Thursday, 7 August 2014

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नर्मदा-महा आरती 

ॐ जय जगदानंदी ,रेवा माँ परमा नंदी  /
सुखकारी,  अघहारी   सद्चित  आनंदी  //                                                             


झर झर  क़र  बन  निर्झर  ,निकली   मेकल से 
चलीं  पूर्व  दिशि  बहतीं ,  लुप्त  हुईं  तट  से // ॐ जय० //                                  

हर  नर्मदे  हर  हर  मय ,  माँ   बगिया सारी                           
निश्चल  मन  क़र  देती ,   प्रकृति   मनोहारी //ॐ जय०//

अमरकंटकी   सरवर      में    प्रगटीं     रेवा 
दर्शन   करने    आते   तापस   मुनि     देवा // ॐ जय०//

मकर    सवारी      सोहे ,      चतुर्भुजाधारी
मंदिर में  नित  होती ,  आरति     मनहारी// ॐ  जय०//

निकल चलीं पश्चिम को  , झर  रहीं  मंदिर  से
अविरल छलकत जल से, कल कल स्वर सरसे// ॐ जय०//

पर्वत  हो   गये  खाई ,   बढ़ी   प्रवल   धारा 
वृहद रूप भईं    माई ,  पत्थर  कर    छारा //जय०//

पहुँच मंडला हो  गयीं   ,माँ   सहस्त्र  धारा               
तट बनते गये तीरथ  ,जहँ जहँ गई  धारा // ॐ जय०//

ग्वारीघाट   तुम्हारा   है   सुरम्य   सब में
महा आरती   करते  नित्य  भक्त  स्वर में// ॐ जय०//

दीप दान जो करते भाव विह्वल  होकर 
उनको मार्ग दिखातीं ,रेवा तम हर कर//ॐ जय०// 

धुवाँधार जलधारा ,अविरल जल छलके 
तेरे कंकर शंकर , दिव्य ज्योति  झलके//ॐ जय० //

चौंसठ योगिनि  तट के,मंदिर प्रांगण में 
नंदी  पर  हैं  गौरी ,  शंकर जी   सँग  में//ॐ जय०//

पंचवटी   में   तेरी  ,   प्रकृति   मनोहारी 
मनहर दृश्य मनोरम , वर्णत मति  हारी //ॐ जय०//

ओंकारेश्वर  तट  पर  , छवि  है  ओंकारी 
मातु  नर्मदे  हर  हर ,  गूँजे  स्वर  भारी //ॐ जय०//

भिन्न भाव  भुवनेश्वर  ,   रूप   धरे   तट   में       
ऋषि, मुनिगण तप करते, तव तट अवघट में//ॐ जय०//

विश्व   देवता   सारे  ,  हैं  तव  अंचल  में  
भक्त करें परिकरमा , भाव विह्वल मन में//ॐ जय०//

मिलीं सिंधु से रेवा , सुर ,नर,मुनि हरषे 
मातु नर्मदे हर कह , अमित सुमन बरसे //ॐ जय०//

नारद औ सनकादिक ,  देवों  सँग आते 
नजर न आवें सब सँग , वे आरति गाते //ॐ जय०//

घंटा , ढोलों के स्वर , में तन मन डोले 
शंख नाद जब गूँजे , हिय कपाट  खोले //ॐ जय०//

निर्मलमति , तट आकर , माँ का ध्यान करें 
मोक्ष सिद्धि  वर  दें  माँ ,  मन  के  दुःख हरें //ॐजय०//

शरण  गहें  जो  माँ  की ,  करतीं   रखवारी 
ज्ञानी , भिक्षुक , साधक , की  पालन हारी //ॐ जय०//

करें आरती  नित  जो  ,  निर्मल  मति पावें 
''मधुकर''माँ सँग जिनके,निकट न दुख आवें//ॐजय

                    उदयभानु तिवारी ''मधुकर ''      

     

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