जगदादि कुजा कपि वायु तनय,सौमित्रि भरत रिपुसूदन जय /
अघनाशन विघ्नविनाशनहेगणराज हो गिरिजा के नंदन जय//
जगदम्ब भवानी पुरारी प्रभो,निज दासन के चित चन्दन जय/
हम कौन सों जाय करें विनती,भव फंद के कष्ट निकंदन जय//
प्रभो भक्त उदयकवि ऊषा चहै,नहीं ऊषा का ज्ञान स्व नैनन में/
नहीं बुद्धि विवेक न वाणी अहै,नहि राग कवित्त का बैनन में//
अब अंजनि के सुत लाज रखो, देके शव्द करो चित चैनन में/
उर अम्बर में बन इंदु बसो, सिया राम लखण सँग रैनन में //
श्री शारद माँ अब दीपक रागिनी,छेड़ दे वीणा के तारन में /
मन बुद्धि विवेक प्रकाश लहै,चित चैन लहै झंकारन में //
रस छंद अलंकृत भाव बहैं, सुचि सुन्दर शब्द कतारन में/
निजअंश दे कंठ सुधार दे माँ,अब ज्योति लहौं दृग तारन में//
उदयभानु तिवारी ''मधुकर ''
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