Saturday, 2 August 2014

                     
 
जगदादि कुजा कपि वायु तनय,सौमित्रि भरत रिपुसूदन जय /
अघनाशन विघ्नविनाशनहेगणराज हो गिरिजा के नंदन जय//
जगदम्ब भवानी पुरारी प्रभो,निज दासन के चित चन्दन जय/
हम कौन सों जाय करें विनती,भव फंद के कष्ट निकंदन जय//
 
प्रभो भक्त उदयकवि ऊषा चहै,नहीं ऊषा का ज्ञान स्व नैनन में/
नहीं बुद्धि विवेक न वाणी अहै,नहि राग कवित्त का बैनन में//  
अब अंजनि के सुत लाज रखो, देके शव्द करो चित चैनन में/
उर अम्बर में बन इंदु बसो, सिया राम लखण सँग  रैनन में // 

श्री शारद माँ अब दीपक रागिनी,छेड़ दे वीणा  के  तारन में /
मन  बुद्धि  विवेक  प्रकाश लहै,चित  चैन लहै  झंकारन में //   
रस  छंद अलंकृत  भाव बहैं, सुचि सुन्दर शब्द कतारन  में/
निजअंश दे कंठ सुधार दे माँ,अब ज्योति लहौं दृग तारन में//

                             उदयभानु तिवारी ''मधुकर ''

No comments:

Post a Comment