "मधुकर " 

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