Sunday, 31 August 2014













श्री गणेश आवाहन

आये गजानन द्वार हमारे,मंगल कलश सजाओ जी!
बंदनवार बनाओ जी!…  

बुद्धि  निधान भक्त चित चन्दन 
विघ्न विनाशन  गिरिजानंदन 
द्वार   खड़े   सब   करलो  वंदन 
करो वेद ध्वनि से अभिनन्दन 
घी के दीप जलाओ जी! सुमन माल ले आओ जी!!
आये गजानन द्वार हमारे,मंगल कलश सजाओ जी!!

मूषक   वाहन   अद्भुत   भ्राजे   
चतुर्भुजी   भगवान    विराजे
ऋद्धि-सिद्धि दोउ सँग में राजे
झांझर , शंख   बजाओ  बाजे
मोदक,फल ले आओ जी! आरति थार सजाओ जी!!
आये गजानन द्वार हमारे,मंगल कलश सजाओ जी!! 

प्रभु! अंधों के नयनप्रदाता 
बाँझन  के  हैं  ये  सुतदाता   
देव,मनुज के बुद्धि विधाता
इन्हें  प्रथम  ही पूजा जाता 
गणपति के  गुण गाओजी! आसन पर ले आओ जी!!
आये गजानन द्वार हमारे,मंगल कलश सजाओ जी!! 

जय   लम्बोदर   भव-दुखहारी 
हम सब हैं प्रभु शरण  तुम्हारी 
जय जय जय संतन हितकारी   
सुनिए गणपति विनय  हमारी   
आसन पर आजाओ जी!,विमल छटा छिटकाओ जी!!
आये गजानन द्वार हमारे,मंगल कलश सजाओ जी!! 

कर तन,मन,धन तुम्हें समर्पण 
पत्र,  पुष्प,  फल  करके  अर्पण  
''मधुकर'' भक्त  करें सब अर्चन 
कीजै   प्रभु   निर्मल   अंतर्मन
कृपा दृष्टि बरसाओ जी!,सारे विघ्न मिटाओ जी!!
आये गजानन द्वार हमारे,सब मिल आरति गाओ जी!! 



                            उदयभानु तिवारी  ''मधुकर'' 

Friday, 22 August 2014




केशव ! दुख-भव सिंधु  उतारो /
मैं  अब भटक भटक कर हारो //

जो पाना चाहे प्रभु  तुमको , तुमही  जिज्ञासा  दो  मन को 
जिनकी अँखियाँ तव दर्शन को ,प्यासी रहतीं उन भक्तों को
तुम ही  देत  सहारो/
केशव -----------//१//

हे मुरलीधर,गिरिधर,मनहर, ज्ञान प्रकाश ज्योति से नटवर 
मेरे अंतर्मन का तम हर , चंचल  मन  की  गति  स्थिर कर
तुम सदगुरु  बन तारो/ 
केशव ---------     //२//

निशि दिन  लगा  लगा  नव  फेरे,  तेरी  माया  अविरल  घेरे 
भव भ्रम भँवर ओर नित प्रेरे , तुम पितु ,मातु  सखा  हो  मेरे
मोहिं गहि बाँह उबारो /
केशव -------------//३//

ध्रुव,प्रहलाद,पार्थसम निश्छल, हिय में भक्तिभाव भर निर्मल
बरसाओ आनँद घन का जल, दर्शन दो मधुकर मन विहवल  
अनुकम्पा कर तारो /
केशव -----------//४//         
                                उदयभानु तिवारी ''मधुकर''



गुणातीत पुरुष के लक्षण 

जो नर गुणातीत हो  जायें /
प्रभु उनके लक्षण समझायें //

तम,सत,रज ये तीनों गुण हैं मोह ,प्रकाश ,प्रवृत्ति
जान इन्हें आसक्ति गुणों की,इनसे जिन्हें विरक्ति 
ईर्षा , द्वेष , दम्भ के उनमें भाव  कभी नहिं  आयें /
जो नर ------------------------------------------//१//

और निवृत्ति काल में भी जो, रहें कामना  हीना 
उदासीन इस जग में विचरें,विषयी भाव विहीना 
गुण ही गुण में बरत रहे हैं यही भाव मन आयें/
जो नर ---------------------------------------//२//

सुख औ दुख में भी जो  सम हैं निज आत्मा में रमते 
मिट्टी  ,सोना ,पत्थर उनको सब समान  ही  लगते
अप्रिय और प्रिय ,निंदा , स्तुति में सम भाव दिखायें/
जो नर ---------------------------------------------//३//

मान,अपमान,शत्रु ,मित्र में,मन सम भाव दिखाये 
एक भाव में स्थित रह कर ध्यान में लगन लगाये  
कर्तापन के भाव न ''मधुकर''उनके  मन  में  आयें/
जो नर ------------------------------------------//४//

                          उदयभानु तिवारी ''मधुकर ''         
 http://www.dollsofindia.com/images/products/shiva-pictures/shiva-with-nandi-PG24_l.jpg

योगी    हैं     भोले    भंडारी /
करते ध्यान नित्य त्रिपुरारी //


गले भुजंग जटा में गंगा, शीश  पै   चन्द्र   सुहाये 
तन भभूत ,बाघम्बर सोहे , माथे  त्रिपुण्ड  लगाये
कर त्रिशूल अरु डमरू,कमंडल,माल,चतुर्भुज धारी
योगी हैं ----------------------------------------//१//

जब तांडव करते हैं शिव , हो  स्थति प्रलयंकारी 
नयन तीसरा जब खोलें हो भस्म ,दृष्टि जहँ डारी 
महादेव हैं स्रष्टि सँहारक , गति इनकी  लयकारी/
योगी हैं ---------------------------------------//२//

जिस पर हों प्रसन्न ये  देते, उसे  शक्तियाँ  सारी 
स्वयं रहें कैलाश शैल पर ,भक्त को महल अटारी 
ऐसे   अवघड़दानी   भोले ,  शंकर  हैं  अविकारी/
योगी हैं ------------------------------------   //३//

वीरभद्र,हनुमान औ  भैरव , रुद्र  हैं महा प्रतापी 
इनके सम ना  वीर सृष्टि में , दुष्टों  के  संतापी 
रे''मधुकर''भज अघहर हर हर महाकाल भयहारी/  
योगी हैं ------------------------------------- //४//

              उदयभानु तिवारी ''मधुकर ''            
                   

     



















     










कृष्ण भजन 

बनाले कान्हा को मनमीत , ह्रदय में गूँज उठे संगीत  /
धुन में जब  रम  जायेगा ,  वह अनुभव में आयेगा //  

जैसे  मीरा  ने  की   प्रीत ,  वाणी   से   केशव  के  गीत /
भाव की सरिता से बह निकले,,हो गईं मीरा परम पुनीत // 
जब   वह   हृदय   समायेगा, अन्तर्शक्ति   जगायेगा /
बना ले ---------------------------------------------//१//

जैसे तुलसी, सूर, कबीरा, जिन्हें न ब्यापी भव की पीरा 
वैसे तू भी  रमजा  बन्दे  ,सुख  तो  पाये  सदा  फकीरा 
केशव  में   रम जायेगा , भव  सुख  तुझे  न  भायेगा/
बना ले ----------------------------------------------  //२//

जप तप भजनों में अनुरागे, मोहासक्ति तुम्हारी  भागे
हो  जायेगा ये  मन  वश  में,जब तू ईश्वर के हित जागे 
''मधुकर'' जब  वह  आयेगा , दुख-भव  पार   करायेगा  /
बना ले -----------------------------------------------  //३//    

                         उदयभानु तिवारी ''मधुकर ''

Wednesday, 20 August 2014















नर्मदा भजन

लगी भीड़ भक्तों की रेवा के द्वारे /
करे दीप दान कोई आरती उतारे//

लिये  गंध  पुष्प कोई चुनरी चढाये 
कोई जल जीवों  को  भोजन  कराये
होते हैं दान, पुण्य तट के किनारे/ 
लगी --------------------------//१/

हैं भोले शंकर की  रेवा  दुलारी 
उनमें ही लीन रहें शंकर पुरारी
अनुपम है प्रकृति छटा सुन्दर नज़ारे/
लगी -----------------------------//२//

करते जय घोष देव ,भक्त औ पुजारी 
देती   हैं   सिद्धि   माई  रेवा  कुवाँरी 
गूँजें गुणगान नित्य साँझ औ सकारे/ 
लगी ------------------------------//३//

तपो भूमि ऋषियों की माँ का किनारा 
आया   जो  शरण  उसे  देतीं   सहारा  
परिक्रमा इनकी भव से उतारे/ 
लगी -------------------   //४//

तट पर हैं पड़े हुये सिद्ध औ भिखारी 
सबकी  व्यवस्था  करें   मैया  सारी 
''मधुकर''न रहे कोई भूखा यहाँ रे/
लगी -------------------------//५//

   उदयभानु तिवारी ''मधुकर ''     
           
नर्मदा भजन

लगी भीड़ भक्तों की रेवा के द्वारे /
करे दीप दान कोई आरती उतारे//

लिये  गंध  पुष्प कोई चुनरी चढाये 
कोई जल जीवों  को  भोजन  कराये
होते हैं दान, पुण्य तट के किनारे/ 
लगी --------------------------//१/

हैं भोले शंकर की  रेवा  दुलारी 
उनमें ही लीन रहें शंकर पुरारी
अनुपम है प्रकृति छटा सुन्दर नज़ारे/
लगी -----------------------------//२//

करते जय घोष देव ,भक्त औ पुजारी 
देती   हैं   सिद्धि   माई  रेवा  कुवाँरी 
गूँजें गुणगान नित्य साँझ औ सकारे/ 
लगी ------------------------------//३//

तपो भूमि ऋषियों की माँ का किनारा 
आया   जो  शरण  उसे  देतीं   सहारा  
परिक्रमा इनकी भव से उतारे/ 
लगी -------------------   //४//

तट पर हैं पड़े हुये सिद्ध औ भिखारी 
सबकी  व्यवस्था  करें   मैया  सारी 
''मधुकर''न रहे कोई भूखा यहाँ रे/
लगी -------------------------//५//

   उदयभानु तिवारी ''मधुकर ''  


       










श्री कृष्ण भजन

रहो  मन मोहन संग  हमारे /
तुम बिन भव से कौन उबारे//

तुम ही सदगुरु  सखा सहारे  
हे  त्रिभुवन  के  पालन वारे 
घेर     रहे     अँधियारे
रहो ---------------//१//

माया तुम्हारी  मन  भरमाये 
पग पग पर ये लोभ दिखाये 
भटक भटक हम हारे /
रहो ---------------//२//

ध्यान करूँ तो विघ्न मचाये 
भजन करूँ तो  शोर  सुनाये 
सुमिरत नाम बिसारे/
रहो -----------    //३//

मैं  जप योग यज्ञ नहिं जानूँ 
रमे  राग में  तुम  हो  मानूँ 
मोहन  मुरली  वारे /  
रहो-------------//४// 

सूरदास  , मीरा   के  गिरिधर 
भक्ति भाव बन बहते झर झर
''मधुकर'' रसिक तुम्हारे/  
रहो -----------------//५//

उदयभानु तिवारी ''मधुकर ''
     
                    













गीता सार

दुर्लभ है मानव  तन  बन्दे , यह  जन्म  न ब्यर्थ गँवा देना /
अधियज्ञ  तुम्हारे  अन्दर  है , सदगुरु  से  ज्ञान जगा लेना //

संसारी   मानव   जाग   रहा , सब   नश्वर  चीजें  पाने  को /
ईश्वर  है  उनके  लिये  निशा, भ्रम  होता  सभी  ज़माने को //
जो  चाहो  ईश्वर  पाना तो , सदगुरु  से  लगन  लगा  लेना /
दुर्लभ है ------------------------------------------//१//

है  योगी  को  संसार  निशा , वह   जागे   ईश्वर   पाने  को /
जो दिखता है वह दिवा स्वप्न, इस जीवन को भरमाने को //
है   गीता  का   संदेश  यही , मन   भाये  तो  अपना  लेना /
दुर्लभ है -----------------------------------------//२//

है  व्याप्त ब्रह्म  जो  कण  कण में, हिय  प्रेम उसे प्रगटाता है /
जो  भक्त  न  कुछ माँगे उसका, अर्पित भोजन  वह पाता है //
है सदगुरु  उस पथ का  राही, मन  उसको  मीत  बना लेना / 
दुर्लभ है ---------------------------------------- //३//

जब तक तू मोहनिशा में है,निज हिय की शक्ति  नहीं  जागे /
बीते   जब  मोहनिशा   तेरी  ,  अंतर्मन  प्रभु   र्में   अनुरागे // 
आसक्ति  घटे चित स्थिर हो , तब योग में लगन लगा लेना /
दुर्लभ है ------------------------------------------//४//

स्वारथ  के  रिश्ते , नाते  हैं , ये   ही   मन  को  भरमाते  हैं /
सत , रज , तम  ये  तीनों  गुण, मनकी  आसक्ति  बढ़ाते हैं //
यदि  चाह  रहे  भवफन्द  कटे , आत्मा  से  मेल  बढ़ा लेना /
दुर्लभ है -----------------------------------------//५//

अनमोल   रतन   तन  तेरा   है, जब  जागे  तभी  सवेरा  है /
है   ब्रह्म   तुम्हारे  अन्दर  ही , बाहर   माया   का   फेरा   है // 
हे भ्रमित बुद्धि प्रभु चिंतन से निज चित्त की शुद्धि करा लेना /
दुर्लभ है ----------------------------------------//६//

दान  ,  धर्म ,  सत्कर्मों   की ,  पूँजी   तेरे    सँग    जायेगी /
और  जो  संग्रह  किया  यहाँ , वह  यहीं   धरी  रह  जायेगी //
रे मानव  अगले जन्म का निज, कर्मों से भाग्य लिखा लेना /
दुर्लभ है ----------------------------------------//७//   

है  निराकार  साकार  वही ,जो ,जिसका ,ध्यान  लगाता  है /
वह उसी रूप को  प्रगट करे , जो  जिसके  मन को  भाता है //
सब  में जो अच्छा लगे तुम्हें , हिय में  वह  रूप  बसा लेना /
दुर्लभ है  ---------------------------------------//८//

कर्तव्य  कर्म  से जो  पाये , वह  ग्रहण करे  नहिं  ललचाये /
निर्लिप्त  रहे  इस  दुनिया में , वह  मानव  योगी  कहलाये //
कहता  हूँ  गीता  तत्व  सखे , इसमें  अनुराग   बढ़ा  लेना /
दुर्लभ है ----------------------------------------//९//

जो  योगी  योग  सिद्धि  पाये,  योगेश  स्वयं  वह  हो  जाये /
सब  सृष्टि  लखे  निज  अन्तर  में,अरु  अंतर्यामी  कहलाये //
''मधुकर'' में केशव सदगुरु बन योगी की ज्योति जला देना / 
दुर्लभ है --------------------------------------//-१० //   
             

Tuesday, 19 August 2014
















कर्म फल

है दृश्य जगत जब तक तब तक अनुरागी आते जायेंगे

फल कर्मों के अनुरागी को सदगुरु बन कृष्ण सुनायेंगे//

 

राम   कृष्ण   ईसा   मूसा,  पैगम्बर   दे   पैगाम   गये   
गौतम महावीर नानक, फहराय ध्वजा निज धाम गये 
योगी  ज्ञानी  ध्यानी,  योगेश्वर  का  दे  कर  नाम  गये
तुलसी सूर कबीरा  मीरा, रसमय  कर  प्रभु  धाम  गये 
उस रस का अमृतमय प्याला,निज मुख से छलकायेंगे /
फल कर्मों -----------------------------------------//१//

यहजग नाटक का मंच सखे,जहाँ पात्र उतारा जाता है
पूर्व जन्म का  लिखा भाग्य , साकार कराया  जाता है 
देता है दोष विधाता को, निज करनी का फल पाता है
पूर्व कर्म निज भूल  गया,  अब रोता  है  पछताता  है 
यह सब क्यों कैसे होता है,हम तुम्हें बता कर जायेंगे /
फल कर्मों --------------------------------------//२// 

मानव  के  उपकार  कर्म  सब , संचय  होते  जाते  हैं 
पूर्व  जन्म  के  दिये  दान, उत्तम  घर  में  ले आते  हैं 
जो  पहले  करते   है  चोरी, छीन  छीन  कर  खाते हैं 
ऐसे  प्राणी  तन  धारण  कर, निर्धन  के  घर आते हैं 
जो   देंगे  संताप   प्राणियों   को , दुख  पाने  आयेंगे /
फल कर्मों ---------------------------------//३//

दानी  धर्मी  के  भी  मन  में, अहंकार  जब  आता  है 
ऊँची श्रेणी में  जाकर  वह , फिर  नीचे गिर  जाता है 
सिद्धि प्राप्त करने वाला जब, चमत्कार  दिखलाता  है 
ब्रह्म प्राप्ति के पथ से हटकर, अपनी  शक्ति  गवाँता है 
यह रहस्य हरि अनुकम्पा बिन, कोई जान न पायेंगे/
फल कर्मों ------------------------------------//४//

साँसारिक सुख  भोग  सृष्टि  में  दुख  के  हेतु  बनाये हैं 
विषयी मन  को अच्छे लगते   जिसमें  जीव  लुभाये हैं 
हरि गुणगान उन्हें नहिं भाये त्रिगुण उनको बिलमाये हैं        
यह अद्भुत रस वे नहिं  पायें  गुण  उनको  बिलमाये  हैं
हम   मुस्काते   तुम्हें   हँसाते   रस  छलकाते  जायेंगे /
फल कर्मों ----------------------------------------//५//

जो जो भाव ह्रदय धारण कर अंत समय में तन त्यागे 
वह  प्राणी  वे  भाव  लिये   भूमण्डल  में  जन्में  आगे 
ईर्षा  द्वेष  दम्भ  बदले  के   भावों   में   यदि  अनुरागे 
वैसा ही वह कर्म  करे  फिर  बुद्धि  विवेक  नहीं  जागे 
''मधुकर'' यह  सदगुरु  की  वाणी  बार  बार दुहरायेंगे / 
फल कर्मों ----------------------------------------//६// 

                            उदय भानु तिवारी ''मधुकर ''


                             














तिरंगा

 दुनिया में सबसे न्यारा लहराये तिरंगा प्यारा 
हो गये अमर वे सभी जिन्होंने जीवन इस पर वारा

हर शहीद की शान  यही है    
हम स्वतंत्र पहचान यही है
स्वाभिमान है यही हमारा 
प्रथम गान के योग्य यही है  
झुकते ज्यों ज्यों शीश मचल लहराये तिरंगा प्यारा  /
दुनिया में -----------------------------------------// १ //   

हरा , श्वेत,  केशर  रँग   भाये 
चक्र समय  का  मध्य सुहाये 
ये भारत की शान बढ़ाये
वीरों में उत्साह जगाये
सर्वत्र गूँजता नारा ,है अदभुत  देश हमारा रे /
 दुनिया में ----------------------------------- //२//

हम  तटस्थ  हैं  स्वेत  बताये 
हरा  प्रगति  की झलक दिखाये
मन  विरक्ति  केशरिया  लाये
बने   रौद्र     जो   इसे   जगाये 

वीरों ने इसे सँवारा दे आजाद हिन्द का नारा  /
दुनिया में -----------------------------------//३//   


जब बजा  बिगुल आजादी का 
लक्ष्मी बाई     ने     ललकारा
अँग्रेज   हुकूमत   डोल   गई
हो गया  सजग  भारत सारा
जब  घेर शत्रु दल   मारा लहराया तिरंगा प्यारा   /
दुनिया में -----------------------------------------//४//

नेता सुभाष  की फौजों ने 
अंग्रेजों को चुन चुन मारा 
उनके  छक्के  छूट   गये
था वन्दे मातरम का नारा

सब ओर  एक ही नारा था  यह हिंदुस्तान हमारा रे /
दुनिया में --------------------------------------- //५//

आज़ाद भगत हमजोली से  
घबराये   गोरे    गोली   से 
जो बात बनी ना बोली से   
वह बनी खून की होली  से
अंग्रेज प्रशासन हारा चमका भारत भाग्य सितारा  रे /
दुनिया में ------------------------------------------//६//

डर  लोकतंत्र से भाग गये  
क़ानून पुराने लाद  गये 
बदले  चेहरे  फिर  नये   नये   
इस  भारत  के  दो खण्ड भये 
पाक हिन्द से विलग हुआ ज्यों टूटा नभ से तारा /
दुनिया में ---------------------------------------//७//

झर    झर  झरे  तिरंगे  से   
श्रद्धा   के   सुमन   शहीदों   के 
शीश   झुके   ''मधुकर'' सबके   
गहराये     बादल    यादों    के   
जयघोष करे भारत उनका ,जो बने देश के तारा   /
दुनिया में ---------------------------------------//८//

                                 उदयभानु तिवारी ''मधुकर''  

Thursday, 7 August 2014


  •  


              























जागो अंदर के इंसान 

जागो भारत वासी जागो जगो अंदर के इंसान /
भ्रष्टाचार मिटाने को सब आँधी बन छेड़ो अभियान//
मंहगाई के   सहसबाहु   से हैं   संतप्त  सभी   इन्सान
परसुराम बन परसु उठाओ   करने को जनता की त्राण
परसुराम के घोर परसु की शक्ति जगाओ करके ध्यान
तब मन दृढ़ संकल्प करेगा  फूँकेगा जन गण में प्राण
भारत स्वाभिमान आन्दोलन  छेड़ें   करें देश आह्वान
भृष्ट तंत्र की जड़ें उखाड़ो करो देश  हित    तन कुर्बान

जागो '''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//१//

सत्य आचरण जनता भूली संस्कार  और   अपनी  शान
राष्ट्र धर्म की  शिक्षा  देकर करें  प्रकाशित    इनका ज्ञान
सुलभ न्याय हो स्वच्छ प्रशासन कोई न बेचे यदि ईमान
राम राज्य    आएगा  निश्चय  हो जाएगा   देश   महान
जो निर्लिप्त रहें कुर्सी पर भ्रष्ट न हों ;   हों  न्याय  प्रधान
शीर्ष पदों पर उनको लायें   चलो   जगाएँ  हिन्दुस्तान

जागो '''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//२//

जिस नेता का भ्रष्ट आचरण   भ्रष्टाचारी   जिनके काम
उनको भूल वोट मत देना   बिकना  नहीं   वोट   के नाम
सूचना
के
अधिकार से जानो क्या है खर्च हुए क्या काम
पार दर्शिता करे उजागर  भ्रष्ट  अफसरों के  सब     नाम
अधिक आय से किया इकट्ठी पूँजी जिनने   अपने नाम
देशद्रोह  प्रकरण चलवाओ   वह धन   करो देश के नाम
जागो ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//३//

करें राष्ट्र के हित का चिंतन राष्ट्र धर्म  अपनी पहचान
मात्र भूमि की रक्षा  में हम करदेंगे यह तन बलिदान
​​
यह संकल्प ह्रदय में हो तो नहीं डिगेगा फिर ईमान
शुद्ध चित्त हो तब जागेगा अपने  अन्दर  का इंसान
अन्य विदेशी भाषाओं से खूब करो  अपना उत्तथान
किन्तु राष्ट्र की भाषा हिंदी को देना    पहला स्थान

जागो ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//४//

यह है लक्ष्य सुद्रढ़ भारत का घर घर गूँज उठे यह गान
चलो तिरंगा ध्वज फहराएँ करें   शहीदों   का   आह्वान
जोर जोर भर र
​हे ​
तिजोरी बढ़ा र
हे
मन का अभिमान
सोचो  सँग क्या ले जाओगे जब  त्यागोगे अपने प्राण
दान धर्म की पूँजी "मधुकर" करदेती  है   जन कल्याण
मिले उसे यह संचित होकर जब आएँ नव तन में प्राण

जागो ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''//५//
                             
                           डॉ उदयभानु तिवारी "मधुकर "


 http://www.thepenthouse.in/data/images/Gwarighat_Aarti.JPG
नर्मदा-महा आरती 

ॐ जय जगदानंदी ,रेवा माँ परमा नंदी  /
सुखकारी,  अघहारी   सद्चित  आनंदी  //                                                             


झर झर  क़र  बन  निर्झर  ,निकली   मेकल से 
चलीं  पूर्व  दिशि  बहतीं ,  लुप्त  हुईं  तट  से // ॐ जय० //                                  

हर  नर्मदे  हर  हर  मय ,  माँ   बगिया सारी                           
निश्चल  मन  क़र  देती ,   प्रकृति   मनोहारी //ॐ जय०//

अमरकंटकी   सरवर      में    प्रगटीं     रेवा 
दर्शन   करने    आते   तापस   मुनि     देवा // ॐ जय०//

मकर    सवारी      सोहे ,      चतुर्भुजाधारी
मंदिर में  नित  होती ,  आरति     मनहारी// ॐ  जय०//

निकल चलीं पश्चिम को  , झर  रहीं  मंदिर  से
अविरल छलकत जल से, कल कल स्वर सरसे// ॐ जय०//

पर्वत  हो   गये  खाई ,   बढ़ी   प्रवल   धारा 
वृहद रूप भईं    माई ,  पत्थर  कर    छारा //जय०//

पहुँच मंडला हो  गयीं   ,माँ   सहस्त्र  धारा               
तट बनते गये तीरथ  ,जहँ जहँ गई  धारा // ॐ जय०//

ग्वारीघाट   तुम्हारा   है   सुरम्य   सब में
महा आरती   करते  नित्य  भक्त  स्वर में// ॐ जय०//

दीप दान जो करते भाव विह्वल  होकर 
उनको मार्ग दिखातीं ,रेवा तम हर कर//ॐ जय०// 

धुवाँधार जलधारा ,अविरल जल छलके 
तेरे कंकर शंकर , दिव्य ज्योति  झलके//ॐ जय० //

चौंसठ योगिनि  तट के,मंदिर प्रांगण में 
नंदी  पर  हैं  गौरी ,  शंकर जी   सँग  में//ॐ जय०//

पंचवटी   में   तेरी  ,   प्रकृति   मनोहारी 
मनहर दृश्य मनोरम , वर्णत मति  हारी //ॐ जय०//

ओंकारेश्वर  तट  पर  , छवि  है  ओंकारी 
मातु  नर्मदे  हर  हर ,  गूँजे  स्वर  भारी //ॐ जय०//

भिन्न भाव  भुवनेश्वर  ,   रूप   धरे   तट   में       
ऋषि, मुनिगण तप करते, तव तट अवघट में//ॐ जय०//

विश्व   देवता   सारे  ,  हैं  तव  अंचल  में  
भक्त करें परिकरमा , भाव विह्वल मन में//ॐ जय०//

मिलीं सिंधु से रेवा , सुर ,नर,मुनि हरषे 
मातु नर्मदे हर कह , अमित सुमन बरसे //ॐ जय०//

नारद औ सनकादिक ,  देवों  सँग आते 
नजर न आवें सब सँग , वे आरति गाते //ॐ जय०//

घंटा , ढोलों के स्वर , में तन मन डोले 
शंख नाद जब गूँजे , हिय कपाट  खोले //ॐ जय०//

निर्मलमति , तट आकर , माँ का ध्यान करें 
मोक्ष सिद्धि  वर  दें  माँ ,  मन  के  दुःख हरें //ॐजय०//

शरण  गहें  जो  माँ  की ,  करतीं   रखवारी 
ज्ञानी , भिक्षुक , साधक , की  पालन हारी //ॐ जय०//

करें आरती  नित  जो  ,  निर्मल  मति पावें 
''मधुकर''माँ सँग जिनके,निकट न दुख आवें//ॐजय

                    उदयभानु तिवारी ''मधुकर ''      

     
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महा आरती दृष्य वर्णन 

आरती का समय हुआ ,गूँज उठा शोर /
चले भक्त पुण्य सलिल रेवा  की  ओर//
जिनके हर कंकर हैं, शंकर पुरारी 
साधु,संत , सिद्धों की पालनहारी 
भक्तिभाव की तरंग ,लेती हिलोर /
चले भक्त ----------------------//१//

रेवा के तट पर हैं पुण्य तीर्थ सारे 
दीपदान भव्य लगें , देखो नज़ारे 
भावों में भींज रहीं, नैनों की कोर 
चले भक्त -------------------//२//

मैया के तट पर हैं देवों के मंदिर
दर्शनकी आश लिये आते पुरंदर
रेवा हैं चन्द्रमा , भक्त  हैं चकोर
चले भक्त ------------------//३//
मिलजुल के भक्त सभी आरती उतारें 
दिव्य वेद-वाणी बोल-बोल स्वर उचारें
भाव भक्ति लहर उठें , सब हैं विभोर
चले भक्त ---------------------- //४//

आरती की लौ   के संग, संग झूम जायें 
मन थिरके सभी भक्त ,झूम  झूम गायें 
''मधुकर'' का  मन पतंग, नर्मदा हैं डोर
चले भक्त ------------------------  //५//

हर हर हर नर्मदे ,स्वर की गूँज भारी 
नमो  नमो  नमो  नमः  रेवा कुवाँरी
करदो  भव पार भक्त , करते  निहोर 
चले भक्त -----------------------//६//

       उदयभानु तिवारी ''मधुकर ''      

Saturday, 2 August 2014

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कालिया नाग मद मर्दन  

बन गोकुल में धेनु चरैया ,लीला करते कृष्ण कन्हैया
जिनके शेष नाग हैं भैया,आनंद मगन  यशोदा  मैया
नन्द गाँव अति प्यारो लागे
               प्रकृति हुई मनहारी 
                    तरुवर बन सुर सेवा करते 
                               झुकीं फूल फल डारी 
मृग शावक भर रहे कुलाँचें, पवन चले पुरवैया/  
लीला करते कृष्ण कन्हैया-----------------//१//

पंछी हरि गुणगान करें 
    वन शोभा कही न जाती
          हरि छवि देख मोरनी नाचें 
                      कोयल गाये प्रभाती 
काली दह  को मुक्त कराने चले नन्द के छैया/  
लीला करते कृष्ण कन्हैया--------------- //२//

भाँति भाँति के पुष्प मनोहर 
               रिझा रहे कुंजन में 
                  पी पी पुष्प पराग भृंग सब 
                              गुंजन करते वन में 
यमुना तीरे तरु के ऊपर , बैठे  वेणु   बजैया /
लीला करते कृष्णया कन्हैया ------------//३//

उबल रहा था यमुना का जल 
         कालीदह     में       देखा 
           वहाँ कालिया नाग छिपा था
                     तनी  फणों   की   रेखा 
कूद पड़े गोपाल बोल के हर हर यमुना मैया /
लीला करते कृष्ण कन्हैया--------------- //४//

करत किलोल कृष्ण लख जल में 
             नाग     कालिया     आया 
                सुन्दर मनमोहन की छवि ने 
                     मन    में    मोह    जगाया 
निर्भय रहे खेलते जल में मातु यशोदा छैया /
लीला करते कृष्णया कन्है --------------//५//

धाया विषधर नाग उठा फण 
        बालक    समझ    लपेटा 
           प्रथम रहे निश्चल मनमोहन 
                  फिर  धर   नाग   चपेटा 
निकल फंद से फण के ऊपर, नाचें ताता थैया/ 
लीला करते कृष्ण कन्हैया --------------  //६//

धित्त धा धा धित्त धा  धा 
   तिरकिट तिरकिट धित्त धित्त 
           ताल     बद्ध     कालिया 
                  फणों  पै   थाप   मारें 
छूम छनक छ्नक छूम 
   छनक छूम  छनक छूम 
         छुन्न  छुन्न   कान्हा
                के   नूपुर   उचारें 
क्रोधित नाग, न फण उठ पावे काल बने ब्रज छैया/ 
लीला करते कृष्ण कन्हैया ---------------------//७//

जो फण उठे कृष्ण धर दाबें 
      वजन  हुआ  अति  भारी 
        नाग कालिया विकल, टूट गई 
                    तन  की  हिम्मत  सारी 
त्राहिमाम ,मोहन मत मारो शेषनाग के भैया /
लीला करते कृष्ण कन्हैया --------------- //८//

जोरि पाणि कर रहीं प्रार्थना 
         नागिन    हे    बनवारी
            क्षमा करें हे नटवर नागर
                  हम  हैं  शरण  तुम्हारी 
''मधुकर''अभय दिया विनती सुन, ब्रज के रास रचैया/ 
लीला करते कृष्ण कन्हैया ----------------------   //९//

किया गरुड़ भयमुक्त कालिया 
            रमणक   द्वीप   पठाया 
               यमुना का जल निर्मल करके    
                             सारा   जहर   हटाया 
काली कमली वाले कान्हा संकट मुक्ति करैया/ 
लीला करते कृष्ण कन्हैया ---------------//१०//

उदय भानु तिवारी ''मधुकर ''
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गोवर्धन कर धारण 

धरे अँगुली में गिरीराज,हँसें ब्रजराज 
सुमन नभ से बरसे /

अँगुली से गिरिराज उतारे 
सादर  निज स्थल  बैठारे 
धन्य  हैं  पर्वतराज, इन्द्र   नाराज 
दरस कर मन तरसे // निज अंगुल--//१//

ग्वालवाल  सब    हर्ष   मनावें 
कर जय घोष कृष्ण गुण गावें 
ये त्रिभुवन सरताज,खुला अब राज 
ह्रदय सब का करषे // निज अंगुल-//२//

ब्रज  के  युवा  वृद्ध  नर  नारी 
''मधुकर ''मिल रहे बारी बारी
बलदाऊ महाराज,लिपट मिले आज
सकल सुर गण हरषे // निज अंगुल -//३//

मोहित इन्द्र शरण तब आये 
क्षमा करें प्रभु जान  न  पाये 
जय जय जय सुरराज ,हूँ लज्जित आज 
वचन सुन हरि  हरषे // निज अंगुल -//४//

                          उदयभानु तिवारी ''मधुकर ''     















गोवर्धन धारण

कहीं गिर न पड़े गिरिराज लला मेरो छोटो है/
नटवर  नटखट  नँदलाल  कन्यैया छोटो  है //

थके न कान्हा जुगत भिड़ाओ 
सब मिल जहँ तहँ टेक लगाओ 
भारी  हैं  पर्वतराज  , लला   मेरो   छोटो  है /
नटवर  नटखट  नँदलाल  कन्यैया छोटो  है //

तड़  तड़  ध्वनि कर घन नभ गरजे 
घोर    वृष्टि    से     धरती     लरजे   
इन्द्र  गिरा  रहे  गाज़ , लला  मेरो छोटो  है/ 
नटवर  नटखट  नँदलाल  कन्यैया छोटो  है //

लपक झपक दामिनि द्युति दमके 
भय  उपजे  जब   रह   रह  चमके
घन  झपटें ज्यों बाज , लला  मेरो छोटो  है /
नटवर  नटखट  नँदलाल  कन्यैया छोटो  है //

सात  दिनों  तक  बरसो पानी 
थक गये इन्द्र महा अभिमानी 
बिगड़ा  न  कोई  काज , लला मेरो छोटो  है / 
नटवर  नटखट  नँदलाल  कन्यैया छोटो  है //

इन्द्र   हुआ तब  पानी  पानी 
कृष्ण निकट जा बोला वाणी
क्षमा   करें   नँदलाल  , शरण  में  लोटो  है / 
नटवर  नटखट  नँदलाल  कन्यैया छोटो  है //

मैं मति  मन्द महा अज्ञानी 
बालक  जान   दुष्टता  ठानी
कह ''मधुकर ''सुरराज  कर्म कियो खोटो है /
नटवर  नटखट  नँदलाल  कन्यैया छोटो  है //


                 उदयभानु तिवारी ''मधुकर ''     
गोवर्धन धारण 

मोहन कृष्ण मुरारी ,करो रक्षा हमारी //

उमड़ घुमड़ घन जल बरसायें 
वज्रपात   कर   इंद्र     डरायें /
पवन   वेग   है  भारी / 
 करो    रक्षा   हमारी //मोहन //१//

बहे जात  धन धेनु हमारे 
पार  लगाओ  मुरली वारे/ 
आये शरण तुम्हारी 
नटवर      बनवारी //मोहन --//२//

बोले कान्हा मत घबराओ 
सब मिल मेरे पीछे आओ/ 
गिरिवर         संकटहारी
चलें    सब    नर    नारी//मोहन --//३//

गोवर्धन  पर  सब को लाये 
अँगुली पर गिरिराज उठाये 
विपदा सबकी टारी 
गोवर्धन       धा री //मोहन//४//

तड़ तड़ ध्वनि कर घिर घिर के घन
जल   बरसाते     रहे    सात   दिन    
कुछ  नहीं  सके बिगारी 
''मधुकर ''         हंकारी//मोहन -//५//

थमी वृष्टि घन गगन विलाये 
सब  ब्रज  वासी  बाहर  आये
गूँजे  ध्वनि जयकारी 
जय  जय  गिरिधारी //मोहन --//६//

        उदयभानु तिवारी'' मधुकर ''