
गोवर्धन कर धारण
धरे अँगुली में गिरीराज,हँसें ब्रजराज
सुमन नभ से बरसे /
अँगुली से गिरिराज उतारे
सादर निज स्थल बैठारे
धन्य हैं पर्वतराज, इन्द्र नाराज
दरस कर मन तरसे // निज अंगुल--//१//
ग्वालवाल सब हर्ष मनावें
कर जय घोष कृष्ण गुण गावें
ये त्रिभुवन सरताज,खुला अब राज
ह्रदय सब का करषे // निज अंगुल-//२//
ब्रज के युवा वृद्ध नर नारी
''मधुकर ''मिल रहे बारी बारी
बलदाऊ महाराज,लिपट मिले आज
सकल सुर गण हरषे // निज अंगुल -//३//
मोहित इन्द्र शरण तब आये
क्षमा करें प्रभु जान न पाये
जय जय जय सुरराज ,हूँ लज्जित आज
वचन सुन हरि हरषे // निज अंगुल -//४//
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