करे दीप दान कोई आरती उतारे//
लिये गंध पुष्प कोई चुनरी चढाये
कोई जल जीवों को भोजन कराये
होते हैं दान, पुण्य तट के किनारे/
लगी --------------------------//१//
हैं भोले शंकर की रेवा दुलारी
उनमें ही लीन रहें शंकर पुरारी
अनुपम है प्रकृति छटा सुन्दर नज़ारे/
लगी -----------------------------//२//
करते जय घोष देव ,भक्त औ पुजारी
देती हैं सिद्धि माई रेवा कुवाँरी
गूँजें गुणगान नित्य साँझ औ सकारे/
लगी ------------------------------//३//
तपो भूमि ऋषियों की माँ का किनारा
आया जो शरण उसे देतीं सहारा
परिक्रमा इनकी भव से उतारे/
लगी ------------------- //४//
तट पर हैं पड़े हुये सिद्ध औ भिखारी
सबकी व्यवस्था करें मैया सारी
''मधुकर''न रहे कोई भूखा यहाँ रे/
लगी -------------------------//५//
उदयभानु तिवारी ''मधुकर ''
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