नर्मदा-महा आरती
ॐ जय जगदानंदी ,रेवा माँ परमा नंदी /
सुखकारी, अघहारी सद्चित आनंदी //
झर झर क़र बन निर्झर ,निकली मेकल से
चलीं पूर्व दिशि बहतीं , लुप्त हुईं तट से // ॐ जय० //
हर नर्मदे हर हर मय , माँ बगिया सारी
हर नर्मदे हर हर मय , माँ बगिया सारी
निश्चल मन क़र देती , प्रकृति मनोहारी //ॐ जय०//
अमरकंटकी सरवर में प्रगटीं रेवा
दर्शन करने आते तापस मुनि देवा // ॐ जय०//
मकर सवारी सोहे , चतुर्भुजाधारी
मंदिर में नित होती , आरति मनहारी// ॐ जय०//
निकल चलीं पश्चिम को , झर रहीं मंदिर से
अविरल छलकत जल से, कल कल स्वर सरसे// ॐ जय०//
पर्वत हो गये खाई , बढ़ी प्रवल धारा
वृहद रूप भईं माई , पत्थर कर छारा //जय०//
पहुँच मंडला हो गयीं ,माँ सहस्त्र धारा
तट बनते गये तीरथ ,जहँ जहँ गई धारा // ॐ जय०//
ग्वारीघाट तुम्हारा है सुरम्य सब में
महा आरती करते नित्य भक्त स्वर में// ॐ जय०//
दीप दान जो करते भाव विह्वल होकर
उनको मार्ग दिखातीं ,रेवा तम हर कर//ॐ जय०//
धुवाँधार जलधारा ,अविरल जल छलके
तेरे कंकर शंकर , दिव्य ज्योति झलके//ॐ जय० //
चौंसठ योगिनि तट के,मंदिर प्रांगण में
नंदी पर हैं गौरी , शंकर जी सँग में//ॐ जय०//
पंचवटी में तेरी , प्रकृति मनोहारी
मनहर दृश्य मनोरम , वर्णत मति हारी //ॐ जय०//
ओंकारेश्वर तट पर , छवि है ओंकारी
मातु नर्मदे हर हर , गूँजे स्वर भारी //ॐ जय०//
भिन्न भाव भुवनेश्वर , रूप धरे तट में
ऋषि, मुनिगण तप करते, तव तट अवघट में//ॐ जय०//
विश्व देवता सारे , हैं तव अंचल में
भक्त करें परिकरमा , भाव विह्वल मन में//ॐ जय०//
मिलीं सिंधु से रेवा , सुर ,नर,मुनि हरषे
मातु नर्मदे हर कह , अमित सुमन बरसे //ॐ जय०//
नारद औ सनकादिक , देवों सँग आते
नजर न आवें सब सँग , वे आरति गाते //ॐ जय०//
घंटा , ढोलों के स्वर , में तन मन डोले
शंख नाद जब गूँजे , हिय कपाट खोले //ॐ जय०//
निर्मलमति , तट आकर , माँ का ध्यान करें
मोक्ष सिद्धि वर दें माँ , मन के दुःख हरें //ॐजय०//
शरण गहें जो माँ की , करतीं रखवारी
ज्ञानी , भिक्षुक , साधक , की पालन हारी //ॐ जय०//
करें आरती नित जो , निर्मल मति पावें
''मधुकर''माँ सँग जिनके,निकट न दुख आवें//ॐजय
उदयभानु तिवारी ''मधुकर ''
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