इष्ट देव वन्दन
जय हो जगदादि; ज्योति जिय में जगाय ;
आय जाग्रित बनाय स्रोत भाव के बहाइए
जिहन प्रदाय मम जीवट बढ़ाय; मन
जड़ता नशाय जलजला से बचाइये
प्रीति पद जोरी हाथ जोरि कहौं कीशनाथ
भय को भगाय कलिकलुष नशाइए
पद जलजाभ ओर प्रभु मम चित जाय
जानि निज दास मोहिं दरश दिखाइए //१//
यव आय कपिराय कोंत कृतिकंठ लाय
कोविद बनाय कवि कोपिल उगाइए
बुद्धि हो कुशाग्र कंठ सरस सुहाय नाथ
केलि ही कृपाल कवि कृति को जगाइए
कण कण जोरि के कतार में जमाय धृत
शब्द अलंकार क्रौंच लाय के लगाइए
कलित कलापी कूक कुञ्ज में सुनाय
उर कंज कुसुमाय रस छन्द में बहाइए //२//
कुजा देवि ; कैटभारि जीवितेश कीश नाथ
पद्य में लुनाई भर मेरी पत राखिये
पाद पंकजों में मेरो झुक झुक जाये शीश
पाहि पाहि पाहि बेला मंगल बनाइये
देवि हो दाक्षिन्य दिव्य तान छेड़ो शारद माँ
दीप राग छेड़ ज्ञान दीपक जलाइये
उमगे आनंद ;भाव बन कर आएँ छन्द
कवि "मधुकर " की कलम बन जाइये//३//
उदयभानु तिवारी "मधुकर "
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